जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में हाल के दिनों में ऐसे कई मामले सामने आए हैं जब अदालत की दख़ल के बाद छात्र-छात्राओं की पीएचडी थीसिस जमा हुई है और उनका अगले सेमेस्टर में पंजीकरण हुआ है.
नई दिल्ली: जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में हाल के दिनों में ऐसे कई मामले सामने आए हैं जब अदालत की दखल के बाद छात्रों की थीसिस जमा हुई है और उनका अगले सेमेस्टर में पंजीकरण हुआ है. छात्रों का आरोप है कि प्रशासन छात्रों पर बड़ी-बड़ी रकम का जुर्माना थोप रहा है.
अफ्रीकन स्टडीज की शोध छात्रा अश्वती जब 23 जुलाई को अपना पीएचडी थीसिस जमा करने गई, तो प्रशासन ने उसे स्वीकार करने से इनकार कर दिया. जिसके बाद अश्वती ने दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और जब 24 जुलाई को अदालत ने आदेश दिया तब जाकर 25 जुलाई को जेएनयू ने थीसिस को स्वीकार की.
अश्वती ने द वायर से बातचीत में बताया, ‘हमें यह समझना होगा कि ये जो हो रहा है कितना अलोकतांत्रिक है. क्या सरकार की नीतियों और प्रशासन के दमनकारी रवैये के खिलाफ बोलना भारत में अपराध है. अब जब अदालत से न्याय मिलना है, तो सरकार को कुलपति को हटा देना चाहिए और प्रशासन को ध्वस्त कर देना चाहिए. कुलपति जगदीश कुमार को ऐसा लगता है कि वे जेएनयू के मालिक हैं, लेकिन वे तो सरकार द्वारा नियुक्त एक सेवक हैं. जो भावना कुलपति और चीफ प्रॉक्टर में उत्पन्न हुई है, वो एक शिक्षक के लिए शर्म की बात है.’
अश्वती आगे बताती हैं कि अदालत के निर्देश के बाद जब वे 25 जुलाई को अपना थीसिस जमा करने गई तब भी प्रशासन थीसिस स्वीकार करने को तैयार नहीं था. जब कारण पूछा गया तो प्रशासन के लोगों ने कहा कि चीफ प्रॉक्टर शहर के बाहर हैं.
उन्होंने आगे बताया, ‘जब हम लोग वहां से जाने को तैयार नहीं हुए, तब जेएनयू ने अपने वकील को बुलाया और तब उन्होंने प्रशासन को बताया कि थीसिस को स्वीकार करना पड़ेगा वरना ये अदालत के आदेश की अवमानना होगी. तब जाकर हमारा थीसिस स्वीकार किया गया.’
शोध छात्र उमर खालिद ने भी अदालत में याचिका दायर की थी, जिस पर सुनवाई करते हुए गुरुवार को अदालत ने जेएनयू को निर्देश दिया है कि वे खालिद की पीएचडी थीसिस को स्वीकार करें.
उमर खालिद ने द वायर से बातचीत में बताया, ‘हमें इस पूरे पैटर्न को समझना होगा. ये छात्रों की आवाज दबाने का एक तरीका है. हमारे कुलपति को फर्क नहीं पड़ता कि वे कितना केस हारते हैं या उनको फटकार लगती है. अभी तक जितने भी मामले में सुनवाई हुई सबमें अदालत ने जेएनयू के खिलाफ फैसला सुनाया. कुलपति साहब को इतनी हार का सामना करने के बाद भी शर्म नहीं आती और उन्हें चिंता भी नहीं क्योंकि मुकद्दमों में जो पैसा खर्च हो रहा है वो जनता का पैसा है.’
उमर ने आगे बताया, ‘दरअसल प्रशासन जानता है कि कोर्ट-कचहरी का खर्चा बहुत सारे छात्र नहीं उठा सकते हैं. जेएनयू में अमूमन छात्र गरीब और पिछड़े परिवार से आते हैं. अगर प्रशासन 100 छात्रों पर कार्रवाई करता है, तो वो जानता है कि 80 छात्र अदालत में अपील नहीं कर पाएंगे क्योंकि कानूनी प्रक्रिया में वकील की जरूरत है और जिसके लिए पैसे खर्च होते हैं. तो ये सब कुलपति इसलिए कर रहे हैं, ताकी अन्य छात्र डर जाएं और प्रशासन के दमनकारी फैसलों के खिलाफ आवाज नहीं उठाए. ये लोग एक विश्वविद्यालय की आत्मा और उसके मूल्य की हत्या कर रहे हैं. ये लोग खुद के शिक्षक या गुरु होने पर सवाल पैदा कर रहे हैं. अपना स्तर एक शिक्षक से गिरा कर सिर्फ राजनीतिक मोहरा बन गए हैं.’
जेएनयू छात्र संघ के पूर्व महासचिव रामा नागा का जिक्र करते हुए उमर कहते हैं कि अदालत ने रामा पर लगे 10,000 रुपये के जुर्माने को खारिज कर दिया, क्योंकि वो बीपीएल और दलित परिवार से आते हैं. जब अदालत ने ऐसा कहा तब जेएनयू के वकील ने कहा कि जुर्माने को किश्तों में भरा जा सकता, लेकिन अदालत ने उस दलील को भी खारिज कर दिया है.
गौरतलब है कि छात्रों की समस्या को हल करने की जिम्मेदारी प्रशासन पर है, लेकिन प्रशासन द्वारा पैदा की गई समस्याओं का हल अदालत कर रही है. जेएनयू में भारी संख्या में एमफिल और पीएचडी के छात्रों ने अदालत की मदद से अपनी थीसिस जमा की है और कुछ छात्रों को अपने अगले सेमेस्टर के पंजीकरण को लेकर भी अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ा.
बीए की छात्रा स्वाति सिंह जो कि रूसी भाषा की पांचवर्षीय कोर्स की छात्रा हैं. जेएनयू प्रशासन ने उनकेे एमए के पंजीकरण पर रोक लगा दी थी, जिसके खिलाफ स्वाति ने दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. जिस पर हाईकोर्ट ने जेएनयू प्रशासन को एमए कोर्स में पंजीकरण करने का आदेश दिया.
स्वाति ने द वायर से बातचीत में बताया, ‘मैं बीए रशियन भाषा की छात्रा हूं. मुझ पर प्रशासन ने आंदोलन में शामिल होने के चलते 10,000 रुपये जुर्माना लगाया और हॉस्टल बदल दिया था. मैंने जुर्माना देने से इनकार कर दिया क्योंकि मैं छात्रों द्वारा चुनी हुई काउंसलर हूं और मेरा काम है छात्रों के हितों के लिए लड़ाई लड़ना. अब अगर मैं बिना किसी सुनवाई के जुर्माना भर दूं तो मैं दोषी साबित हो जाऊंगी. प्रशासन बिना किसी निष्पक्ष जांच या मेरा पक्ष सुने कैसे कोई सजा या जुर्माना लगा सकता है.’
स्वाति ने आगे बताया, ‘हाईकोर्ट का निर्णय आने के बाद जब मैैं अपना पंजीकरण कराने गई, तो प्रशासन ने कहा कि उन्हें अभी तक अदालत का कोई आदेश नहीं मिला है. अब बताइए प्रशासन को छात्र इतना बड़ा दुश्मन मालूम पड़ता है कि वे अदालत के आदेश को नहीं मान रहे हैं और तमाम हथकंडे अपना रहे हैं.’
हालांकि बाद में स्वाति का एमए में पंजीकरण हो गया.
सिनेमा स्टडीज की एमफिल छात्रा अपेक्षा प्रियदर्शनी ने बताया कि प्रशासन ने उनका भी थीसिस स्वीकार करने से इनकार कर दिया था, जिसके बाद दिल्ली हाईकोर्ट के दखल के बाद 26 जुलाई को अदालत द्वारा जेएनयू प्रशासन को थीसिस स्वीकार करने का निर्देश दिया, तब जाकर थीसिस जमा हुआ है.
द वायर से बातचीत में अपेक्षा ने बताया, ‘अब जेएनयू में हर काम के लिए अदालत ही जाना पड़ता है. प्रशासन और कुलपति बदले की भावना से काम कर रहे हैं. जब हम अदालत में गए तब जज साहब ने पूछा था कि प्रॉक्टर द्वारा कार्रवाई के खिलाफ कुलपति के पास अपील की जा सकती है, लेकिन प्रॉक्टर ने जो पत्र भेजा है उसमें लिखा है कि कार्रवाई कुलपति के सहमति से हुई है. तब जाकर अदालत ने हमारे पक्ष में प्रशासन को निर्देश दिया. अदालत को अपने आदेश में स्पष्ट लिखना पड़ा कि छात्रों की थीसिस स्वीकार हो, कोर्स में पंजीकरण हो और हॉस्टल भी दिया जाए, वरना कन्हैया कुमार की सुनवाई के दौरान कहा गया था कि जांच होने तक अन्य छात्रों पर कोई कार्रवाई न हो, उस आदेश को प्रशासन मानने को तैयार नहीं था. अब अदालत ने स्पष्ट लिखना शुरू किया, तब ये मानने लगे.’
अपेक्षा ने आगे बताया कि अब जो भी अपील कुलपति के पास की जाएगी, उसकी वीडियोग्राफी भी करनी होगी और यह आदेश अदालत ने दिया है. क्योंकि कुलपति के पास होने वाली अधिकतर जांच प्रक्रिया पारदर्शी नहीं है. जेएनयू के वकील ने इसका विरोध किया लेकिन अदालत ने विरोध को खारिज कर दिया. अब दोनों पक्षों के सुनाने के बाद तय होगा कौन दोषी है.
प्रशासन ने एमए इंटरनेशनल रिलेशन के छात्र जतिन गोरया के एमए के तीसरे सेमेस्टर में पंजीकरण करने पर रोक लगा दी थी. उन्होंने भी अदालत में इसके खिलाफ याचिका दायर की जिसके बाद 26 जुलाई को अदालत के आदेश के बाद पंजीकरण करने दिए गया.
जतिन बताते हैं, ‘हम जब अदालत में अपने मामले की सुनवाई के लिए गए थे, तब जेएनयू के वकील ने अदालत में झूठ बोला कि हमें नहीं रोका गया है. उनके वकील ने कहा कि हम लोग राजनीति से प्रेरित हैं और खुद से पंजीकरण नहीं करना चाहते. अब देखो एक ही संस्थान का दो चेहरा हैं. खैर अदालत ने हमारी याचिका की सुनवाई कर निर्देश दे दिया, जिसके बाद मेरा पंजीकरण हो गया.’
वहीं, एमए द्वितीय वर्ष की छात्रा अदिति चटर्जी ने भी जून महीने में प्रशासन द्वारा 6,000 रुपये के जुर्माने के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट में अपील की थी, जिसके बाद अदालत ने अगली सुनवाई तक जुर्माना भरने या किसी भी तरह की कार्रवाई पर रोक लगा दी थी. लेकिन जब अदिति द्वितीय वर्ष में पंजीकरण करने पहुंची, तो प्रशासन ने रोक लगा दी. अदालत के आदेश के साथ नोटिस भेजने पर प्रशासन ने पंजीकरण की प्रक्रिया को पूरा किया.
इसके अलावा और भी छात्र हैं, जिनका कोर्स के सेमेस्टर पंजीकरण पर रोक लगी हुई है, जिसके लिए वे सब अदालत में याचिका दायर करने वाले हैं. नाम न बताने के शर्त पर एक छात्र का कहना है कि अब जेएनयू को दिल्ली हाईकोर्ट की निगरानी में सौंप देना चाहिए, क्योंकि कुलपति और उनके प्रशासन से कोई काम होने वाला नहीं है.
जेएनयू के शिक्षक संघ के सचिव सुधीर सुतार ने जेएनयू में चल रही गतिविधियों पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि ये लोकतंत्र के विरुद्ध है और सिर्फ विश्वविद्यालय नहीं बल्कि समाज की परिकल्पना के खिलाफ है.
सुधीर कहते हैं, ‘इस समय जेएनयू में जो काम अदालत से हो रहा है, वह विश्वविद्यालय प्रशासन के लिए शर्म की बात है. मैंने अपने 20 साल के सफर में ऐसा कभी नहीं होते देखा है. ये सरकार चाहती है कि हर चीज नियंत्रण में हो और सब कुछ सरकार के इशारे पर हो. जेएनयू का इतिहास है कि यहां देश के हर मुद्दे पर आवाज उठती है और अगर प्रशासन कोई छात्र विरोधी फरमान सुनाता है, तो छात्र विरोध करेंगे, लेकिन ये नहीं चाहते कि कोई विरोध करे.’
उन्होंने आगे बताया, ‘किसी काम में सख्ती दरअसल काम को बेहतर नहीं बल्कि बदतर बनाती है. जेएनयू ऐसा ही रहा है. सबकी समस्या को समझकर निर्णय लेता है. लेकिन बात-बात पर नोटिस भेज देना जेएनयू की परंपरा नहीं है. ये जो भी हो रहा है ठीक नहीं क्योंकि ये सिर्फ जेएनयू नहीं बल्कि देश की हर यूनिवर्सिटी में हो रहा है.’
द वायर ने कुलपति प्रो.जगदीश कुमार और चीफ प्रॉक्टर प्रो. कौशल कुमार को ईमेल के जरिए जेएनयू में थीसिस जमा करने और कोर्स सेमेस्टर में पंजीकरण को लेकर अदालत के दखल और छात्रों के आरोपों पर जवाब मांगा है. रिपोर्ट के प्रकाशित होने तक दोनों की तरफ से किसी भी प्रकार का कोई जवाब या प्रतिक्रिया नहीं आई है. भविष्य में अगर वे कोई जवाब देते हैं, तो उसे भी रिपोर्ट में जोड़ा जाएगा.