उच्चतम न्यायालय ने सोशल मीडिया साइट वॉट्सऐप की निजता नीति के मामले को एक संविधान पीठ के पास भेज दिया जो 18 अप्रैल को इस मामले पर सुनवाई करेगी.
प्रधान न्यायाधीश जेएस खेहर और न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने कहा कि सभी पक्षों को संविधान पीठ के समक्ष पेश होना चाहिए और सुनवाई के लिए सामने आने वाले मामलों को तय करना चाहिए.
न्यायालय ने 16 जनवरी को केंद्र और दूरसंचार नियामक ट्राई से उस याचिका पर प्रतिक्रिया देने को कहा था, जिसमें कहा गया था कि वॉट्सऐप और फेसबुक जैसी सोशल मीडिया साइटें निजी संवाद के कथित वाणिज्यिक इस्तेमाल के लिए 15 करोड़ 70 लाख भारतीयों की निजता का उल्लंघन कर रही हैं.
हालांकि फेसबुक का पक्ष रख रहे अधिवक्ता ने उच्चतम न्यायालय के इस फैसले का विरोध किया. न्यूज़ 18 की रिपोर्ट के मुताबिक, फेसबुक का पक्ष रख रहे अधिवक्ता ने कहा कि यह मसला पूरी तरह से अनुबंध का है. इसकी सुनवाई के लिए किसी संविधान पीठ के निर्माण की ज़रूरत नहीं है. वहीं याचिकाकर्ताओं ने अपना पक्ष रखते हुए उच्चतम न्यायालय से कहा है कि यह संविधान के अनुच्छेद 21 (प्राण और दैहिक स्वतंत्रता) और अनुच्छेद 19 (1) (अ) यानी वाक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जुड़ी मसला है.
उच्चतम न्यायालय इंजीनियरिंग छात्रा काम्या सिंह सरीन और लॉ की पढ़ाई कर रही श्रेया सेठी की याचिका पर सुनवाई कर रहा है.
इससे पहले दिल्ली उच्च न्यायालय ने वॉट्सऐप पर यह रोक लगा दी थी कि वह 25 सितंबर 2016 तक की सूचना फेसबुक से साझा नहीं करेगी. इसकी नई निजता नीति 25 सितंबर, 2016 को ही प्रभाव में आई थी.
अदालत ने पिछले साल सितंबर में वॉट्सऐप को आदेश दिया था कि वह 25 सितंबर 2016 से पहले सेवा का इस्तेमाल करना छोड़ चुके लोगों की सूचना (डेटा) को डिलीट कर दे.
अदालत ने केंद्र एवं ट्राई को आदेश दिया था कि वह वॉट्सऐप जैसी इंटरनेट मैसेजिंग एप्लीकेशन की कार्य प्रणाली को वैधानिक नियामक ढांचे के तहत लाने की व्यवहार्यता का पता लगाए.
वॉट्सऐप ने पहले उच्च न्यायालय को सूचित किया था कि जब कोई यूजर अकाउंट डिलीट करता है तो उस व्यक्ति की सूचना उसके सर्वर पर नहीं रहती.