समाचार एजेंसी रॉयटर्स के इन पत्रकारों को पिछले साल 12 दिसंबर को हिरासत में लिया गया था. उस समय वे म्यांमार के रखाइन प्रांत के एक गांव में रोहिंग्या मुसलमानों की हत्या और सेना व पुलिस द्वारा किए गए अपराधों की जांच कर रहे थे.
यांगून: म्यांमार की एक अदालत ने सोमवार को दो पत्रकारों को सात साल की सजा सुनाई है. ये दोनों पत्रकार अंतरराष्ट्रीय न्यूज एजेंसी रॉयटर्स के लिए काम करते हैं. इन दोनों के नाम वा लोन (32) और क्यो सो ओ (28) हैं. इन पर गोपनीयता कानून का उल्लंघन करते हुए गुप्त दस्तावेज हासिल करने का आरोप साबित हुआ है.
रॉयटर्स के संपादक स्टीफन जे एडलर ने कहा, ‘यह म्यांमार, रॉयटर्स के पत्रकार वा लोन व क्यो सो ओ और प्रेस के लिए एक बुरा दिन है.’ वहीं, संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय संघ जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के अलावा अमेरिका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों ने भी दोनों पत्रकारों की रिहा करने की बात कही है.
गौरतलब है कि रॉयटर्स के इन पत्रकारों को पिछले साल 12 दिसंबर को हिरासत में लिया गया था. उस समय वे म्यांमार के रखाइन प्रांत के एक गांव में 10 रोहिंग्या मुसलमानों की हत्या और सेना व पुलिस द्वारा किए गए अपराधों की जांच कर रहे थे.
म्यांमार की सरकार इन अपराधों से इनकार करती रही. लेकिन पत्रकारों की गिरफ्तारी के बाद खुद म्यांमार की सेना ने माना कि उसने गांव में 10 रोहिंग्या पुरुषों और युवकों को मारा था.
सुनवाई के दौरान दोनों पत्रकारों ने कोर्ट को बताया था कि अन्य अधिकारियों द्वारा गिरफ्तार किए जाने से पहले दो पुलिस अधिकारियों ने एक रेस्टोरेंट में उन्हें ये दस्तावेज सौंपे थे. इस पर एक पुलिस अधिकारी ने कहा कि ऐसा पत्रकारों को पकड़ने के लिए बनाई गई योजना के तहत किया गया था. अधिकारी के मुताबिक रोहिंग्या मुसलमानों के जनसंहार से जुड़ी रिपोर्टिंग रोकने के चलते दोनों पत्रकारों के खिलाफ यह जाल बिछाया गया था.
वहीं, अदालत से सजा पाए वा लोन ने कहा कि उन्होंने कुछ गलत नहीं किया और उन्हें किसी तरह का डर नहीं है. लोन ने कहा, ‘मैं न्याय, स्वतंत्रता और लोकतंत्र में विश्वास करता हूं.’
गौरतलब है कि इससे पहले पिछले हफ्ते ही संयुक्त राष्ट्र (यूएन) समर्थित फैक्ट फाइंडिंग मिशन की एक रिपोर्ट में म्यांमार की सेना पर मानवाधिकार उल्लंघन का आरोप लगाया था.
इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि सेना ने रोहिंग्या मुसलमानों की हत्या की, उन्हें जेल में डाला और यौन शोषण किया. इसलिए म्यांमार के शीर्ष सैन्य अफसरों पर नरसंहार का मामला चलना चाहिए. हालांकि म्यांमार ने फैक्ट फाइंडिंग की रिपोर्ट को खारिज कर दिया.