बोहरा मुस्लिम समुदाय में महिलाओं का ख़तना संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन है: सुप्रीम कोर्ट

केंद्र सरकार ने अदालत में अपना पक्ष रखते हुए कहा कि यह प्रथा आईपीसी और पॉक्सो क़ानून के तहत एक दंडनीय अपराध है. इस प्रथा पर 42 देशों में प्रतिबंध है.

सुप्रीम कोर्ट. (फोटो: पीटीआई)

केंद्र सरकार ने अदालत में अपना पक्ष रखते हुए कहा कि यह प्रथा आईपीसी और पॉक्सो क़ानून के तहत एक दंडनीय अपराध है. इस प्रथा पर 42 देशों में प्रतिबंध है.

सुप्रीम कोर्ट (फोटो: पीटीआई)
सुप्रीम कोर्ट (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय में नाबालिग लड़कियों के खतना (फीमेल जेनिटल म्युटिलेशन यानि कि एफएमजी) की कुप्रथा पर सवाल उठाते हुए कहा कि ये महिलाओं के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन है.

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 15 (धर्म, वंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर भेदभाव पर रोक) समेत मौलिक अधिकारों का उल्लेख किया और कहा कि किसी व्यक्ति को अपने शरीर पर नियंत्रण का अधिकार है.

एनडीटीवी की खबर के मुताबिक चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने कहा कि यह संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है. खतना की वजह से एक लड़की पर मानसिक रूप से गहरा प्रभाव पड़ता है.

वहीं, केंद्र सरकार ने कोर्ट में अपना पक्ष रखते हुए कहा कि वे इस मामले में याचिकाकर्ता के समर्थन में हैं. सरकार ने कहा कि यह आईपीसी और पॉक्सो एक्ट के तहत एक दंडनीय अपराध है. अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि इस प्रथा पर 42 देशों में प्रतिबंध है और इसमें से 27 देश अफ्रीका के हैं.

पीठ ने कहा, ‘अगर हम महिला अधिकारों की दिशा में सकारात्मक रूप से आगे बढ़ रहे हैं तो ऐसी स्थिति में हम कैसे पीछे जा सकते हैं?’ चीफ जस्टिस ने कहा कि महिलाओं के और भी कई दायित्व होते हैं. उनसे ये उम्मीद नहीं की जा सकती है कि वे अपने पतियों को खुश करने का काम करें.

पीठ ने कहा, ‘यह आपके जननांग पर आपके नियंत्रण के लिए आवश्यक है. यह आपके शरीर पर आपका नियंत्रण सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है.’

पीठ इस कुप्रथा पर प्रतिबंध लगाने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही है. पीठ ने कहा, ‘चाहे यह (एफजीएम) कैसे भी किया जाता हो, मुद्दा यह है कि यह मौलिक अधिकारों और खासतौर पर अनुच्छेद 15 का उल्लंघन करता है.’

याचिकाकर्ता सुनीता तिवारी के वकील राकेश खन्ना ने कहा कि दाऊदी बोहरा समुदाय में मौजूद यह प्रथा जीने के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन है. वहीं, वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने कहा कि यह प्रथा कानून के तहत दंडनीय अपराध है.

जयसिंह ने दाऊदी बोहरा समुदाय द्वारा पारित एक प्रस्ताव का हवाला देते हुए कहा कि बोहरा समुदाय का यह अभ्यास उनके मेजबान देश में कानून के अधीन हो सकता है लेकिन ऑस्ट्रेलिया और दूसरे देशों में इस पर प्रतिबंध लगाया जा चुका है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)