लावारिस गायों को रखने के उद्देश्य से पिछले साल सितंबर में मध्य प्रदेश के आगर ज़िले में कामधेनु गाय अभयारण्य शुरू किया गया था. अभी जो बजट आवंटित होता है उसमें से अधिकांश पशुओं को चारा खिलाने में ख़त्म हो जाता है.
भोपाल: मध्य प्रदेश सरकार के आगर-मालवा जिले स्थित गायों को संरक्षण एवं आशियाना देने के लिए बने देश के पहले गो-अभयारण्य में पानी एवं चारा की कमी के चलते पिछले छह महीने से नई गायों को अपने यहां रखने पर रोक लगाई गई है.
अभयारण्य की ओर से कहा गया है कि उनके पास न तो पैसे हैं और न ही उनके पास उतने लोग हैं कि वे और गायों को रखकर उनकी देखरेख कर सकें.
कामधेनु गो-अभयारण्य अनुसंधान और उत्पादन केंद्र के एक अधिकारी ने बताया कि आगरा-मालवा जिले की सुसनेर तहसील से 20 किमी दूर सालरिया गांव में 472 हेक्टेयर क्षेत्र में फैले इस केंद्र के उद्घाटन करने के मात्र पांच महीने बाद ही फरवरी 2018 से नए गायों के प्रवेश पर रोक लगा दी गई है, क्योंकि इसमें और गायों के लिए हरे चारे एवं पानी की कमी हो गई है.
उन्होंने कहा कि यह अभयारण्य भाजपा के शासनकाल में ही खोली गई थी और इसमें 24 शेड हैं, जिनमें इसकी क्षमता अनुसार 6,000 आवारा एवं लोगों द्वारा परित्यक्त गायों को रखा जाना था. इन गायों के गोबर एवं गोमूत्र से दवाइयां एवं कीटनाशक बनाई जानी थी.
अधिकारी ने कहा कि मौजूदा समय में इसमें 4,120 गायें रखी गयी हैं. उन्होंने कहा कि इस गो-अभयारण्य में पानी एवं हरे चारे की कमी हो गई है, जिसके चलते फरवरी से इसमें नई गायों को प्रवेश नहीं दिया जा रहा है.
अभयारण्य के इंचार्ज वीएस कोसरवाल ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में बताया, ‘हमने फरवरी से ही और गायों को लेना बंद कर दिया है. इस क्षेत्र में सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट भी गाय लाने की अनुमति नहीं दे रहे हैं.’
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक पशुपालन विभाग से जो भी पैसा आता है वह मवेशियों को चारा खिलाने में ही ख़त्म हो जा रहा है.
पशुपालन विभाग के एक सूत्र ने बताया कि लगभग 10 करोड़ रुपये से ज्यादा की लागत आती है लेकिन इसका आधा ही बजट में आवंटन किया गया है. इसमें से तकरीबन चार करोड़ रुपये पशुओं के चारे में ही ख़त्म हो जाते हैं. इस पर सूत्र ने बताया कि वित्त विभाग के एक अधिकारी ने मध्य प्रदेश गो-संवर्धन बोर्ड से दान के ज़रिये पैसा जमा करने को कहा है.
वर्तमान और भविष्य की जरूरतों को देखते हुए शुरुआत में गाय सुरक्षा बोर्ड 22 करोड़ रुपये का प्रस्ताव भेजा था लेकिन वित्त विभाग ने इसे ठुकरा दिया. इसके बाद बोर्ड ने 14 करोड़ रुपये का प्रस्ताव भेजा लेकिन इस भी रिजेक्ट कर दिया गया था.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, अभयारण्य के पास खुद से पैसे कमाने का कोई जरिया नहीं है क्योंकि यहां पर यहां पर बीमार या बूढ़ी हो चुकीं गायें ही आती हैं जो कि दूध नहीं देतीं. बिजली मुहैया कराने के लिए अभयारण्य में तीन बायोगैस प्लांट लगाए गए हैं.
वहीं इस अभयारण्य में गोमूत्र की खूबियों की जांच के लिए कुछ मशीन भी लाई गई हैं. नानाजी देशमुख वेटनरी साइंस यूनिवर्सिटी से कुछ विशेषज्ञ भी यहां समय-समय पर आते रहते हैं.
अभयारण्य के एक अधिकारी ने कहा कि लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग ने वहां पर कुएं खोदने शुरू कर दिए हैं. इससे पानी की कमी की समस्या दूर हो जाएगी. अधिकारी ने बताया कि इसके अलावा, गो-अभयारण्य परिसर में गायों के चरने के लिए हरे चारागाह भी बनाए जा रहे हैं.
उन्होंने कहा, ‘जैसे ही पानी की समस्या दूर होगी, हम इसमें नए गायों को प्रवेश देना शुरू कर देंगे.’
उधर, गो-अभयारण्य के अध्यक्ष एवं ज़िला कलेक्टर अजय गुप्ता ने बताया, ‘फंड की कोई कमी नहीं है. गायों के संरक्षण के लिए हमारा महीने का ख़र्च 30 लाख रुपये है और यह हमें सरकार से निरंतर मिल रहा है.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)