पत्थलगड़ी मामले में झारखंड पुलिस ने विस्थापन विरोधी जन विकास आंदोलन के संस्थापक फादर स्टेन स्वामी और कांग्रेस के पूर्व विधायक थियोडोर किड़ो पर राजद्रोह का मामला दर्ज करते हुए आरोप लगाया कि ये लोग ग्रामीणों को गुमराह करके देश विरोधी गतिविधियों के लिए बाध्य कर रहे हैं.
रांची: झारखंड की खूंटी पुलिस ने पत्थलगड़ी आंदोलन मामले में सामाजिक कार्यकर्ता और विस्थापन विरोधी जन विकास आंदोलन के संस्थापक सदस्य फादर स्टेन स्वामी, कांग्रेस के पूर्व विधायक थियोडोर किड़ो समेत 20 अन्य लोगों पर राजद्रोह का केस दर्ज किया है.
हिंदुस्तान अख़बार की खबर के मुताबिक पुलिस ने आरोप लगाया है कि इन्होंने लोगों को धोखे में रखकर देश की एकता और अखंडता खंडित करने की कोशिश की है.
यह भी आरोप है कि इन लोगों ने राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में सोशल मीडिया का भी सहारा लिया और सांप्रदायिक और जातीय माहौल खराब करने की कोशिश की.
पुलिस द्वारा दर्ज एफआईआर में कहा गया है कि इनके द्वारा ग्रामीणों को भड़काने के लिए फेसबुक का सहारा लिया गया. आरोप है कि कुछ लोग आदिवासी महासभा और एसी भारत परिवार के नाम पर लोगों को गुमराह कर रहे हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक पुलिस ने ऐसे लोगों के फेसबुक पोस्ट के स्क्रीनशॉट भी निकाले हैं और इनके जांच में सही पाए जाने पर एफआईआर दर्ज की गई है.
अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार घाघरा कांड के बाद इस बात का खुलासा हुआ था. गौरतलब है कि 27 जून को घाघरा गांव में पत्थलगड़ी कार्यक्रम में शामिल हुए ग्रामीणों की घेराबंदी करते हुए पुलिस ने उनसे लौटने को कहा था.
इसके बाद कथित तौर पर लाठीचार्ज हुआ और आंसू गैस के गोले छोड़े गए. इस दौरान कई ग्रामीण घायल हुए और एक की मौत हुई.
उसी दिन पुलिस की कार्रवाई से गुस्साई आदिवासियों की भीड़ ने रास्ते में अनिगड़ा गांव स्थित भाजपा के सांसद करिया मुंडा के घर पर हमला कर वहां तैनात तीन सुरक्षा जवानों को अगवा कर लिया था.
इस घटना के बाद पुलिस ने बड़ी तादाद में उदबुरू, घाघरा, आड़ाडीह, जिकिलता समेत कई गांवों में छापामारी अभियान चलाया. इस दौरान गांवों के अधिकतर घरों की तलाशी ली जाती रही. चौतरफा दबाव के बीच तीन दिन बाद अगवा किए गए पुलिस जवानों को पत्थलगड़ी समर्थकों ने छोड़ दिया. इस बीच पुलिस ने जवानों के हथियार भी बरामद कर लेने का दावा किया.
अख़बार की रिपोर्ट के मुताबिक इस मामले की जांच में पुलिस को पता चला कि ग्रामीणों को कुछ लोग भड़का रहे हैं और देश विरोधी काम करने के लिए बाध्य कर रहे हैं.
एफआईआर में फादर स्टेन स्वामी के अलावा बोलेस बबिता कच्छप, बिरास नाग, सुकुमार सोरेन, धनश्याम बिरुली, थॉमस रूंडा, धर्म किशोर कुल्लू, वाल्टर कंडुलना, सामू टुडू, मुक्ति तिर्की, राकेश रोशन किरो, अजल कंडुलना, अनुमत सुमित केरकेट्टा, अजुंग्या बिरुआ, जे विकास कोड़ा, विनोद केरकेट्टा, आलोका कुजूर, विनोद कुमार और थियोडोर किड़ो के नाम हैं.
इन लोगों पर आईपीसी की धारा 121 (देश के विरुद्ध युद्ध करना या करने के लिए प्रेरित करना), 121 ए (देश के विरुद्ध युद्ध करने की साजिश रचना) 124 ए (देश के खिलाफ लिखकर, बोलकर विद्रोह करना) के तहत केस दर्ज किया गया है.
इससे पहले अप्रैल महीने में केंद्र सरकार द्वारा अपनी वार्षिक रिपोर्ट में विस्थापन विरोधी जन विकास आंदोलन और नियामगिरि सुरक्षा समिति को ‘माओवादी संगठन’ घोषित किया था.
इन दोनों ही संस्थाओं ने इसका खंडन किया था. विस्थापन विरोधी जन विकास आंदोलन के संस्थापक सदस्य फादर स्टेन स्वामी ने उस समय कहा था, ‘विस्थापन विरोधी जन विकास आंदोलन कोई एनजीओ नहीं बल्कि एक व्यापक आंदोलन है.’
उन्होंने यह भी कहा था कि जब लोगों ने देखा कि सरकार उनके विकास के नाम पर निजी कंपनियों के साथ समझौते कर उनकी जमीनें छीन कर उन कंपनियों के हवाले कर रही है, तब विस्थापन विरोधी जन विकास आंदोलन ने 2005 में सूचना के अधिकार के तहत ऐसे 74 समझौतों की जानकारी हासिल की व इसे प्रकाशित किया. लोगों का प्रतिरोध उभरने लगा और अधिकतर उद्योगपतियों को खाली हाथ वापस लौटना पड़ा.
आदिवासियों व मूलवासियों के विस्थापन के विरुद्ध व्यापक आंदोलन व प्रतिरोध ही शासक वर्ग के गुस्से का मूल कारण है, जो कोई भी इस प्रतिरोध में शामिल है, उसे नक्सली बताया जाता है.