जोगी के जाने से छत्तीसगढ़ में कांग्रेस मज़बूत हुई, वे भाजपा के लिए काम करते थे: भूपेश बघेल

छत्तीसगढ़ में साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों की तैयारी, 15 साल के भाजपा शासन और राज्य की विभिन्न समस्याओं और चुनौतियों को लेकर प्रदेश कांग्रेस समिति के अध्यक्ष भूपेश बघेल से दीपक गोस्वामी की बातचीत.

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भूपेश बघेल. (फोटो: द वायर)

छत्तीसगढ़ में साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों की तैयारी, 15 साल के भाजपा शासन और राज्य की विभिन्न समस्याओं और चुनौतियों को लेकर प्रदेश कांग्रेस समिति के अध्यक्ष भूपेश बघेल से दीपक गोस्वामी की बातचीत.

Bhupesh Baghel
छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल. (फोटो: द वायर)

15 साल से छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार है. लगातार तीन विधानसभा चुनाव कांग्रेस हारी है, इस दौरान 2003 में 37, 2008 में 38 और 2013 में कांग्रेस की 39 सीट रहीं. राज्य विधानसभा में बहुमत 46 सीटों पर मिलता है लेकिन एक स्थिर सरकार चलाने के लिए जरूरी है कि कम से कम पचास सीट हों. इस अंतर को पाटने के लिए कांग्रेस की क्या तैयारी है?

पिछले तीन चुनावों में हम 37, 38, 39 सीटों पर रहे लेकिन मत प्रतिशत की बात करें तो 2008 में 1.5 प्रतिशत और 2013 में 0.73 प्रतिशत मतों से पीछे रह गए. इसे ध्यान में रखकर साढ़े चार साल से लगातार जनता की समस्याएं, चाहे गरीबों के राशन कार्ड सूची से हटाने की बात हो, किसान की धान खरीदी पर बोनस देने की बात हो, ऐसे सभी मुद्दों पर हम सड़क से सदन तक लड़े और सरकार को बैकफुट पर लाए.

आदिवासियों की जमीन छीनने, भूमि अधिग्रहण कानून के पालन, वनाधिकार और पेसा कानून के पालन न होने पर हर स्तर पर हम लड़ रहे हैं.

पिछले दिनों राज्य सरकार ने चौदहवें वित्त आयोग का पैसा, जो सरपंचों के माध्यम से सीधा गांव के विकास में लगना है, उस 600 करोड़ रुपये को जियो कंपनी के टॉवर खड़े करने में लगा दिया. हम लड़े और सरकार को पीछे हटना पड़ा. पैसा पंचायतों को लौटाना पड़ा.

आउटसोर्सिंग के माध्यम से नौजवानों के हक छीनने के मुद्दे पर भी हमने विरोध दर्ज कराया.

कांग्रेस सड़क से सदन तक हर वर्ग के लिए लड़ रही है. ऐसा कोई मुद्दा नहीं रहा, जिसमें हमने सरकार को न घेरा हो. सरकार को घरेने में हम सफल रहे हैं. साढ़े चार साल में एक बार नहीं, छह-छह बार बैकफुट पर लाए हैं.

वहीं, लगातार हम संगठन मजबूत करने का काम भी कर रहे हैं. 90 में से हम 86 विधानसभाओं में कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण का काम चला रहे हैं. कांग्रेस के संगठन को बूथ लेवल तक मजबूत कर रहे हैं.

भाजपा के 15 सालों से सत्ता में बने रहने को एक तरह से उसकी लोकप्रियता कह सकते हैं. इसका क्या यह मतलब निकाला जाए कि भाजपा ने विकास किया है इसलिए सत्ता में बनी हुई है?

छत्तीसगढ़ के इतिहास की बात करें तो यह शुरू से ही कांग्रेस का गढ़ रहा है. जब यह मध्य प्रदेश में शामिल था, तब से ही. 2003 में हम हारे तो अपनी कमजोरी के कारण. वही कमजोरी 2008 और 2013 में भाजपा की मदद करती रही. जिसके चलते हम दोनों चुनाव बहुत ही कम अंतर से हारे.

देश के दूसरे राज्यों के आप चुनाव देखते हैं तो बहुत अंतर होता है. उत्तर प्रदेश के चुनाव देख लें, हरियाणा का चुनाव देख लें, मध्यप्रदेश या पंजाब का चुनाव देख लें, तो सीटों का अंतर बहुत रहता है. इसलिए कहना चाहूंगा कि यदि भाजपा ने विकास किया होता तो अंतर बहुत होता. हम पांच-सात सीटों से ही पीछे रह जाते हैं, वरना हमारी सरकार बन जाती.

मतलब कि आपका कहना है कि रमन सिंह के विकास के दावे खोखले हैं?

बिल्कुल खोखले हैं.

जैसा आप बोल रहे हैं कि तीनों विधानसभा चुनावों में कांग्रेस से एक गलती हुई, वो गलती क्या थी?

अजीत जोगी को मुख्यमंत्री बनाया गया और उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ा गया. उस समय भाजपा द्वारा उन्हें नकली आदिवासी कहा गया. जिससे आदिवासी क्षेत्रों, जैसे कि सरगुजा और बस्तर, में हम 2003 में बुरी तरह हारे. 2008 में भी उन्हीं क्षेत्रों में हारे. लेकिन, 2013 में हम मैदानी हिस्सों में पिछड़ गए जबकि सरगुजा-बस्तर हमारी झोली में गया.

विकास की जहां तक बात है तो याद कराना चाहूंगा कि पूरे हिंदुस्तान में छत्तीसगढ़ का बजट  15 राज्यों से अधिक है. लेकिन, जो गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करने वाली जनसंख्या है, छत्तीसगढ़ के गठन के समय 36 प्रतिशत थी. आज रमन सिंह के राज में 44 प्रतिशत है.

तो गरीबी बढ़ी है, किसानों की संख्या घटी है. कृषि जोत कम हुआ है. नक्सलवाद का प्रभाव बढ़ा है. पहले तीन ब्लॉक में नक्सलवाद फैला था, अब 16 जिलों में फैल गया है. मुख्यमंत्री का गृह जिला कवर्धा इस साल नया जुड़ गया है.

माओवाद की बात करें तो जहां गरीबी, शोषण, भ्रष्टाचार है वहां माओवाद पनपता है. इस पैमाने पर भी देखें तो छत्तीसगढ़ में विकास नहीं हुआ है.

मतलब कि मुख्यमंत्री रमन सिंह जो दावे करते हैं कि राज्य का 9,000 करोड़ रुपये का बजट उन्होंने 83,000 करोड़ रुपये तक पहुंचा दिया. राज्य को नो पॉवर कट स्टेट बना दिया. बिजली उत्पादन 4,000 मेगावाट से 22,000 मेगावाट तक ले आए. क्या उनके ये सारे दावे झूठे हैं?

बिल्कुल झूठे हैं. मेरे पास आंकड़े हैं कि राज्य में निर्माण कार्य के लिए उनके पास केवल 11,000 करोड़ रुपये हैं. लेकिन, एक सभा में वे कहते हैं कि 30,000 करोड़ के निर्माण कार्यों का भूमि पूजन और लोकार्पण किया है.

जब आपके पास बजट में ही 11,000 करोड़ रुपये हैं तो 30,000 करोड़ का भूमि पूजन और लोकार्पण कैसे कर दिया? आंकड़े ही बता रहे हैं कि रमन सिंह झूठ बोल रहे हैं.

दूसरी, ‘नो पावर कट’ की बात करें तो शाम के वक्त आप राज्य के किसी भी गांव में किसी भी किसान को फोन करके पूछिए कि क्या पंप चल रहा है? कोई हां नहीं कहेगा.

शाम के 5 से 11 बजे तक पूरे छत्तीसगढ़ में किसानों को बिजली नहीं मिलती. फिर जीरो पावर कट कहां है? एक हवा का झोंका आता है और एक सप्ताह तक बिजली गोल रहती है. पूरे इलाके के इलाके अंधेरे में डूबे रहते हैं.

इसलिए उनके दावे बस कागजों में हैं, विज्ञापनों में हैं. छत्तीसगढ़ की वो स्थिति नहीं है जो विज्ञापन बताते हैं.

आपने 2003 और 2008 में अजीत जोगी के नेतृत्व में चुनाव लड़ना कांग्रेस की गलती बताया है. अब अजीत जोगी कांग्रेस में नहीं हैं, अपना दल बना चुके हैं, तो क्या आप कह सकते हैं कि इस बार प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनना तय है?

निश्चित रूप से. जोगी अपने अलावा किसी और को कुछ समझते ही नहीं थे और साथ वालों को हराने का काम करते रहे. नकली आदिवासी का उन पर आरोप है. आदिवासी उन्हें अपना मानते नहीं.

वहीं, 2011 में सुप्रीम कोर्ट का आदेश था कि दो महीने के भीतर उनकी जाति तय की जाए, लेकिन रमन सिंह ने जोगी के साथ दोस्ती निभाई. आज 2018 हो गया, सात साल बीत गए, एक आदमी की जाति तय नहीं हो पाई.

मतलब कि रमन सिंह जोगी को और जोगी उनको मदद करते हैं. दोनों एक-दूसरे के मददगार हैं और इसी कारण कांग्रेस को नुकसान हुआ. अब वे खुद ही पार्टी छोड़ गए. अब 2018 में कांग्रेस को सरकार बनाने से कोई नहीं रोक सकता है.

आप विभिन्न मंचों से कहते आए हैं कि जोगी की पार्टी छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस (जोगी कांग्रेस) रमन सिंह की बी टीम है. दूसरी तरफ जोगी कहते हैं कि आप और विधानसभा में कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव रमन सिंह के साथ मिलकर काम करते हैं और रमन सिंह टीएस सिंहदेव पर लगने वाले भ्रष्टाचार के आरोपों में उन्हें और जमीन के सौदों में आपको फायदा पहुंचाते हैं. इस पर क्या कहेंगे?

15 साल से हम सरकार में नहीं हैं, कैसे भ्रष्टाचार करेंगे? भ्रष्टाचार तो रमन सिंह कर रहे हैं. जोगी की जाति का फैसला आज तक क्यों नहीं हुआ? ये सबसे बड़ा सुबूत है. इसी से वे जोगी को ब्लैकमेल कर रहे हैं.

जोगी भी बताएं कि क्यों वे अपने आपको फर्जी सर्टिफिकेट के जरिए आदिवासी बताकर अनुसूचित जनजाति की सुरक्षित सीट से चुनाव लड़ते हैं?

और देखिए कि यही आरोप लगाकर भाजपा ने 2003 का चुनाव लड़ा. यह उनका सबसे बड़ा एजेंडा था. उस एजेंडे के तहत चुनाव जीत गए लेकिन 2003 से लेकर 2018 तक 15 सालों में एक आदमी की जाति तय नहीं कर पा रहे हैं. तो मिला हुआ कौन है, इसी से स्पष्ट हो जाता है.

रही जोगी की बात है तो जब वे सासंद नहीं थे, चुनाव भी हार गए थे, तब कांग्रेस ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाया था. उसके बाद से उनके नेतृत्व में कभी कोई चुनाव नहीं जीते.

वास्तव में जोगी की पार्टी भाजपा की ‘बी’ टीम नहीं, उसकी सहयोगी है.

जोगी कांग्रेस से जुड़े रहे हैं. अब वे नया दल बनाकर राज्य की सभी सीटों से चुनाव लड़ने की बात कर रहे हैं. अंतत: वे कांग्रेस का ही तो वोट काटेंगे और आप नुकसान में रहेंगे.

जी नहीं. यही तो मजेदार बात है. जोगी कांग्रेस में रहकर कांग्रेस का वोट भाजपा को शिफ्ट करते थे. अब उन वोट को वे खुद लेंगे तो भाजपा को फायदा नहीं होगा.

दूसरी बात ये है कि उनके चलते हमारे ओबीसी और सवर्ण वोट हमसे छिटककर भाजपा में चले गए थे. जोगी के हटने से वे सभी वोट हमारे पास आएंगे. इसलिए हमको तो इससे दोहरा फायदा होगा.

छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी, जो कांग्रेस से अलग होकर अब अपना नया दल खड़ा कर चुके हैं, प्रदेश में तीसरी ताकत होने का दावा कर रहे हैं. (फोटो साभार: फेसबुक/अजीत जोगी)
छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी कांग्रेस से अलग होकर अपना नया दल बना चुके हैं और प्रदेश में तीसरी ताकत होने का दावा कर रहे हैं. (फोटो साभार: फेसबुक/अजीत जोगी)

क्या छत्तीसगढ़ में इस बार मुकाबला कांग्रेस बनाम भाजपा ही है या जोगी कांग्रेस के आने से त्रिकोणीय टकराव की उम्मीद है?

छत्तीसगढ़ में क्षेत्रीय दलों का कोई अस्तित्व नहीं रहा है. राज्य में राष्ट्रीय दल ही महत्व पाते हैं. कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी ही राज्य में मुख्य मुकाबले में रहे हैं.

आप जोगी और उनके दल को नजरअंदाज कर रहे हैं. मान लीजिए अगर त्रिशंकु विधानसभा के आसार बनते हैं तो क्या कांग्रेस जोगी से हाथ मिलाएगी?

यह तो काल्पनिक प्रश्न है. ऐसा करने का सवाल ही नहीं उठता. अर्जुन सिंह बहुत ही कद्दावर नेता थे, उन्होंने ‘तिवारी कांग्रेस’ का गठन किया. कितनी सीट जीत पाए? विद्याचरण शुक्ल जनता दल में गए, कितने विधायक जिता पाए? श्यामाचरण शुक्ल ने भी अलग पार्टी बनाई, लेकिन क्या जीते?

बड़े-बड़े नेता जो कभी चुनाव नहीं हारते थे, वे जब पार्टी से अलग हुए तो उनका अस्तित्व समाप्त हो गया.

छत्तीसगढ़ की तासीर यही है कि जनता राष्ट्रीय दल को मतदान करती है. जो कि वहां कांग्रेस या भाजपा हैं. इन दो के अलावा तीसरे का कोई अस्तित्व नहीं है.

एक ओर तो कांग्रेस और जोगी कांग्रेस दोनों ही दलों के नेता एक-दूसरे पर आरोप लगाते हैं, तो दूसरी ओर अजीत जोगी की पत्नी रेणु जोगी कांग्रेस में अब भी शामिल हैं, विधायक हैं और इसके बावजूद वे जोगी कांग्रेस के मंचों पर देखी जाती हैं, वे कांग्रेस में अहम पदों पर भी उस दौरान बनी रहती हैं. यह किस ओर इशारा करता है? क्या ऐसी संभावना है कि उनके माध्यम से अजीत जोगी के लिए भविष्य में कांग्रेस ने अपने द्वार खोल रखे हैं?

पिछले दिनों हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी का छत्तीसगढ़ दौरा हुआ था. उनसे कुछ पत्रकारों ने ऐसा ही प्रश्न पूछा था तो उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि जोगी के लिए कांग्रेस के द्वार पूरी तरह बंद हो चुके हैं.

जहां तक रेणु जोगी की बात है तो वे कांग्रेस विधायक दल की उपनेता थीं. लेकिन, बाद में बनी ऐसी ही स्थितियों के चलते उन्हें पद से हटा दिया गया.

और हां, कोई भी व्यक्ति किसी भी दल में रहे इसके लिए कोई बाध्यता तो होती नहीं. सिंधिया परिवार मे देखिए, एक बहन वसुंधरा राजे भाजपा से राजस्थान की मुख्यमंत्री हैं. दूसरी बहन यशोधरा राजे भाजपा से ही मध्य प्रदेश में मंत्री है और उनके भतीजे ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस में हैं और लोकसभा में हमारे उपनेता हैं.

2013 के विधानसभा चुनावों के ठीक पहले झीरम घाटी कांड में राज्य का कांग्रेसी नेतृत्व एक तरह से खत्म हो गया था. इस लिहाज से कांग्रेस को तब सहानुभूति मिलनी चाहिए थी लेकिन नतीजों में कोई खास अंतर नहीं देखा गया. इस बार कांग्रेस अपने चुनावी अभियान की शुरुआत से ही उस मुद्दे को भुनाने की कोशिश कर रही है, फिर चाहे संकल्प यात्रा निकालना हो या अपने राजनीतिक मंचों पर बयान देना, तो सवाल यह है कि जब 2013 में आप उस मुद्दे को भुना नहीं सके तो क्या अब उस गलती को पांच साल बाद सुधारने की यह कोशिश है?

देखिए, लोगों ने माना वह षड्यंत्र है. तभी तो नंदकुमार पटेल और दिनेश पटेल की जब अंत्येष्टि हुई, उस समय जोगी के वहां पहुंचने पर उनकी गाड़ी पर पथराव हुआ.

चुनावी नतीजों की बात करें तो बस्तर में, जहां महेंद्र कर्मा की शहादत हुई, हम 12 में से 8 सीट जीते. लेकिन, विद्याचरण शुक्ल और नंदकुमार पटेल की शहादत जिन इलाकों में हुई, वहां हम बुरी तरह हारे.

उन क्षेत्रों में हमसे गलती यह हुई है कि हमने उनके समर्थकों को टिकट नहीं दिया. इस कारण जनता ने हमें नकार दिया. दूसरी बात कि यह बिल्कुल सही है कि प्रथम पंक्ति के हमारे सारे नेता शहीद हो गए. हमें बड़ा नुकसान हुआ. कार्यकर्ता हतोत्साहित और दुखी थे. वैसा माहौल बन ही नहीं पाया जो चुनाव के समय गुस्सा होना चाहिए था. नतीजतन, मैदानी हिस्सों में हम हार गए.

वहीं, झीरम घाटी मामले में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने जांच की, कांग्रेस की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार ने उसका गठन किया. अंतिम रिपोर्ट सबमिट होता, तब तक नरेंद्र मोदी की सरकार बन चुकी थी. मोदी सरकार बनने के कई महीनों बाद वो रिपोर्ट सबमिट की गई. उसमें कहीं भी षड्यंत्र का उल्लेख नहीं है. कोई आरोपी पकड़ा नहीं गया. किसी को आरोपी बनाया नहीं गया.

मुंबई के ताज होटल पर हुए आंतकी हमले में पाकिस्तान में बैठे लोगों को आरोपी बनाया गया. लेकिन, झीरम घाटी में घटना के बाद नक्सलियों के बड़े नेताओं को आरोपी नहीं बनाया गया.

वह कोई छोटे-मोटे नक्सलियों के बस की बात नहीं थी, जब तक कि बड़े लोग उसमें शामिल नहीं होते.

पूरा प्रदेश ही नहीं, पूरा देश मानता है कि षड्यंत्र हुआ था. लेकिन जो जांच आयोग बनाया गया, उसके जांच बिंदुओं में भी षड्यंत्र नहीं था.

पर वास्तव में सुपारी किलिंग थी वो, साधारण नक्सली घटना नहीं. भारत तो क्या पूरी दुनिया में ऐसी मिसाल नहीं मिलेगी, जहां राजनेताओं का नरसंहार किया हो. ये अकेले झीरम घाटी है जहां इस प्रकार से घटना घटी.

विधानसभा में मैंने यह बात रखी, पूरा सदन सहमत हुआ. उसके बाद राज्य सरकार ने बाध्य होकर सीबीआई जांच की घोषणा की. लेकिन, दुर्भाग्य कि केंद्र सरकार ने जांच कराने से इनकार कर दिया.

आपने कहा कि नंदकुमार पटेल और दिनेश पटेल की अंत्येष्टि के मौके पर जब जोगी पहुंचे तो उनकी गाड़ी पर पथराव हुआ, क्या इसका मतलब यह निकाला जाए कि उस कथित षड्यंत्र में वे भी शामिल थे?

मैं यह बिल्कुल नहीं कहता हूं, लेकिन लोगों में जो धारणा है, चौक-चौराहों पर चर्चा है कि किसने षड्यंत्र किया और क्यों? किसने हमला करवाया? ऐसी बातें आम जनमानस में रही हैं.

झीरम घाटी कांड की जांच के बारे में आपने कहा कि उसको लटकाया जा रहा है. अब तक कुछ तो निष्कर्ष निकलकर आए होंगे?

कुछ निष्कर्ष नहीं निकला है. किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई. कुछ छोटे-छोटे लोगों की गिरफ्तारी हुई, फिर छोड़ दिया. आंध्र प्रदेश में नक्सली गुडसा उसेंडी आत्मसमर्पण करता है. छत्तीसगढ़ पुलिस या एनआईए अदालती आदेश के बाद भी उससे पूछताछ नहीं करते. जिस जज ने आदेश दिया, उसका तबादला कर दिया गया.

आज वे शायद बर्खास्त हैं. कहने का मतलब है कि जो भी झीरम घाटी कांड की तह में जाने की कोशिश करता है, उसको हटा दिया जाता है.

छत्तीसगढ़ की राजनीति का ट्रेंड है कि सिटिंग एमएलए कम जीतते हैं. इस लिहाज से टिकट वितरण के मामले में कांग्रेस क्या सावधानी बरत रही है? किन उम्मीदवारों को प्राथमिकता दी जाएगी और उनकी योग्यता का क्या पैमाना होगा?

एंटी इनकंबेंसी दो तरीके से है, एक तो विधायकों के खिलाफ और दूसरा सरकार के खिलाफ. भाजपा ने पिछले दो चुनावों से अपनी सरकार के खिलाफ होने वाली एंटी इनकंबेंसी से विधायक उम्मीदवार के प्रत्याशियों को बदलकर निपटा. हम लोगों ने ऐसा नहीं किया. जिसका हमें खामियाजा भुगतना पड़ा.

इसलिए इस बार हमने तैयारी की है कि अब केवल प्रत्याशी के नहीं, संगठन के माध्यम से लड़ाई लड़ेंगे. संगठन के माध्यम से चुनाव लड़ेंगे तो सफलता शत प्रतिशत मिलेगी. इसलिए पूरे प्रदेश में बूथ स्तर पर कार्यकर्ताओं का प्रशिक्षण चलाया जा रहा है.

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह जिनके नेतृत्व में 15 सालों से राज्य में भाजपा की सरकार है. (फोटो साभार: फेसबुक/ रमन सिंह)
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह जिनके नेतृत्व में 15 सालों से राज्य में भाजपा की सरकार है. (फोटो साभार: फेसबुक/ रमन सिंह)

चर्चाएं ये भी हैं कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस गुटबाजी का शिकार है, कई चेहरे खुद को मुख्यमंत्री बनते देखना चाहते हैं. कई तो खुलकर अपनी दावेदारी भी पेश कर रहे हैं. मांग ये भी है कि मुख्यमंत्री कोई आदिवासी नेता हो, तो क्या यह गुटबाजी कांग्रेस को नुकसान नहीं पहुंचाएगी?

कांग्रेस में सबसे ज्यादा गुटबाजी अजीत जोगी के समय थी. वे खुद चले गए तो गुटबाजी बहुत कम बची. लेकिन भाजपा में भयानक गुटबाजी और आपसी लड़ाई है. कोई किसी से बातचीत नहीं करता. कांग्रेस में ऐसे हालात नहीं हैं. हम एकजुट होकर काम कर रहे हैं. थोड़ी-बहुत कहीं कोई समस्या आती है तो मिल-बैठकर उसे दूर कर लेते हैं. मैं नहीं समझता कि कांग्रेस में गुटबाजी अब उस स्तर की है जैसी पहले थी.

अगर गुटबाजी की स्थिति नहीं है तो क्या ऐसा माना जाए कि कांग्रेस छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री के चेहरे के साथ चुनाव लड़ने जा रही है?

यह विषय हमारे राष्ट्रीय नेतृत्व का है, प्रदेश का नहीं. वे क्या निर्णय लेंगे, उन पर निर्भर करता है. जहां तक कांग्रेस की परंपरा की बात है तो पार्टी जहां सत्ता में नहीं है, वहां बहुत कम ही जगह कोई चेहरा प्रस्तुत करती है. हम सामूहिक नेतृत्व से लड़ते हैं. विधायक चुनकर आते हैं, विधायक दल की बैठक होती है, हाईकमान पर्यवेक्षक भेजते हैं. सब मिलकर तय कर लेते हैं.

लेकिन ये परंपरा पंजाब में तोड़ी गई थी?

अपवादस्वरूप कहीं-कहीं ऐसा होता है, लेकिन अधिकांश जगह हम चेहरा घोषित नहीं करते. मैंने पहले ही कहा कि यह विषय हाईकमान का है, हमारा नहीं.

इस बार पेश करने के लिए कांग्रेस के पास ऐसा क्या नया है जिसके सहारे वह जनता को अपनी ओर आकर्षित कर सके, भाजपा को छत्तीसगढ़ से उखाड़ फेंके या पार्टी बस भाजपा के खिलाफ होने वाली एंटी इनकंबेंसी के सहारे ही है?

नहीं, ऐसा नहीं है. हम उनके भरोसे नहीं हैं. वे अपने कर्मों से जाएंगे. मैंने शुरुआत में ही कहा कि हम आम जनता की लड़ाई लड़ रहे हैं. गरीब, किसान, बेरोजगार, आदिवासियों के साथ खड़े रहे हैं. नोटबंदी-जीएसटी के समय सोना-चांदी के व्यापारियों पर जब कर लगाया गया,  हम उनके साथ भी खड़े रहे. कांग्रेस पार्टी ने सभी वर्गों का विश्वास जीता है. यही विश्वास हमारी पूंजी है जिसके बदौलत चुनाव लड़ेंगे.

जनता के साथ खड़ा होना तो विपक्ष का दायित्व है ही, इसमें कुछ नया नहीं. लेकिन, छत्तीसगढ़ जैसे संवेदनशील राज्य के लिए जरूरी है कि जनता के सामने पेश करने के लिए कुछ विशेष योजनाएं हों, प्रस्तुत करने के लिए कुछ ऐसे कार्यक्रम हों जिससे प्रदेशवासियों को अपनी समस्याओं का समाधान मिल सके और जनता को लगे कि हमें कांग्रेस के साथ जाना चाहिए?

बात बिल्कुल सही है. इसलिए बताना चाहूंगा कि छत्तीसगढ़ वह राज्य है जिसका बजट देश के 15 राज्यों से अधिक है. लेकिन बजट का पैसा आम जनता तक न पहुंचकर कमीशनखोरी में जा रहा है. हम वो पैसा आम जनता तक पहुंचाएंगे. मजदूर, किसान, गरीब, अनुसूचित जाति/जनजाति के लिए बनी योजनाओं में पहुंचाएंगे.

जैसे कि फसल बोनस की बात है, सबसे पहले 2008 में हमने मामला उठाया. हमने 250 रुपये का बोनस किसानों को देने की बात कही, रमन सिंह ने 270 कह दिया. लेकिन, अब जनता जान चुकी है कि ये घोषणा बहुत कर देते हैं, देते नहीं है. लेकिन कांग्रेस हर साल बोनस भी देगी और धान भी खरीदेगी. लोगों को रोजगार मुहैया कराएंगे.

यूपीए सरकार की मनरेगा योजना का लाभ लोगों को मिल रहा था, आज मनरेगा कहीं नहीं है. शौचालय का पैसा तक नहीं मिल रहा है, लाखों करोड़ रुपये डकार गए. हम यूपीए की योजनाएं वापस लाएंगे. हमारी अपनी योजनाएं होंगी, जिन्हें हम घोषणा-पत्र में शामिल करेंगे कि हम क्या-क्या करने वाले हैं?

वहीं, छत्तीसगढ़ में पैसे की कोई कमी नहीं है. यहां खनिज बहुत है. लोहा, कोयला, बॉक्सइट, सोना, हीरा, दुनिया के जितने प्रकार के खनिज हैं, लगभग सभी छत्तीसगढ़ में मिलते हैं. इसलिए राज्य के विकास में रमन सिंह का कोई योगदान नहीं है. विकास तो होना ही होना है. बल्कि वे जो चोरी-डकैती करवा रहे हैं, उसको रोक लेंगे तो हमारा बजट और बढ़ जाएगा और पैसा जनता तक पहुंचेगा.

हमने हालिया कर्नाटक और गुजरात विधानसभा चुनाव, साथ ही पिछले कुछ उपचुनावों, जैसे कि उत्तर प्रदेश के कैराना और गोरखपुर में विपक्षी एकता की एक तस्वीर देखी. क्या वही तस्वीर छत्तीसगढ़ में भी देखने को मिलेगी?

यहां जोगी तो रमन सिंह के साथ हैं. उनकी पार्टी के उम्मीदवार भी भाजपा, अमित शाह और रमन सिंह तय करेंगे कि किसको कहां खड़ा करने से कांग्रेस को कितना नुकसान होगा.

छत्तीसगढ़ में आम आदमी पार्टी (आप) का कोई अस्तित्व है नहीं. वे भी भाजपा को ही मदद करने छत्तीसगढ़ आए हैं.

बची बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (जीजीपी), अगर राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन की कोई बात होती है तो हम स्वागत करेंगे, अन्यथा छत्तीसगढ़ में कांग्रेस बहुत मजबूत है, 90 सीटों पर अकेले लड़ने में सक्षम है.

आप नक्सलवाद के मोर्चे पर रमन सिंह सरकार के कामकाज को किस तरह देखते हैं, वे कहां विफल हुए? और कांग्रेस के पास नक्सली समस्या के समाधान के लिए क्या एजेंडा है?

पहली बात कि आज राज्य और केंद्र दोनों ही जगह भाजपा की सरकार है. अब वे बताएं कि नक्सलवाद राज्य की समस्या है या केंद्र की समस्या है? दूसरी बात, नक्सलवाद को केवल बंदूक के दम पर आप नहीं खत्म कर सकते हैं. लोगों का विश्वास आपको जीतना होगा और लोगों का विश्वास रमन सरकार ने खो दिया है.

जब तक कि आप लोगों का विश्वास नहीं जीतेंगे, लोग जो चाहते हैं वो काम आप नहीं करेंगे, तो फिर आप नक्सलवाद को समाप्त नहीं कर सकते.

ये सामाजिक-आर्थिक समस्या है. लोगों को उनका अधिकार मिलना चाहिए. उनको उनके अधिकारों से वंचित कर रखा है. उन्हें लूट रहे हैं. उनको दबा रहे हैं, उनके साथ अन्याय कर रहे हैं. महिलाओं के साथ दुराचार हो रहा है, नौजवान ठगा हुआ महसूस कर रहा है. तो बात अधिकार देने की है, उनको दीजिए. उनको काम में लगाइए. लेकिन, रमन सिंह पंद्रह साल में उन्हें काम नहीं दे सके. क्योंकि उनकी दृष्टि ही गलत है, दृष्टिकोण ही गलत है, तो कार्यान्वयन भी गलत ही होगा.

बस्तर छत्तीसगढ़ का सबसे अधिक नक्सल प्रभावित इलाका रहा है, सरकार ने हाल ही में वहां स्थानीय युवाओं को ट्रेनिंग देकर एक बस्तरिया बटालियन का गठन किया है जो बस्तर के जंगलों में नक्सलवाद के खिलाफ सेना के साथ मोर्चा संभालेगी. इस पर क्या कहेंगे? सलवा जुडूम में भी तो कुछ ऐसा ही हुआ था कि आम युवाओं के हाथ में हथियार थमा दिए गए थे.

सलवा जुडूम में जब तक सरकार नहीं घुसी थी, तब तक सब ठीक था, लेकिन सरकार के कूदने से उसकी दिशा ही बदल गई. उस समय भी कोया कमांडो का गठन किया गया था. लेकिन समस्या तो खत्म नहीं हुई. तो सवाल इस बात का है कि आप जिस दिशा में जा रहे हैं, जिस फॉर्मूले से गणित हल करना चाहते हैं, वो फॉर्मूला ही गलत है तो परिणाम तो गलत ही मिलेंगे.

अभी भी केंद्र हो या राज्य सरकार, बंदूक की नोक से ही नक्सल समस्या का हल खोज रहे हैं, जो कि कभी समाप्त नहीं हो सकता.

देशभर में किसान आंदोलित है. छत्तीसगढ़ भी अछूता नहीं है. जब धान के कटोरेमें भी किसान आंदोलन करने मजबूर हों तो प्रश्न है कि उनकी दशा सुधारने क्या किया जाना चाहिए? कांग्रेस के पास क्या नीति है और रमन सिंह वो क्या नहीं कर पाए जो किया जाना चाहिए था जिससे कि किसान आंदोलित नहीं होता?

छत्तीसगढ़ एक फसली राज्य है. धान की एक फसल होती है बस, उसके बाद कोई दूसरी फसल नहीं होती.

यहां 43 नदियां हैं. लेकिन, नदी का पानी खेत की तरफ मोड़ने के बजाय पॉवर प्लांट को दिया जा रहा है.

एक अन्य बात कि छत्तीसगढ़ में धान उत्पादन की लागत अन्य प्रदेशों से अधिक होती है. इसलिए हमने बोनस देने की बात कही. लेकिन, अब बोनस मिलना बंद हो गया,  धान खरीदी का न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिल रहा. फसल के लिए पानी नहीं है. इसलिए किसान आंदोलित है और आत्महत्या कर रहा है. वह सूदखोरों के चंगुल में फंसा हुआ है. मुख्यमंत्री के गृह जिले में सर्वाधिक आत्महत्या हुई हैं.

लेकिन सरकार क्या कर रही है? इसका नमूना देखिए कि सरकार ने कहा कि राज्य में जल स्तर बहुत तेजी से गिर रहा है तो धान की खेती न करें, चना बोएं. कोई अन्य फसल बोएं. किसानों ने चना बोया. सरकार ने चने का समर्थन मूल्य 4500 रुपये कर दिया. लेकिन, किसानों को 2700 और 3000 रुपये मे बेचना पड़ रहा है.

वहीं, दूसरी तरफ जब सरकार को अपनी योजनाओं के तहत चना बांटने के लिए खरीदी करनी होती है तो छह या सात हजार रुपये के मूल्य पर बाजार से खरीदा जाता है और किसान का जो चना है वो 2700 या 3000 रुपये में बिक रहा है तो आक्रोशित तो होना स्वाभाविक है.

समाधान यही है कि किसान को कृषि उपज का उचित मूल्य मिले. उसकी उपज खरीदने की व्यवस्था कीजिए. नकद खरीद रहे हैं तो बाजार उपलब्ध कराइए. राज्य में टमाटर का खूब उत्पादन होता है. यहां का टमाटर पाकिस्तान तक जाता है. दूसरे देशों में भी जाता है. लेकिन, पिछले साल किसानों ने टमाटर सड़क पर फेंक दिए.

क्योंकि सरकार ने पंद्रह सालों में कोई व्यवस्था नहीं की. फूड प्रोसेसिंग यूनिट तक नहीं लगाया है. इससे किसानों को जबरदस्त नुकसान हो रहा है. वे फल और सब्जी उगाने का सोचें तो इस तरह नुकसान उठा रहे हैं.

छत्तीसगढ़ किसानों का प्रदेश है और किसानों की बेहतरी के लिए प्रयास किया जाना चाहिए था. बहुत पैसा है, खूब बजट है लेकिन केवल कमीशनखोरी और भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रहा है. अगर उस बजट की दिशा किसानों की तरफ मोड़ी जाए, नदी का पानी खेतों की तरफ मोड़ा जाए तो किसान भी समृद्ध होगा और रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे.

राज्य में पत्थलगढ़ी हाल ही में चर्चा में रहा. इसके माध्यम से आदिवासी पांचवीं अनुसूची को जहां पूरी तरह लागू कराने की मांग कर रहे हैं, वहीं रमन सिंह कहते हैं कि इसके पीछे धर्मांतरण कराने वाली ताकतें हैं और वे विकासगढ़ी का नारा देते है. आप क्या कहना चाहेंगे?

इतिहास में जाएं तो पत्थलगढ़ी बस्तर में 1955 के आसपास से होते रहे हैं.  हर गांव की सीमा में इसी प्रकार से पत्थर गाढ़े जाते थे. हाल में जसपुर जिले में यह स्थिति बनी.

हुआ यूं कि गांव के लोग कलेक्टर के पास गए. उन्होंने आवेदन दिया कि हमारे गांव में सड़क और बिजली नहीं हैं, पुलिया बह गया है इसलिए बच्चों को स्कूल आने-जाने में तकलीफ होती है.

ये तीन मांग उनकी थीं,  नहीं पूरी हुईं.

तो जो विकास के दावे वे करते हैं, प्रधानमंत्री हर गांव में बिजली पहुंचाने की बात कर रहे हैं, लेकिन बिजली पहुंची नहीं है, सड़क बनी नहीं, पुलिया टूटी हुईं हैं. इससे आक्रोशित होकर उन्होंने पत्थलगढ़ी का फैसला किया. महत्वपूर्ण बात यह भी है कि राज्य में पेसा कानून और वनाधिकार कानून का पालन नहीं हो रहा है. इसलिए, रमन सिंह के कुशासन की देन है पत्थलगढ़ी.