झारखंड में आदिवासी की मौत, पत्नी ने भूख से मरने का दावा किया

झारखंड के रामगढ़ ज़िले के मांडू प्रखंड के नवाडीह गांव का मामला. खंड विकास अधिकारी ने भूख से मौत होने की बात को नकारा लेकिन स्वीकार किया कि परिवार का राशन कार्ड नहीं बना था.

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रामगढ़ (झारखंड) (फोटो: गूगल मैप)

झारखंड के रामगढ़ ज़िले के मांडू प्रखंड के नवाडीह गांव का मामला. खंड विकास अधिकारी ने भूख से मौत होने की बात को नकारा लेकिन स्वीकार किया कि परिवार का राशन कार्ड नहीं बना था.

रामगढ़ (झारखंड): झारखंड के रामगढ़ जिले में 40 वर्षीय आदिवासी व्यक्ति की मौत के बाद उनकी पत्नी ने दावा किया कि भूख के चलते उनकी मौत हुई. पत्नी के अनुसार उसके पास राशन कार्ड नहीं था.

आदिम बिरहोर आदिवासी से ताल्लुक रखने वाले राजेंद्र बिरहोर की बीते 24 जुलाई को मांडू खंड के नवाडीह गांव में मौत हो गई. नवाडीह गांव रामगढ़ से 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है.

बहरहाल, जिला प्रशासन के अधिकारियों ने भूख से मौत होने की बात से इनकार किया है और कहा कि बिरहोर की मौत बीमारी के चलते हुई है.

बिरहोर की पत्नी शांति देवी (35) ने बताया कि उसके पति को पीलिया था और उसके परिवार के पास इतना पैसा नहीं था कि वे उसके लिये डॉक्टर द्वारा बताया गया खाद्य पदार्थ और दवाई खरीद सकें.

शांति ने बताया कि उसके परिवार के पास राशन कार्ड नहीं था जिससे वे राज्य सरकार की सार्वजनिक वितरण योजना के तहत सब्सिडी वाले अनाज प्राप्त कर पाते.

छह बच्चों के पिता बिरहोर परिवार में एकमात्र कमाने वाले सदस्य थे. उन्हें हाल में यहां के राजेंद्र इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में भर्ती कराया गया था. इलाज के बाद उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई थी.

मांडू के खंड विकास अधिकारी (बीडीओ) मनोज कुमार गुप्ता ने आदिवासी व्यक्ति की भूख से मौत की बात से इनकार किया है.

उन्होंने 26 जुलाई को बिरहोर के घर का दौरा किया और दावा किया कि बिरहोर की मौत बीमारी के चलते हुई.

बीडीओ ने स्वीकार किया कि परिवार के पास राशन कार्ड नहीं था.

उन्होंने शांति देवी को अनाज और परिवार के लिए 10,000 रुपये दिए. उन्होंने कहा, ‘हम इस बात की जांच कर रहे हैं कि उनके परिवार का नाम सरकार की ओर से दी जाने वाली सब्सिडी युक्त राशन पाने वालों की सूची में क्यों नहीं दर्ज था.’

भोजन का अधिकार अभियान की ओर से जारी एक विज्ञप्ति में कहा गया है कि एक वर्ष पहले कमज़ोरी के कारण राजेंद्र बिरहोर काम करना छोड़ दिए थे. उनकी पत्नी को सप्ताह में 2-3 दिनों का ही काम मिल पाता था. पिछले एक साल में परिवार की आमदनी में गिरावट के कारण राजेंद्र बिरहोर, उनकी पत्नी और छह बच्चे पर्याप्त पोषण से वंचित थे. परिवार को मनरेगा में आखरी बार 2010-11 में काम मिला था. उन्हें आदिम जनजातियों को मिलने वाली सामाजिक सुरक्षा पेंशन की 600 रुपये प्रति माह की राशि भी नहीं मिलती है. प्रखंड विकास पदाधिकारी इस योजना के विषय में अवगत भी नहीं थे.

विज्ञप्ति के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट आदेश दिया है कि ‘आदिम जनजाति’ समुदाय- जिसका हिस्सा बिरहोर समुदाय है-  को अन्त्योदय अन्न योजना अंतर्गत प्रति माह 35 किलो राशन का हक़ है. साथ ही, झारखंड के आदिम जनजाति समुदाय के परिवारों को उनके घर पर नि:शुल्क राशन मिलना है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)