माल्या को ‘माल्या’ किसने बनाया?

विजय माल्या ने हर दल की मदद से खुद को राज्यसभा में पहुंचाकर भारत की संसदीय परंपरा को उपकृत किया. मैं माल्या के इस योगदान का सम्मान करता हूं. इस मामले में प्रो-माल्या हूं. क्या माल्या बहुत बड़े राजनीतिक विचारक थे? जिन-जिन लोगों ने उन्हें संसद में पहुंचाया वो सामने आकर बोले तों. वन सेंटेंस में!

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New Delhi: A file photo of liquor baron Vijay Mallya. MEA (Ministry of External Affairs) revoked Mallya's passport under S.10(3)(c) & (h) of Passports Act," foreign ministry spokesman Vikas Swarup tweeted on Sunday. PTI Photo (PTI4_24_2016_000134B) *** Local Caption ***

विजय माल्या ने हर दल की मदद से खुद को राज्यसभा में पहुंचाकर भारत की संसदीय परंपरा को उपकृत किया. मैं माल्या के इस योगदान का सम्मान करता हूं. इस मामले में प्रो-माल्या हूं. क्या माल्या बहुत बड़े राजनीतिक विचारक थे? जिन-जिन लोगों ने उन्हें संसद में पहुंचाया वो सामने आकर बोले तों. वन सेंटेंस में!

New Delhi: A file photo of liquor baron Vijay Mallya. MEA (Ministry of External Affairs) revoked Mallya's passport under S.10(3)(c) & (h) of Passports Act," foreign ministry spokesman Vikas Swarup tweeted on Sunday. PTI Photo (PTI4_24_2016_000134B) *** Local Caption ***
विजय माल्या (फाइल फोटो: पीटीआई)

मैं नहीं चाहता कि जेटली इस्तीफ़ा दें. मैं इसलिए ये चाहता हूं कि मुझे चांस ही नहीं मिला उनका बचाव करने के लिए. बहुत से पत्रकारों को जब जेटली का बचाव करते देखा तो उस दिन पहली बार लगा कि लाइफ में पीछे रह गया.

मगर फिर लगा कि जब जेटली को भी इन पत्रकारों के बचाव की ज़रूरत पड़ जाए तब लगा कि मुझसे ज़्यादा तो जेटली जी पीछे रह गए. इन पत्रकारों ने बचाव में उतर कर जेटली के सत्ता संसार की गरिमा को कम कर दिया है. रिपोर्टर ब्यूरो चीफ़ का बचाव नहीं करता है. ब्यूरो चीफ़ का काम होता है रिपोर्टर का बचाव करना.

शिवम विज ने ट्वीट में यह तंज क्यों किया कि जेटली को यूं ही नहीं ब्यूरो चीफ़ कहा जाता है. तब से मैं और दुखी हूं. मैं जेटली जी का बहुत आदर करता हूं. मगर इन चंपुओं से अपना बचाव न करवाएं. लीजिए आपकी ख़ातिर मैं लिख देता हूं कि आप इस्तीफा न दें. मैं आपके साथ हूं.

शिवम विज को शायद पता न हो कि मीडिया का मैनेजिंग एडिटर तो कब से बदल गया है. गोदी मीडिया के सिस्टम में सिर्फ एक मैनेजिंग एडिटर होता है. और अब यह सिस्टम पचास साल रहने वाला है. इस सिस्टम में पोलिटिकल एडिटर या ब्यूरो चीफ़ का काम नहीं बचा है.

नक़वी और सिंघवी की बाइट एएनआई से आ जाती है. जिसे अब ‘बाइट हो गई’ होना कहते हैं. वही हाल एंकरों का भी है. जो आप जानते हैं. डियर जनता जी, आप कब तक ये तमाशा देखेंगे. क्या तब तक देखेंगे जब सारा सत्यानाश हो जाएगा? मुग़ल ए आज़म का गाना सुनिए. अजी हां हम भी देखेंगे.

एक पत्रकार को कहते सुना कि उसने देखा था कि जेटली और माल्या की मुलाक़ात 30 सेकेंड की हुई. एक ने कहा 40 सेकेंड की हुई. दो साल पहले यानी 1 मार्च 2016 की मुलाकात का इतना सही विवरण याद है. हमारे पत्रकारों के पास उस समय स्टॉप वॉच रहा होगा. जैसे ही माल्या जेटली के करीब गए होंगे उन्होंने सेकेंड गिनना शुरू कर दिया होगा.

टिक टिक टिक टिक टिक टिक टिक टिक टिक टिक, टिक टिक टिक टिक टिक टिक टिक टिक टिक टिक, टिक टिक टिक टिक टिक टिक टिक टिक टिक टिक, टिक टिक टिक टिक टिक टिक टिक टिक टिक टिक. ठीक से गिन लीजिए. कुल चालीस टिक टिक लिखे हैं हमने. बस इतने ही देर की मुलाक़ात हुई.

स्टॉप वॉच पत्रकारों ने नहीं लिखा. रक्षा मंत्रालय पर लिखने वाले वित्त मंत्री जेटली जी ने ब्लॉग नहीं लिखा. अगर आपको यह लगता है कि यह सब लिख देने से लुटियन दिल्ली का सिस्टम बदल जाएगा तो ग़लतफ़हमी में हैं. इन पत्रकारों ने अभी क्यों कहा. तब क्यों नहीं कहा. जैसे मुझसे कहते हैं दिल्ली तो ठीक है, बंगाल पर नहीं बोला. क्या सोच कर तब नहीं लिखा कि गब्बर बहुत ख़ुश होगा. इनाम देगा. माल्या भूल जाएगा. अब पत्रकार ही इस लायक़ हैं तो जेटली का क्या दोष. वैसे मेरे पास पूरी लिस्ट है कि मैंने कब कब नहीं बोला. आप वो लिस्ट जारी कर मुझे चुप करा सकते हैं. जैसे वो लोग चुप थे तीस सेकेंड की मुलाकात के बाद दो साल तक.

माल्या के भारत परित्याग प्रकरण के दो छोर हैं. एक छोर है कि माल्या को माल्या कौन बनाया और दूसरा छोर है माल्या किनके राज में और किनकी मदद से भागा. दोनों ही छोर को लेकर दो अलग-अलग प्रेस कॉन्फ्रेंस हो रहे हैं. इज़ इक्वल टू.

सच यह है कि माल्या ने हर दल की मदद से खुद को राज्यसभा में पहुंचाकर भारत की संसदीय परंपरा को उपकृत किया. उपकार किया. मैं माल्या के इस योगदान का सम्मान करता हूं. इस मामले में प्रो-माल्या हूं. क्या माल्या बहुत बड़े राजनीतिक विचारक थे? जिन जिन लोगों ने उन्हें संसद में पहुंचाया वो सामने आकर बोले तों. वन सेंटेंस में!

विजय माल्या, ललित मोदी, नीरव मोदी, हमारे मेहुल भाई, जतिन मेहता इन सबने भारत का परित्याग किया है. ललित मोदी वाले प्रकरण में तो किस किस का नाम आता था, वो सब तो लोक स्मृति से ग़ायब हो चुका है. इन सबको किसी ने देशद्रोही नहीं कहा. उन लोगों ने भी नहीं कहा जिन्हें देशद्रोही कहने का ठेका मिला हुआ है. भारत के वे सैनिक अफसर भी आहत नहीं हैं जो भारत के लिए जान दे देते हैं. वे भी रिटायरमेंट के बाद इन दिनों टीवी पर कम दिखने लगे हैं. लगता है उनका काम पूरा हो चुका है.

मैं भारत परित्याग प्रकरण की इस बेला में उन सभी की तारीफ करता हूं जो दस लाख करोड़ का गबन कर यहीं हैं. भागे नहीं हैं. अगर ग़बन नहीं है तो फिर डिबेट किस बात की है. ऐसे लोगों को भारत परित्याग न करने की छूट मिलनी चाहिए. उन्होंने यहां रहकर भारत का मान बढ़ाया है फिर भी इनका नाम कोई नहीं लेता है.

मोदी सरकार के मंत्रियों ने अपने मंत्रालय का छोड़ दूसरे के मंत्रालय पर बोलने का रिकॉर्ड कायम किया है. इससे पता चलता है कि उन्हें अपने मंत्रालय का कम, दूसरे का ज़्यादा पता रहता है. यह मामूली बात नहीं है. कृषि पर बोलने वाले गृह मंत्री, शिक्षा पर बोलने वाले स्वास्थ्य मंत्री, रक्षा पर बोलने वाले वित्त मंत्री, वित्त पर बोलने वाले रेल मंत्री ने भी कभी भारत का परित्याग नहीं करने वाले उद्योगपतियों का नाम नहीं लिया है.

प्रधानमंत्री जिन्होंने आम लोगों से गैस की सब्सिडी छोड़ दो, इन लोगों से कहना भूल गए कि भाई दस लाख करोड़ लोन लेकर चपत हुए हो, कुछ तो लौटा दो. सौ-पचास ही तो ऐसे लोग हैं, इन्हें पत्र ही लिख देते कि 25 करोड़ सब्सिडी छोड़ रहे हैं और तुम दस लाख करोड़ नहीं दे सकते. पेट्रोल पंप पर नया पोस्टर भी आ जाता.

हमारे उद्योगपतियों से नफ़रत मत कीजिए. इनकी आर्थिक और राजनीतिक उपलब्धियां सामान्य नहीं हैं. इनके सामने किसी भी राजनीतिक दल की औकात नहीं है कि इनके ख़िलाफ़ मोर्चा खोल सके. चाहें वे किसी भी प्रकार के पद पर बैठे हों. यही देखकर मेरा कंपनियों के प्रति सम्मान बढ़ा है. मैं प्रो-इंडस्ट्री सा फील कर रहा हूं. बल्कि मांग करता हूं कि हर दल अपने दल से नेताओं को निकाल कर, इन्हें ही राज्य सभा का टिकट दे.

यस, जनता की भी बात करूंगा. उसके लिए हिंदू-मुस्लिम का मुद्दा है. इस एनपीए के डिबेट से क्या मिलेगा? क्या विपक्ष के घरों में आराम से घुसने वाला आयकर विभाग उन घरानों के यहां जा सकता है जिन्हें देवत्व प्राप्त है? चाहे राज किसी का हो? तो फिर लोड क्यों लेना डियर. सीबीआई, आयकर विभाग हम जैसों को डराने के लिए हैं. इन एजेंसियों ने कभी किसी बड़ी मछली को साधा है. फालतू बात करते हैं सब. चमकदार जैकेट पहनकर प्रेस कॉन्फ्रेंस में आने से आपके चश्मे का फ्रेम चमकता है तो असलीयत भी झलकती है. समझे भाई लोग.

माल्या से मेरा यही निवेदन हैं कि वे नीरव मोदी, ललित मोदी, हमारे मेहुल भाई, जतिन मेहता को लेकर एक गोलमेज़ सम्मेलन करें. वहां पर सिर्फ जेटली का नाम न लें. उनका भी नाम ले लें जिनका अभी आने वाला है. सबका नाम वहीं से जारी कर दें. ताकि मज़ा आ जाए. चुनाव आ रहा है. इनमें से एक दो को भारत लाया जा सकता है. दिखाने के लिए. वैसे अंतिम नतीजे में कुछ होना जाना नहीं है.

सुब्रमण्यम स्वामी जेटली जी के ख़िलाफ़ क्यों मोर्चा खोले रहते हैं? खुलेआम घेरते हैं. कौन है जो जेटली के ख़िलाफ़ मोर्चा खोलने वाले को राज्यसभा का सदस्य बनाता है. क्या जेटली जी अकेले हैं? आई मीन लोनली? स्वामी को यह सब नहीं बोलना चाहिए कि माल्या को गिरफ्तार करने के नोटिस चेंज कर दिया गया. उस दिन तो बिल्कुल नहीं जिस दिन पत्रकार जेटली का बचाव कर रहे थे. लेकिन उन पत्रकारों ने स्वामी को क्यों नहीं घेरा? क्या किसी मंत्री ने राहुल पर हमले से टाइम निकालकर स्वामी की बात का खंडन किया है? गेम समझे पब्लिक जी!

मेरे ख़्याल से इस्तीफा स्वामी को देना चाहिए. उस स्वामी को जो सबका स्वामी है. तीनों लोक का तो पता नहीं, जो भारत भू का स्वामी है. हाय राम, ये मैंने क्या कह दिया. नहीं-नहीं इसीलिए कहता हूं किसी को इस्तीफ़ा नहीं देना चाहिए. मस्त रहिए. किसी को कुछ नहीं होगा. सब बच जाएं. बस कुछ अर्बन नक्सल फंस जाएं तो चुनाव जीतने की गारंटी मिल जाए. एक लास्ट बात और.

क्या भू-स्वामी जी भी जेटली जी के अहसान भूल गए? फिर ये व्हाट्स ऐप यूनिवर्सिटी में राहुल, सोनिया और मनमोहन के साथ जेटली की तस्वीरें लगवाकर कौन बंटवा रहा है कि नेशनल हेराल्ड और टू जी घोटाले के आरोपी के साथ जेटली जी. कौन कर रहा है ये सब. जेटली जी के ख़िलाफ. कृतज्ञ राष्ट्र जानने हेतु उत्सुक है.

(यह लेख मूलतः रवीश कुमार के फेसबुक पेज पर प्रकाशित हुआ है.)