कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारी का मामला विचाराधीन, तो पुलिस ने कैसे की प्रेस कॉन्फ्रेंस: हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट पूछा कि पुलिस ऐसे दस्तावेज़ों को इस तरह पढ़कर कैसे सुना सकती है जिनका इस्तेमाल मामले में साक्ष्य के तौर पर किया जा सकता है.

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Maharashtra ADG Param Bir Singh with Pune's Additional CP Shivaji Bodke (L)Dr.Shivaji Pawar(R) adressed a press conference about the house arrest of rights activists in Bhima Koregaon case, at DGP office, in Mumbai on Friday.(PTI )
मुंबई पुलिस के पूर्व आयुक्त परमबीर सिंह. (फाइल फोटो: पीटीआई)

बॉम्बे हाईकोर्ट पूछा कि पुलिस ऐसे दस्तावेज़ों को इस तरह पढ़कर कैसे सुना सकती है जिनका इस्तेमाल मामले में साक्ष्य के तौर पर किया जा सकता है.

Maharashtra ADG Param Bir Singh with Pune's Additional CP Shivaji Bodke (L)Dr.Shivaji Pawar(R) adressed a press conference about the house arrest of rights activists in Bhima Koregaon case, at DGP office, in Mumbai on Friday.(PTI )
महाराष्ट्र पुलिस ने बीते 31 अगस्त को सामाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारी को लेकर प्रेस कॉन्फ्रेंस किया था. (फोटो: पीटीआई)

मुंबई: बॉम्बे उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र पुलिस द्वारा माओवादियों से कथित तौर पर संबंध रखने वाले कुछ प्रमुख नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं के ख़िलाफ़ दर्ज मामले पर संवाददाता सम्मेलन करने को लेकर सोमवार को सवाल उठाए.

राज्य के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (कानून व्यवस्था) परमवीर सिंह ने पुणे पुलिस के साथ मिलकर बीते 31 मई को इस मामले पर मीडिया से बातचीत की थी.

संवाददाता सम्मेलन के दौरान सिंह ने कार्यकर्ताओं के बीच कथित तौर पर आदान-प्रदान किए गए पत्रों को पढ़कर भी सुनाया. उन्होंने दावा किया कि पुलिस के पास जून में और पिछले हफ्ते गिरफ्तार किए गए वामपंथी कार्यकर्ताओं के माओवादियों से संबंध बताने के लिए ‘ठोस सबूत’ हैं.

जस्टिस एसएस शिंदे और मृदुला भाटकर की पीठ ने पूछा कि पुलिस ऐसे दस्तावेज़ों को इस तरह पढ़कर कैसे सुना सकती है जिनका इस्तेमाल मामले में साक्ष्य के तौर पर किया जा सकता है.

जस्टिस भाटकर ने कहा, ‘पुलिस ऐसा कैसे कर सकती है? मामला विचाराधीन है. उच्चतम न्यायालय मामले पर विचार कर रहा है. ऐसे में मामले से संबंधित सूचनाओं का खुलासा करना गलत है.’

लोक अभियोजक दीपक ठाकरे ने कहा कि वह संबंधित पुलिस अधिकारियों से बात करेंगे और उनसे जवाब मांगेंगे.

पीठ भीमा कोरेगांव हिंसा का शिकार होने का दावा करने वाले शख़्स सतीश गायकवाड़ द्वारा शुक्रवार को दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी. उन्होंने मामले की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) से करवाने की मांग की है.

गायकवाड़ ने उच्च न्यायालय से पुणे पुलिस से मामले की आगे की जांच नहीं करवाने और जांच पर रोक लगाने की अपील की है.

पीठ ने मामले में अगली सुनवाई सात सितंबर को तय की है.

बीते 28 अगस्त को पुणे पुलिस ने माओवादियों से कथित संबंधों को लेकर कवि वरवरा राव, अधिवक्ता सुधा भारद्वाज, सामाजिक कार्यकर्ता अरुण फरेरा, गौतम नवलखा और वर्णनन गोंजाल्विस को गिरफ़्तार किया था. बाद में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर इन्हें इनके घरों में छह सितंबर तक नज़रबंद किया गया है.

इससे पहले पुलिस ने पिछले साल पुणे में भीमा कोरेगांव हिंसा से पहले 31 दिसंबर को आयोजित एलगार परिषद की ओर से आयोजित कार्यक्रम से माओवादियों के कथित संबंधों की जांच करते हुए कार्यकर्ता सुधीर धावले, रोना विल्सन, सुरेंद्र गाडलिंग, शोमा सेन और महेश राउत को जून में गिरफ्तार किया था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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