पटना में एससी-एसटी एक्ट के तहत दायर मामले में राजस्थान के पत्रकार दुर्ग सिंह राजपुरोहित को निजी मुचलके पर जमानत मिल गई है.
पटना/बाड़मेर: एक महादलित युवक से कथित मारपीट व गालीगलौज के मामले में पटना के एससी-एसटी कोर्ट के वारंट पर गिरफ्तार किए गए राजस्थान के पत्रकार दुर्ग सिंह राजपुरोहित को कोर्ट ने शुक्रवार को निजी मुचलके पर जमानत दे दी.
दुर्ग सिंह राजपूत को 19 अगस्त को राजस्थान के बाड़मेर की पुलिस ने पटना के एससी-एसटी कोर्ट की ओर से निर्गत गिरफ्तारी के परवाने का हवाला देकर गिरफ्तार किया था. 21 अगस्त को उन्हें एससी-एसटी कोर्ट में पेश किया गया था, जहां से 14 दिनों के लिए न्यायिक हिरासत में भेजने का आदेश हुआ था.
23 अगस्त को दुर्ग सिंह राजपुरोहित के वकील ने जमानत याचिका दायर की थी. 24 अगस्त को इस याचिका पर सुनवाई हुई. 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेजने का आदेश देने वाले एससी-एसटी कोर्ट के जज उस आदेश के बाद ही छुट्टी पर चले गए, जिस कारण मामले की सुनवाई एनआईए कोर्ट के स्पेशल जज मनोज कुमार सिन्हा ने की.
कोर्ट ने दुर्ग सिंह को 5-5 हजार रुपये के दो मुचलके पर जमानत देने का आदेश दिया है.
आरोपित पत्रकार के वकील विनोद मिश्रा ने बताया कि शनिवार को बेल बॉन्ड जमा कर दिया जाएगा और उन्हें जमानत मिल जाएगी. विनोद मिश्रा ने तीन बिंदुओं को रेखांकित करते हुए जमानत देने की अपील की थी.
उन्होंने कहा, ‘मैंने कोर्ट में दलील दी कि कथित मारपीट और गाली गलौज की घटना 7 मई को हुई थी, लेकिन फरियादी ने 22 दिन के बाद शिकायत दर्ज कराई. शिकायत दर्ज कराने में 22 दिन देर क्यों की गई, इसका कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया.’
उन्होंने आगे कहा, ‘मैंने दूसरी दलील यह दी कि 72 हजार रुपये बकाए का जिक्र शिकायत में किया गया है, लेकिन इस बकाया रकम की वसूली के लिए फरियादी ने कोई कनूनी नोटिस या चिट्ठी आरोपित को नहीं दी, जिससे मामला संदेहास्पद लगता है.’
विनोद मिश्रा ने बताया, ‘मैंने कोर्ट में यह भी कहा कि कोई व्यक्ति राजस्थान यहां आकर सीधे किसी से गाली गलौज व मारपीट शुरू कर देगा, बल्कि पहले बात करेगा और दोनों के बीच तू-तू-मैं-मैं होगी. यही नहीं, मैंने कोर्ट को यह भी बताया कि फरियादी ने प्रिंट मीडिया में ऐसी कोई शिकायत दर्ज कराने से इनकार किया है, लेकिन कोर्ट ने यह दलील खारिज कर दी.’
दुर्ग सिंह राजपुरोहित इंडिया न्यूज से जुड़े हुए हैं और बाड़मेर में रहते हैं. उनके परिजनों के मुताबिक 19 अगस्त को बाड़मेर के एसपी ने उन्हें अपने दफ्तर बुलाया और फिर गिरफ्तार कर लिया.
बाद में उन्हें बताया गया कि उनके खिलाफ पटना के एससी-एसटी कोर्ट में एक महादलित युवक से मारपीट और गालीगलौज करने को लेकर परिवाद दायर किया गया है.
परिवाद (261/18) पटना के एससी-एसटी कोर्ट में 31 मई को नालंदा के रहनेवाले राकेश पासवान नाम के युवक की ओर से दायर किया गया था.
परिवाद में एससी एंड एसटी (प्रोटेक्शन अगेंस्ट एट्रोसिटी) एक्ट की धारा 3 (1), (एच), (आर), (एस) व भारतीय दंड संहिता की धारा 406 लगाई गई है.
राकेश ने 2 जून को कोर्ट में बयान दर्ज कराया था. बयान के साथ पहचान पत्र के रूप में राकेश के आधार कार्ड की फोटो कॉपी और एफिडेविट भी नत्थी किए गए हैं. कम से कम तीन जगहों पर हिंदी में राकेश के हस्ताक्षर भी हैं.
बयान में राकेश ने बताया था, ‘यह मुकदमा मैंने दुर्गेश सिंह (हालांकि पत्रकार का नाम नाम दुर्ग सिंह राजपुरोहित है. लेकिन, उनके पिता का नाम और पते वही हैं जो दुर्ग सिंह के हैं) एवं 3-4 अज्ञात लोगों पर किया है.’
शिकायत में 14 अप्रैल 2018, 18 अप्रैल 2018 और 5 मई 2018 से लगातार अब तक तक हुए घटनाक्रमों का जिक्र बिंदुवार किया गया है.
बयान में आगे कहा गया है कि उसे पत्थर तोड़वाने के लिए दुर्गेश सिंह राजस्थान ले गए थे. वहां राकेश ने 6 महीने तक काम किया. छह महीने तक काम करनेके बाद वह वापस अपने घर आ गया.
बयान के मुताबिक, दुर्गेश राकेश के घर गए और वापस राजस्थान चलने को चलने को कहा क्योंकि उसके काम छोड़ देने से दूसरे मजदूरों ने भी काम छोड़ दिया था.
राकेश ने बयान में आगे कहा, ‘मैंने पिता जी की तबीयत खराब होने के कारण जाने से मना कर दिया. 15 अप्रैल 2018 को दुर्गेश मेरे घर पर गए और राजस्थान चलने का दबाव बनाया, लेकिन मैंने इनकार कर दिया, तो गाली-गलौज और धमकी देकर वह चले गए.’
यह भी पढ़ें: राजस्थान से गिरफ़्तार कर बिहार लाए गए पत्रकार के मामले का सच क्या है?
फरियादी के अनुसार, 7 मई को दुर्गेश दोबारा दीघा घाट स्थित घर पर 3-4 लोगों के साथ आए और उन्हें घसीट कर घर से सड़क पर ले आए. सड़क पर लाकर जातिसूचक गाली देते हुए जूते से मारने लगे.
शिकायत के अनुसार, राकेश को पिटता देख संजय, सुरेश और अन्य 8-10 लोग आ गए, तो सफेद बोलेरो से दुर्गेश व उसके साथ आए लोग भाग गए.
पूरे मामले में नाटकीय मोड़ तब आया, जब दुर्ग सिंह राजपुरोहित ने पत्थर का कोई कारोबार होने से इनकार करते हुए कहा कि वह कभी पटना नहीं आए और न ही किसी राकेश पासवान को जानते हैं.
यही नहीं, खुद राकेश पासवान ने मीडिया में यह बयान दिया कि उसने ऐसी कोई शिकायत दर्ज नहीं कराई है. उसने यह भी कहा कि वह पत्थर तोड़ने के लिए कभी बाड़मेर नहीं गया और न ही किसी दुर्ग सिंह को वह जानता है.
अलबत्ता उसने यह जरूर कहा कि वह दीघा में रह कर संजय सिंह नाम के व्यक्ति का अर्थमूवर चलाया करता था.
दैनिक भास्कर में छपे राकेश पासवान के बयान के मुताबिक, एक बार अर्थमूवर लेकर वह किसी खेत में गया था, जहां स्थानीय लोगों ने अर्थमूवर को आग के हवाले कर दिया था.
राकेश ने दैनिक भास्कर को बताया था कि संजय सिंह ने उससे शिकायत दर्ज कराने को कहा था, लेकिन उसने ऐसा करने से इनकार कर दिया था. यहां यह भी बता दें कि राकेश पासवान के नाम से दर्ज परिवाद में जिन दो गवाहों का जिक्र किया गया है, उनमें एक नाम संजय सिंह का भी है.
इधर, दुर्ग सिंह के परिजनों और सहयोगियों का कहना है कि राकेश पासवान के परिवाद में जिन तारीखों का जिक्र किया गया है, उन तारीखों पर वह (दुर्ग सिंह) बाड़मेर में अलग-अलग कार्यक्रमों में हिस्सा ले रहे थे.
भारतीय सेना में कार्यरत दुर्ग सिंह राजपुरोहित के भाई भवानी सिंह राजपुरोहित ने कहा, ‘शिकायत में 15 अप्रैल का जिक्र किया गया है, लेकिन 15 अप्रैल को दुर्ग सिंह बाड़मेर में अपने एक रिश्तेदार की शादी में मौजूद थे.’
शिकायत में 7 मई का भी जिक्र है, लेकिन दुर्ग सिंह के फेसबुक स्टेटस के मुताबिक, वह उस दिन एक कार्यक्रम में शिरकत कर रहे थे. गिरफ्तारी के बाद से दुर्ग सिंह के पिता और भाई पटना में हैं. कोर्ट के आदेश से उन्हें राहत मिली है.
दुर्ग सिंह के पिता ने कहा, ‘मुझे कोर्ट पर पूरा भरोसा है और अगर मेरे बेटा दोषी है, तो निश्चित तौर पर उसे सजा मिले.’
उन्होंने कहा कि उनके सात पुश्तों में किसी ने भी पत्थर का कारोबार नहीं किया और न ही कभी पटना आया. पूरे मामले में बाड़मेर पुलिस की भूमिका भी सवालों के घेरे में है. सवाल उठ रहा है कि पुलिस ने कार्रवाई करने में इतनी फुर्ती क्यों दिखाई और गिरफ्तारी से पहले उसने वारंट क्यों नहीं दिखाया.
दुर्ग सिंह के भाई भवानी सिंह ने कहा, ‘गिरफ्तारी करने से पहले पुलिस को बताना चाहिए था कि किस आरोप में गिरप्तार किया जा रहा है, लेकिन पुलिस ने ऐसा नहीं किया. एसपी दफ्तर में बुलाया गया और फिर गिरफ्तार कर लिया गया. जब हमने पूछा तब बताया गया कि पटना के एससी-एसटी कोर्ट में दुर्ग सिंह के खिलाफ मामला दर्ज हुआ है.’
राजस्थान के बाड़मेर के शियो से भाजपा विधायक मानवेंद्र सिंह ने पूरे मामले में राजनीतिक साजिश की आशंका जताई है. उन्होंने कहा, ‘राजनीतिक दबाव और संवैधानिक पद का दुरुपयोग करके दुर्ग सिंह को फंसाया जा रहा है. प्रजातंत्र के लिए यह शर्मनाक घटना है. मामले की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए.’
राजस्थान के खींवसर के निर्दलीय विधायक हनुमान बेनीवाल का कहना है कि पत्रकार दुर्ग सिंह को बिहार पुलिस ने घटिया और संकीर्ण राजनीतिक दबाव के चलते हिरासत में लिया है.
उन्होंने कहा, ‘दुर्भाग्य इस बात का है कि बाड़मेर पुलिस ने भी बिना उचित परीक्षण किए ही दुर्ग सिंह को गिरफ्तार कर लिया.’
इधर, मामले को तूल पकड़ता देख राजस्थान सरकार ने बाड़मेर पुलिस की भूमिका की जांच के आदेश दिए हैं. राजस्थान के गृह मंत्री गुलाब चंद कटारिया ने पुलिस महानिदेशक ओपी गहलोत्रा से जांच करने को कहा है.
बाड़मेर पुलिस पर राजनीतिक दबाव के आरोपों पर गृह मंत्री गुलाब चंद कटारिया ने कहा, ‘वारंट तामील करवाना पुलिस का काम है. इसकी जांच की जा रही है पत्रकार की गिरफ्तारी में पुलिस पर कोई दबाव था या नहीं.’
पूरे घटनाक्रम को देखें, तो एससी-एसटी एक्ट की आड़ लेकर झूठा मामला दर्ज कराने का संदेह भी गहरा रहा है क्योंकि आरोपित और फरियादी दोनों ही ऐसी कोई घटना होने से इनकार किया है. फरियादी ने तो खैर परिवाद दायर करने से भी इनकार कर दिया है.
ऐसे में यह जांच करना भी जरूरी है कि आखिर किन लोगों ने झूठी शिकायत दर्ज कराई और क्यों कराई. बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने इस मामले में हस्तक्षेप किया है. उन्होंने मामले की जांच के आदेश दिए हैं.
बताया जा रहा है कि बिहार के डीजीपी ने पटना जोन के आईजी नैयर हसनैन खान को मामले की जांच का आदेश दिया है. नैयर हसनैन खान तीन दिनों में जांच की रिपोर्ट सौंपेंगे.
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार है और पटना में रहते हैं.)