राज्य के ताकतवर छात्र संगठन अखिल असम छात्र संघ (आसू) समेत 30 संगठन इसका विरोध कर रहे हैं. इन संगठनों का कहना है कि भाजपा सरकार 1971 के बाद आए बांग्लादेशी हिंदुओं को असम में बसाने की कोशिश कर रही है.
असम में बांग्लादेशी हिंदू शरणार्थियों को बसाने और उन्हें नागरिकता देने का विरोध जोर पकड़ रहा है. अखिल असम छात्र संघ (आसू) समेत 30 संगठनों ने इसके लिए राज्य और केंद्र की भाजपानीत सरकारों को चेतावनी दी है. ये संगठन इसे असम समझौते के खिलाफ मानते हैं. इनका कहना है कि असम समझौते में इस बात का साफ उल्लेख है कि 25 मार्च 1971 के बाद बांग्लादेश से आए किसी भी व्यक्ति को असम से वापस जाना होगा. चाहे वो हिंदू हो या मुसलमान. इन संगठनों का कहना है कि भाजपा सरकार 1971 के बाद आए बांग्लादेशी हिंदुओं को असम में बसाने की कोशिश कर रही है.
इंडियन एक्सप्रेस अखबार के मुताबिक आसु के महासचिव ल्यूरिन ज्योति गोगोई ने शनिवार को एक रैली में कहा, ‘सत्ता में आने के बाद भाजपा अपने वादे से मुकर रही है. वह 1971 के बाद भारत आए हिंदुओं को शरण देकर बाकी समुदायों को अल्पसंख्यक बनाने का षडयंत्र कर रही है. हम ऐसी किसी भी कोशिश का विरोध करेंगे.’
वहीं, आसू के मुख्य सलाहकार समुज्जवल भट्टाचार्य ने कहा, ‘असम समझौते में साफ कहा गया है कि जो लोग 25 मार्च, 1971 से पहले असम आए हैं, केवल उन्हें ही नागरिकता दी जाएगी. सोनोवाल को असम समझौते का सम्मान करना चाहिए.’
सुप्रीम कोर्ट ने बांग्लादेशी प्रवासियों के खिलाफ याचिका खारिज की
सुप्रीम कोर्ट ने बांग्लादेश से आए अवैध प्रवासियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करने वाली एक जनहित याचिका को खारिज कर दिया. याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि बांग्लादेशी प्रवासियों की घुसपैठ से देश की अखंडता और संप्रभुता प्रभावित हुई है.
प्रधान न्यायाधीश जे एस खेहर की अध्यक्षता वाली पीठ ने सत्यमेव जयते नामक एनजीओ की याचिका खारिज कर दी. इस याचिका में दावा किया गया था कि बांग्लादेश के दो करोड़ अवैध प्रवासी भारत में शरण लिए हुए हैं. पीठ ने कहा, याचिकाकर्ता के वकील की बात सुन ली. यह त्वरित याचिका जनहित के काम के रूप में दायर की गई है. हमें इस त्वरित याचिका को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत मंजूर करने का कोई आधार नहीं दिख रहा है. इसलिए रिट याचिका को खारिज किया जाता है.
याचिका में कहा गया था कि शीर्ष अदालत भारत के निर्वाचन आयोग को निर्देश दे कि वह जन प्रतिनिधि कानून, 1950 की धारा 16 के तहत अयोग्य माने जाने वाले मतदाताओं की पहचान करने और उनके नाम मतदाता सूची से काटने के लिए त्वरित रूप से कदम उठाए.
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने मार्च में केंद्र से कहा था कि वह सीमा पार से असम में होने वाली घुसपैठ को रोकने के लिए भारत और बांग्लादेश की सीमा पर बाड़ बांधने के लिए धन जारी करे. न्यायालय ने कहा था कि यह काम जल्दी पूरा हो जाना चाहिए.
न्यायालय ने अंतरराष्ट्रीय सीमा को सुरक्षित बनाने और उस पर बाड़ लगाने से जुड़े काम में हुई प्रगति पर केंद्र की स्थिति रिपोर्ट पर गौर करने के बाद यह आदेश पारित किया था. न्यायालय ने कहा था कि मधुकर गुप्ता समिति इसका निरीक्षण और पर्यवेक्षण करेगी.