एमडीएमके प्रमुख वाइको ने राजद्रोह के आठ साल पुराने मामले में सोमवार को चेन्नई की एक अदालत में आत्मसमर्पण किया और जमानत मांगने से इंकार कर दिया जिसके बाद उन्हें 15 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.
वाइको ने मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट एस. गोपीनाथन के समक्ष आत्मसमर्पण किया और 2009 के एक समारोह में भाषण देने के लिए उनके ख़िलाफ़ दर्ज राजद्रोह मामले में अपनी कथित भूमिका के लिए अदालत के समक्ष आत्मसमर्पण याचिका दायर की.
उन्होंने अपने भाषण में श्रीलंका के तत्कालीन गृह युद्ध को लेकर केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ आलोचनात्मक टिप्पणी की थी. अदालत के समक्ष आत्मसमर्पण और फिर जमानत की मांग नहीं कर उन्होंने हर किसी को चौंका दिया.
मजिस्ट्रेट ने जमानत पर वाइको को रिहा करने की पेशकश की लेकिन उन्होंने इसके लिए आवेदन करने से इंकार कर दिया. इसके बाद अदालत ने उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया.
वाइको को बाद में पुझल स्थित केंद्रीय जेल ले जाया गया.
पुलिस के अनुसार, प्रतिबंधित लिट्टे के प्रति सहानुभूति रखने वाले वाइको ने भारतीय संप्रभुता का कथित रूप से उल्लंघन किया था. उनके ख़िलाफ़ 2010 में आरोप पत्र दाखिल किया गया था.
साल 2009 में उन्होंने प्रतिबंधित लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (लिट्टे) के समर्थन में भाषण दिया था. लिट्टे भारत में भी प्रतिबंधित है. उसी साल श्रीलंकाई सेना ने लिट्टे के ख़िलाफ़ अभियान शुरू किया था.
श्रीलंका में कई दशकों से लिट्टे पृथक तमिल राज्य बनाने की मांग को लेकर हथियादबंद संघर्ष कर रहा था. उस साल सेना की कार्रवाई के बाद इस संगठन को ख़त्म किया जा चुका है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)