राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा तैयार की गई ‘मरीजों के अधिकारों पर चार्टर’ के मुताबिक मरीज़ को ये अधिकार है कि डॉक्टर द्वारा लिखी दवा को वो अपने पसंद की फार्मेसी से ख़रीदे.
नई दिल्ली: केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने ‘मरीजों के अधिकारों पर चार्टर’ का मसौदा जारी किया है और अगर वह प्रभावी हो जाता है तो अस्पताल के साथ भुगतान विवाद होने की सूरत में मरीज को अस्पताल में रोक कर रखने या मरीज का शव परिजन को सौंपने से इनकार करना शीघ्र ही अपराध की श्रेणी में आ जाएगा.
मरीज चार्टर के मसौदे के अनुसार अस्पताल भुगतान को लेकर विवाद जैसे किसी आधार पर मरीज को रोक कर नहीं रख सकता और उसे अस्पताल से छुट्टी देने से इनकार नहीं कर सकता है.
इसमें कहा गया है कि यह अस्पताल की जिम्मेदारी है कि वह अस्पताल में इलाज कराने वाले किसी मरीज को गलत तरीके से नहीं रोके अथवा उसका शव देने से इनकार नहीं करे. संयुक्त सचिव सुधीर कुमार की ओर से जारी नोटिस के अनुसार मंत्रालय राज्य सरकारों के माध्यम से इस चार्टर को लागू कराना चाहता है.
इसे राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने तैयार किया है. इस चार्टर को स्वास्थ्य मंत्रालय की वेबसाइट पर डाला गया है और आमजन और पक्षकारों से सुझाव और विचार मांगे गए हैं. इस चार्टर में मरीजों अथवा उनके परिजन के अधिकारों के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है.
मसौदे के अनुसार मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (1948) सभी मनुष्यों की मौलिक गरिमा और समानता पर जोर देती है. इस अवधारणा के आधार पर, पिछले कुछ दशकों में मरीज अधिकारों की धारणा पूरी दुनिया में विकसित हुई है.
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस बात को लेकर सर्वसम्मति बढ़ी है कि सभी मरीजों को उनके बुनियादी अधिकार मिलने चाहिए. दूसरे शब्दों में कहें तो मरीज चिकित्सकों, स्वास्थ्य देखभाल प्रदाताओं और राज्य द्वारा सुनिश्चित की जाने वाली कुछ निश्चित सुरक्षा के हकदार हैं.
भारत में संविधान के अनुच्छेद 21, भारतीय चिकित्सा परिषद (व्यावसायिक आचरण, शिष्टाचार और नीतिशास्त्र) विनियमन 2002, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986, ड्रग्स और प्रसाधन सामग्री अधिनियम 1940, क्लीनिकल प्रतिष्ठान अधिनियम 2010 तथा इसमें बनाए गए नियम व मानक और सुप्रीम कोर्ट एवं राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग द्वारा दिए गए कई फैसलों के तहत मरीजों के अधिकारों से संबंधित विभिन्न कानूनी प्रावधान हैं.
मरीज चार्टर के मसौदे में कहा गया है कि हर एक मरीज को सूचना का अधिकार प्राप्त है. यानि कि प्रत्येक मरीज को अपने रोग के बारे में पूरी जानकारी जैसे कि बीमारी का कारण, प्रस्तावित जांच और प्रबंधन, डायगनॉसिस, प्रमाण के साथ जांच में हुआ खर्चा इत्यादि पाने का अधिकार है.
इसमें कहा गया है कि मरीज को उसकी समस्या के बारे में उनके स्तर पर जाकर और उनकी भाषा में समझाया जाना चाहिए. अगर डॉक्टर इस काम को नहीं कर पाते हैं तो उन्हें अपने किसी सहयोगी की मदद लेनी चाहिए.
मसौदे के मुताबिक प्रत्येक रोगी या उसके देखभाल करने वाले को कागजात, रोगी के रिकॉर्ड, जांच रिपोर्ट पाने का अधिकार है. मरीज को इन सब चीजों की फोटोकॉपी कराकर दी जानी चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार, सरकारी और निजी सभी अस्पतालों को आपातकालीन चिकित्सा मुहैया करानी होगी और घायल व्यक्तियों को आपातकालीन चिकित्सा सुविधा प्राप्त करने का अधिकार है.
अपातकालीन स्थिति में मरीज की शुरुआती जांच बिना किसी भुगतान के शुरु की जानी चाहिए, चाहे वो किसी भी प्रकार के आर्थिक स्थिति का शख्स हो.
प्रत्येक रोगी का ये अधिकार है कि किसी से भी ऐसे संभावित खतरनाक जांच (जैसे आक्रामक जांच/ सर्जरी/कीमोथेरेपी), जिसमें कुछ जोखिम होते हैं, को शुरु करने से पहले उसकी सहमति मांगी जानी चाहिए.
सभी रोगियों को गोपनीयता का अधिकार है, और डॉक्टरों का ये कर्तव्य है कि उनकी स्वास्थ्य स्थिति और उपचार योजना के बारे में जानकारी गोपनीय रखी जाए, जब तक कि किसी विशिष्ट परिस्थितियों में अन्य की सुरक्षा के लिए ऐसी जानकारी को बताना न पड़े.
प्रत्येक रोगी और उनके देखभाल करने वालों को ये जानने का अधिकार है कि इलाज और प्रत्येक प्रकार की प्रदान की जाने वाली सुविधाओं के लिए अस्पताल द्वारा कितनी राशि वसूला जाएगा.
मरीज चार्टर के मुताबिक अस्पताल का ये कर्तव्य है कि वे मरीज और उनके सहयोगियों को एक बुकलेट में अस्पताल में लगने वाली राशि के बारे में अंग्रेजी और स्थानीय भाषा में जानकारी मुहैया कराएं.
इसी तरह मसौदे में कहा गया है कि प्रत्येक मरीज को अधिकार है कि उसे प्रत्यारोपण फार्मास्यूटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (एनपीपीए) और अन्य प्रासंगिक प्राधिकरण द्वारा तय की गई दर पर दवाईयां मिले.
जब कोई दवा किसी डॉक्टर या अस्पताल द्वारा निर्धारित की जाती है, तो मरीज और उनके देखभाल करने वालों को उसे खरीदने के लिए अपनी पसंद की किसी भी पंजीकृत फार्मेसी को चुनने का अधिकार है.
इसी तरह जब एक एक डॉक्टर या अस्पताल द्वारा विशेष जांच की सलाह दी जाती है तो रोगी और उसके देखभाल करने वाले को यह प्राप्त करने का अधिकार है कि वे किसी भी पंजीकृत और प्रयोगशालाओं के लिए राष्ट्रीय मान्यता बोर्ड (एनएबीएल) द्वारा मान्यता प्राप्त डायगनॉस्टिक केंद्र/ प्रयोगशाला से जांच करा सकते हैं.
मसौदे में कहा गया है कि अस्पताल प्रबंधन का ये कर्तव्य है कि वे मरीजों के इन अधिकारों का पालन करें और अस्पताल से इलाज पाए किसी भी मरीज या मरीज की लाश को किसी भी सूरत में रोक कर ना रखें.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)