केंद्र सरकार ने इससे पहले सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम द्वारा जस्टिस जोसेफ की सिफारिश को वापस भेज दिया था. सरकार का तर्क था कि जस्टिस जोसेफ से सीनियर कई जज हैं, जिन्हें मौका मिलना चाहिए.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम की लगातार सिफारिश और लंबे समय तक चले टकराव के बाद केंद्र की सत्तारूढ़ नरेंद्र मोदी सरकार ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस केएम जोसेफ को सुप्रीम कोर्ट में भेजने का निर्णय ले लिया है.
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, केंद्र सरकार ने जस्टिस केएम जोसेफ के अलावा मद्रास हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इंदिरा बनर्जी और उड़ीसा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस विनीत सरन को सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त करने के लिए कॉलेजियम की सिफारिश स्वीकार कर ली है.
बता दें कि इससे पहले केएम जोसेफ की नियुक्ति को लेकर काफी विवाद चल रहा था. केंद्र सरकार ने 10 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम द्वारा जस्टिस जोफेस का नियुक्ति के लिए भेजी गई सिफारिश को 26 अप्रैल वापस भेज दिया था.
जस्टिस जोसेफ के साथ वरिष्ठ वकील इंदु मल्होत्रा ने नाम की भी सिफारिश की गई थी. हालांकि सरकार ने इंदु मल्होत्रा के नाम पर सहमति जताई थी और उन्हें सुप्रीम कोर्ट नियुक्त कर दिया गया था.
सरकार का तर्क था कि जस्टिस जोसेफ के अलावा अन्य हाईकोर्ट के जज उनसे काफी सीनियर हैं और अन्य राज्यों के जजों को सुप्रीम कोर्ट में लाया जाना चाहिए क्योंकि उनका प्रतिनिधित्व कम है. बता दें कि केएम जोसेफ केरल से हैं.
हालांकि कॉलेजियम ने सरकार के इन तर्कों को अपर्याप्त माना और दोबारा से केएम जोसेफ के नाम की सिफारिश की. इस बार सरकार ने कॉलेजियम से सहमति जताते हुए जस्टिस जोसेफ को सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त करने का निर्णय लिया है.
सूत्र ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि कॉलेजियम ने सरकार के तर्क को भी जगह दी है इसलिए जस्टिस विनीत सरन और जस्टिस इंदिरा बनर्जी के नामों की सिफारिश की गई थी. ये भी बताया जा रहा है कि सरकार ने कॉलेजियम द्वारा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के पद पर नियुक्ति के लिए नामों की सिफारिश पर जल्द फैसला लेने का निर्णय लिया है.
केएम जोसेफ की नियुक्ति को लेकर हुई देरी के कारण केंद्र सरकार और न्यायपालिका के बीच टकराव की स्थिति पैदा हो गई थी.
12 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट के चार सबसे सीनियर जज जस्टिस जे. चेलमेश्वर (अब रिटायर हो चुके हैं), जस्टिस रंजन गोगोई, मदन बी. लोकुर और कुरियन जोसेफ ने प्रेस कांफ्रेस करके चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की कार्यशैली पर सवाल उठाया और कहा कि हालिया घटनाक्रमों की वजह से लोकतंत्र खतरे में है.
इसके बाद, केएम जोसेफ और मल्होत्रा की नियुक्ति में हो रही देरी की वजह से जस्टिस चेलमेश्वर ने 21 मार्च को सुप्रीम कोर्ट के सभी जजों को पत्र लिखा और मांग की कि फुल कोर्ट मीटिंग बुलाकर जजों की नियुक्ति में सरकार की हस्तक्षेप पर चर्चा हो.
इस मामले को लेकर 9 अप्रैल को कॉलेजियम के एक अन्य सदस्य जस्टिस कुरियन जोसेफ ने भी चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा और अन्य सभी जजों को पत्र लिखकर कड़े शब्दों में इसकी आलोचना की.
उन्होंने कहा कि सात जजों की पीठ गठित करके इस मामले को सुना जाना चाहिए कि आखिर क्यों सरकार कॉलेजियम द्वारा सिफारिश की गई जस्टिस जोसेफ और इंदु मल्होत्रा के नामों पर चुप बैठी हुई है.
जस्टिस जोसेफ ने लिखा, ‘प्रशासनिक कानून में अपने कर्तव्यों को न निभाना शक्तियों का दुरूपयोग है. कॉलेजियम द्वारा की गई सिफारिश पर कोई फैसला न लेना ये सभी जजों को संदेश देता है कि अगर आपने कार्यपालिका को नाखुश किया तो इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा. क्या ये न्यायपालिका के स्वतंत्रता पर हमला नहीं है?’
कॉलेजियम के दो अन्य सदस्य जस्टिस रंजन गोगोई और मदन लोकुर ने भी इसी तरह का पत्र लिखा था और मुख्य न्यायाधीश से मांग की कि वे संस्थागत मुद्दों और न्यायपालिका की भविष्य पर चर्चा के लिए फुल कोर्ट को बुलाएं.