केंद्र सरकार की यह प्रतिक्रिया कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी के उस बयान के बाद आई जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि सरकार आरटीआई अधिनियम को बदलने की कोशिश कर रही है.
बुधवार को एक बयान में सरकार ने कहा कि आरटीआई के प्रावधानों को हलका करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया जा रहा. आरटीआई नियम में प्रस्तावित संशोधन 15 अप्रैल, 2017 तक जनता की प्रतिक्रिया के लिए उपलब्ध है और इस मामले में जनता से मिली प्रतिक्रियाओं को ध्यान में रखकर ही इन्हें अंतिम रूप दिया जाएगा.
संशोधनों पर अपनी टिप्पणी विभाग को ऑनलाइन या पत्र के माध्यम से भेजी जा सकती है. बयान में कहा गया, आरटीआई के प्रावधानों को हलका करने के कदम के आरोप कहीं नहीं मिले. केंद्र सरकार ने सवाल पूछने की सीमा 500 शब्द करने और आवेदनकर्ता से ली जाने वाली फीस बढ़ाने की बात का भी खंडन किया है.
कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया है, ‘सूचना के अधिकार से संबंधित वर्तमान नियमों की एक प्रति कार्मिक और प्रशिक्षण मंत्रालय की आधिकारिक वेबसाइट पर उपलब्ध है. इसमें बताए गए नियम के अनुसार आरटीआई आवेदन साधारणतया 500 शब्दों से ज्यादा नहीं होगा (अपवादों को छोड़कर). इसके अलावा हर आवेदनकर्ता से न्यूनतम फीस ली जाएगी. ये नियम साल 2012 में ही बनाया और अधिसूचित किया गया था.’
सरकार की यह प्रतिक्रिया कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी के उस बयान के बाद आई जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि मोदी सरकार इसके नियमों को तोड़-मरोड़ कर चुपके से जानकारी हासिल करने को आम लोगों की पहुंच से दूर करने के लिए आरटीआई अधिनियम को पलटने की कोशिश कर रही है.
सरकार ने कहा कि मीडिया के एक वर्ग में तथ्यात्मक रूप से गलत और भ्रामक ख़बर आई है कि सूचना के अधिकार अधिनियम के नए नियम बनाये जा रहे हैं जो सरकार से आम लोगों के सूचना हासिल करने के अधिकार में मुश्किलें और बाधा खड़ी करेंगे.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)