राज्यों के पास एससी/एसटी के सरकारी नौकरियों में प्रतिनिधित्व के आंकड़े नहीं: सुप्रीम कोर्ट

पांच जजों की संविधान पीठ सरकारी नौकरियों में पदोन्नति में आरक्षण संबंधी मामले पर सुनवाई कर रही है.

(फोटो: पीटीआई)

पांच जजों की संविधान पीठ सरकारी नौकरियों में पदोन्नति में आरक्षण संबंधी मामले पर सुनवाई कर रही है.

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नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को केंद्र से पूछा कि क्रीमीलेयर पर उसके फैसले के 12 साल बाद भी राज्य सरकारी सेवाओं में अनुसूचित जाति (एससी) एवं अनुसूचित जनजाति (एसटी) समुदायों के अपर्याप्त प्रतिनिधित्व पर फैसला करने के लिए कोई गणना योग्य आंकड़े पेश क्यों नहीं कर पाए हैं.

शीर्ष अदालत ने यह सवाल उस समय पूछा जब केंद्र ने कहा कि 2006 के एम. नागराज मामले के फैसले ने पिछड़ापन, अपर्याप्त प्रतिनिधित्व और कुल प्रशासनिक क्षमता जैसे मानदंडों पर पदोन्नति को लगभग रोक दिया है और इस पर बड़ी पीठ को फिर से विचार करने की जरूरत है.

नागराज मामले में सरकारी नौकरियों में पदोन्नति में एससी-एसटी वर्गों को आरक्षण के लिए क्रीमीलेयर के मुद्दे पर विचार किया गया था.

केंद्र ने हालांकि कहा कि इन मानदंडों को हटाया जाना चाहिए क्योंकि एससी-एसटी वर्ग को पिछड़ा माना जाता है और यह साबित करने के लिए गणना योग्य आंकड़ों की जरूरत नहीं है कि इन वर्गों के कर्मचारी पिछड़े हैं.

प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने स्पष्ट किया कि संविधान पीठ के पास आया संदर्भ आदेश बहुत सीमित है जिसमें पूछा गया है कि एम. नागराज मामले के फैसले पर फिर से गौर करने की जरूरत है या नहीं?

पीठ ने कहा कि केंद्र की राय है कि 2006 के फैसले पर फिर से विचार करने की आवश्यकता है.

पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ इस विषय पर गौर कर रही है कि सरकारी नौकरियों में पदोन्नति में एससी-एसटी वर्गों को आरक्षण के लिए क्रीमीलेयर के मुद्दे पर विचार करने वाले 12 साल पुराने फैसले पर सात न्यायाधीशों की पीठ द्वारा फिर से विचार करने की जरूरत है या नहीं?

सरकारी नौकरी में मिलने वाले प्रमोशन में आरक्षण देने के इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने शुक्रवार को सुनवाई शुरू की है. इस मामले में बहस की शुरुआत करते हुए अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने अदालत को बताया कि 2006 में नागराज मामले में आया फैसला एससी/एसटी कर्मचारियों के प्रमोशन में आरक्षण दिए जाने में बाधा डाल रहा है, लिहाजा इस फैसले पर फिर से विचार की जरूरत है.

इस दौरान अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि प्रमोशन में आरक्षण देना सही है या गलत, इस पर टिप्पणी नहीं करना चाहता लेकिन यह तबका 1000 से अधिक सालों से प्रताड़ना झेल रहा है. उन्होंने कहा कि नागराज मामले में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ को फैसले की समीक्षा की जरूरत है.

केंद्र ने कहा कि एससी-एसटी पहले से ही पिछड़े हैं इसलिए पदोन्नति में आरक्षण देने के लिए अलग से किसी आंकड़े की जरूरत नहीं है. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र के अटॉर्नी जनरल से कहा कि बताया जाए कि नागराज मामले में दी गई वह व्यवस्था कैसे गलत है कि आरक्षण देने से पहले उनका सामाजिक आर्थिक डाटा देखा जए कि वे पिछड़ेपन के शिकार हैं या नहीं?

2006 के एम. नागराज केस में कहा गया था कि प्रमोशन में आरक्षण देते वक्त भी क्रीमीलेयर जैसी दूसरी बातों और 50 प्रतिशत की लिमिट का ध्यान रखा जाए. ऐसे आंकड़े पर भी गौर किया जाए जिससे साबित होता हो कि संबंधित राज्य में एससी, एसटी पिछड़े हैं और सरकारी सेवाओं में उनका प्रतिनिधित्व पर्याप्त नहीं है.

ताजा मामले में मध्य प्रदेश के याचिकाकर्ताओं ने नागराज केस के आधार पर एससी-एसटी समुदाय के पिछड़ेपन के टेस्ट पर पुनर्विचार करने की मांग की है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)