एससी-एसटी वर्ग में अ​भ्यर्थियों की कमी नहीं, डीयू में खाली पदों को भरा जाए: संसदीय समिति

दिल्ली विश्वविद्यालय में 264 प्रोफेसरों की कुल स्वीकृत संख्या में अनुसूचित जाति श्रेणी के केवल तीन व्यक्ति डीयू के विभिन्न महाविद्यालयों में कार्यरत है जबकि अनुसूचित जनजाति का प्रतिनिधित्व नहीं है.

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(फोटो साभार: फेसबुक/यूनिवर्सिटी आॅफ ​दिल्ली)

दिल्ली विश्वविद्यालय में 264 प्रोफेसरों की कुल स्वीकृत संख्या में अनुसूचित जाति श्रेणी के केवल तीन व्यक्ति डीयू के विभिन्न महाविद्यालयों में कार्यरत है जबकि अनुसूचित जनजाति का प्रतिनिधित्व नहीं है.

(फोटो साभार: फेसबुक/यूनिवर्सिटी आॅफ दिल्ली)
(फोटो साभार: फेसबुक/यूनिवर्सिटी आॅफ दिल्ली)

नई दिल्ली: संसद की एक समिति ने कहा है कि वह इस तरह के घिसे-पिटे जवाबों को नहीं मानती कि दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) में उपयुक्त अभ्यर्थियों की अनुपलब्धता के कारण अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के लिए निर्धारित पद खाली पड़े हुए हैं.

समिति ने कहा कि इन वर्गों में प्रतिभाशाली और उपयुक्त अभ्यर्थियों की कोई कमी नहीं है और इन रिक्तियों को भरा जाए.

संसद में बुधवार को अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों (एससी/एसटी) के कल्याण संबंधी मानव संसाधन विकास मंत्रालय की रिपोर्ट में कहा गया है कि समिति यह नोट करके क्षुब्ध है कि दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसरों, एसोसिएट प्रोफेसरों और असिस्टेंट प्रोफेसर के पदों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजातियों का प्रतिनिधित्व बहुत ही कम है.

एक अप्रैल 2015 की तारीख़ के अनुसार 264 प्रोफेसरों की कुल स्वीकृत संख्या में अनुसूचित जाति श्रेणी के केवल 3 व्यक्ति डीयू के विभिन्न महाविद्यालयों में कार्यरत हैं जबकि अनुसूचित जनजाति का प्रतिनिधित्व नहीं है.

समिति ने कहा है कि उसे हमेशा ही घिसे-पिटे उत्तर दिए गए हैं कि दिल्ली विश्वविद्यालय में उपयुक्त अभ्यर्थियों की अनुपलब्धता के कारण अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति हेतु निर्धारित पद रिक्त रह जाते हैं. समिति इस उत्तर को नहीं मानती है.

समिति यहां यह टिप्पणी करना उपयुक्त समझती है कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजातियों में प्रतिभाशाली और उपयुक्त अभ्यर्थियों की कोई कमी नहीं है. समिति की यह राय है कि डीयू में तदर्थ पदों को नियमित रिक्तियों से भरा जाए ताकि कम से कम पहले से चली आ रही (बैकलॉग) रिक्तियों को भरा जा सके.