सत्या, मॉनसून वेडिंग, वक़्त: द रेस अगेंस्ट टाइम, गांधी माय फादर, द लास्ट लीयर, लक्ष्मी, दिल धड़कने दो जैसी फिल्मों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली शेफाली शाह हाल ही में रिलीज़ फिल्म वंस अगेन में मुख्य भूमिका में नज़र आईं. उनसे प्रशांत वर्मा की बातचीत.
नेटफ्लिक्स पर हाल ही में फिल्म वंस अगेन रिलीज़ हुई है. आप इस फिल्म में मुख्य भूमिका में नज़र आ रही हैं. फिल्म को किस तरह की प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं?
फिल्म को अब तक दर्शकों की अच्छी प्रतिक्रियाएं मिली हैं. छोटी फिल्म थी और मुझे लगता है कि इसे नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ करना अच्छा निर्णय था. बॉक्स आॅफिस पर ऐसी छोटी फिल्में, बड़ी फिल्मों और उनके कारोबार के बीच गुम हो जाती हैं.
इस फिल्म को मिली दर्शकों की प्रतिक्रिया बहुत ही जबरदस्त है. इस फिल्म को देखने के बाद बहुत सारे लोगों ने कहा कि काश! हम भी अमर और तारा की तरह प्यार में होते या हमारी भी लव स्टोरी ऐसी होती.
कुछ लोगों का ये भी कहना था कि मुझे उम्मीद है कि मुझे भी कभी तारा जैसी कोई मिल जाएगी या अमर जैसा कोई मिल जाएगा. सौभाग्य से मेरे काम की बहुत तारीफ़ हुई है.
शायद ऐसा इसलिए क्योंकि लोगों ने मुझे इस तरह के किरदार में कभी देखा नहीं है. पहली बार मैं किसी रोमांटिक फिल्म में मुख्य भूमिका में हूं. लोगों को यह फिल्म पसंद आ रही है.
कुछ ऐसे भी लोग हैं जिन्हें लगता है कि फिल्म काफी धीमी है, लेकिन मुझे नहीं लगता है कि यह नकारात्मक प्रतिक्रिया है या ये फिल्म नहीं देखनी चाहिए. सभी ने कहा है कि एक बार तो फिल्म देखनी ही चाहिए. वहीं तमाम लोगों ने ये भी कहा है कि बार-बार देखनी चाहिए.
फिल्म की जो थीम है, जिसमें हीरोइन एक रेस्टोरेंट चलाती है, हीरो के लिए खाना बनाती है और उसे टिफिन में पैक कर भिजवाती है. इसी थीम पर इरफ़ान ख़ान की फिल्म लंचबॉक्स भी बनी थी. ऐसे में फिल्म वंस अगेन की तुलना लंचबॉक्स से भी हो रही है.
हम जानते थे कि इस फिल्म की तुलना लंचबॉक्स के साथ की जाएगी क्योंकि खाना, टिफिन और दोनों किरदार नोट्स शेयर करते हैं. लेकिन लंचबॉक्स में साजन और इला के जो किरदार थे, अगर वो मिलते तो आगे जाकर क्या होता, ये शायद वंस अगेन की कहानी है. वंस अगेन एक तरह से इस बात की संभावना है.
वंस अगेन वहीं तक सीमित नहीं रहती, ये लंचबॉक्स से आगे की कहानी बताती है. वैसे जब आप फिल्म देखेंगे तो किरदार हो या कहानी हो या इस फिल्म को जिस तरह से बनाया गया है, वो लंचबॉक्स से बहुत ही अलग है.
खाना फिल्म वंस अगेन का एक हिस्सा है, लेकिन कहानी सिर्फ़ यही नहीं है.
आप हिंदी सिनेमा में बहुत लंबे समय हैं, लेकिन अधिकांश फिल्मों में सहायक भूमिकाओं में ही नज़र आईं. अब जाकर किसी फिल्म में मुख्य किरदार में नज़र आई हैं. आपको क्या लगता है मुख्य भूमिका मिलने में इतना वक़्त क्यों लग गया?
जब मैंने एक्टिंग शुरू की तो मेरा कोई ऐसा ख्याल या ध्यान नहीं था कि मैं एक्टर बनूंगी. फिल्म सत्या से शुरू किया और उसके बाद से मैंने फिल्म इंडस्ट्री को इस तरह से अप्रोच नहीं कि फोटो शूट कराओ या निर्देशकों से मिलो या और जो कुछ भी होता है.
ये सब मैंने कभी नहीं किया. इसके अलावा जब मैंने सत्या फिल्म की तब तक मेरी शादी हो चुकी थी. उसके बाद मुझे फिल्म हसरतें मिली. ये रोल मुझे बहुत पसंद आया तो मैंने कर लिया.
मैंने कुछ सोचा नहीं और एक बार आप किसी उम्रदराज़ महिला का रोल कर लेते हैं तब आप हीरोइन का रोल कर ही नहीं सकते. और यह इंडस्ट्री इसी तरह से काम करती है.
खैर, इस बारे में मैंने कभी सोचा नहीं क्योंकि मैं एक अदाकार हूं, मैं वो सारी भूमिकाएं कर लेती हूं जो मुझे उन किरदारों को निभाने के लिए प्रेरित करते हैं. शायद उसकी वजह से ऐसा हुआ हो.
और वास्तव में मैंने कभी सोचा नहीं था कि मैं कलाकार बनूंगी और फिल्मों में काम करूंगी. लंबे वक़्त तक मुझे पता ही नहीं था कि मैं पूरी तरह से अभिनय करूंगी. ये बस होता गया और जो भी किरदार मैंने निभाए हैं आप देखें तो वो बहुत-बहुत मज़बूत किरदार हैं.
मुझे गर्व है अब तक जो भी मैंने काम किया है. वंस अगेन में मेरा रोल वास्तव में मुख्य है लेकिन ये हीरोइन नहीं है. ये एक वास्तविक किरदार है. आज के सिनेमा की यही तो खूबी है कि ये सिर्फ़ एक हीरो या हीरोइन तक सीमित नहीं रहता.
आज फिल्मों में जो भी किरदार होते हैं वो वास्तविक किरदार होते हैं. तथ्य ये है कि मैं स्टार नहीं हूं, मैं एक अदाकार हूं और एक अदाकार होने के नाते मैं बहुत खुश हूं. तो अगर कोई रोल मुझे पसंद आता है तो मैं उसे ज़रूर करती हूं.
तो क्या ऐसा कहा जा सकता है कि आज के समय में जिस तरह का सिनेमा बनाया या दिखाया जा रहा है उससे काम करने के मौके बढ़ गए हैं?
बिल्कुल मौके बढ़ गए हैं और सभी के लिए बढ़ गए हैं. मेरा मतलब है कि आज जिस तरह का सिनेमा बनाया जा रहा है यह लगभग सभी की मदद कर रहा है.
आप देख लें, चाहें फिल्म पिंक हो या पीकू या टॉयलेट: एक प्रेम कथा हो या लिपस्टिक अंडर माय बुर्क़ा, ये सारी फिल्में वास्तविक किरदारों की हैं. ये कहानियां किसी हीरो या हीरोइन या नाच-गाने की नहीं हैं. ये सारी फिल्में वास्तविक लोगों के बारे में हैं.
अभी एक इंटरव्यू में आपने कहा है कि बॉलीवुड को पता नहीं है कि 40 पार की महिलाओं के साथ करना क्या है?
हां, ऐसा इसलिए क्योंकि या तो हीरोइन का रोल होता है या फिर हीरोइन की दोस्त का या फिर हीरोइन की मां का रोल होता है. मेरा मतलब है कि यह इसी तरह से होता है.
हालांकि अभी ऐसा नहीं है, ये निश्चित रूप से बदल रहा है. हीरोइन मतलब उसकी उम्र 20 से 25 साल होनी चाहिए, लेकिन अभी ऐसा नहीं है.
इस परंपरा में लगातार बदलाव हो रहा है और शुक्र है कि ये बदल रही है. महिला अदाकारों के लिहाज़ से भी काफी बदलाव हुए हैं. अब हीरो-हीरोइन या पेड़ के इर्द-गिर्द डांस करना, ये सब नहीं हो रहा है.
अब सच्ची कहानियां हैं और सच्चे किरदार हैं. अब बड़े-बड़े कलाकार भी वास्तविक किरदार निभा रहे हैं. उदाहरण के लिए देखें तो अक्षय कुमार टॉयलेट: एक प्रेम कथा में काम कर रहे हैं. तो पूरी इंडस्ट्री और इसके सोचने का तरीका बदल रहा है.
आप अक्षय कुमार से छोटी हैं लेकिन वक़्त: रेस अगेंस्ट टाइम फिल्म में उनकी मां का किरदार निभाया था. पुरुष कलाकारों की बात करें तो अक्षय को अब भी लीड किरदार मिल रहे हैं, लेकिन उनकी उम्र तक आते-आते महिला कलाकारों को लीड रोल मिलने बंद हो जाते हैं.
हमारी इंडस्ट्री में हमेशा से पुरुष प्रभुत्व रहा है. वो भेद अब बदल रहा है और वही बड़ी बात है. एक बार ये बदलाव शुरू हो जाए तो इस बदलाव को कोई रोक नहीं सकता और यह बहुत ही सकारात्मक तरीके से बदल रहा है.
एक तरफ़ अक्षय कुमार हैं, निश्चित रूप से वह एक रॉकस्टार हैं, लेकिन दूसरी ओर करीना कपूर भी हैं, वो कम उम्र की नहीं हैं, इसके बावजूद अब भी अच्छा काम कर रही हैं. अब वो लीड रोल में नज़र आ रही हैं.
फिल्म जब सिनेमाघर में रिलीज़ होती है तो उनकी कमाई से पता चल जाता है कि वह हिट रही या फ्लॉप, लेकिन नेटफ्लिक्स और अमेज़ॉन जैसे आॅनलाइन प्लेटफॉर्म आ जाने के बाद यहां रिलीज़ हो रहीं फिल्मों के बारे में कैसे पता चलता है कि वे सफल रहीं या असफल?
ईमानदारी से कहूं तो कलेक्शन का कैसे पता चलता है इसके बारे में मैं नहीं बता सकती, लेकिन दर्शकों की प्रतिक्रियाएं सोशल मीडिया की वजह से पता चल जाती हैं.
सोशल मीडिया के आ जाने की वजह से अब कलाकारों से दर्शकों का बहुत नज़दीकी जुड़ाव होता है. आमने-सामने मिलने की ज़रूरत नहीं है. अब कोई किसी दूरदराज़ के इलाके में रह रहा हो या फिर विदेश में वह अगर किसी कलाकार से जुड़ा है तो बता देता है कि वह फिल्म के बारे में क्या महसूस कर रहा है.
और चूंकि सोशल मीडिया पर आमना-सामना होने का डर नहीं होता तो कोई भी कुछ भी बोल सकता है. इसका मतलब जब वो बोलते हैं तो सच ही बोलते हैं. अगर उन्हें फिल्म अच्छी नहीं लगती है तो वे बहुत ही ईमानदारी से बोल देते हैं कि हमें नहीं अच्छी लगी.
तो आॅनलाइन रिलीज़ होने के बाद फिल्म ने कितना कारोबार किया, ये मैं नहीं जानती लेकिन उस पर दर्शकों की प्रतिक्रिया क्या है ये पता चल जाती है.
जैसे- वंस अगेन रिलीज़ होने के एक हफ़्ते बाद नेटफ्लिक्स के ‘टॉप-7 वॉचेस’ में ट्रेंड में कर रही थी. मतलब जो चीज़ें नेटफ्लिक्स पर देखनी चाहिए यह उस सूची में आ गई थी. फिल्म को 7+ रेटिंग मिली. तो वास्तव में इस फिल्म अच्छी प्रतिक्रियाएं मिलीं.
आप एक-दो वेब सीरीज़ और कर रही हैं. आपके आने वाले प्रोजेक्टस कौन से हैं?
अभी मैंने भारतीय-कनाडाई निर्देशक रिकी मेहता के साथ एक फिल्म की है. ये रियल लाइफ पुलिस केस है और दिल्ली पुलिस पर आधारित है. यह तैयार है लगभग इस साल के आख़िर में रिलीज़ होने की संभावना है. सीरीज़ के सभी आठ एपिसोड हमने शूट कर लिए हैं.
एक और कार्यक्रम है, जिसे लेकर मैं काफी ख़ुश हूं लेकिन उसके बारे में अभी कुछ बता नहीं सकती है. यह शायद अगले साल फरवरी या मार्च में शुरू होने वाला है.
फिल्म सत्या में आपने भीखू म्हात्रे की पत्नी प्यारी का रोल निभाया था. 1998 में तीन जुलाई को रिलीज़ हुई थी. इस फिल्म को रिलीज़ हुए 20 साल हो गए हैं. इस रोल के लिए कैसे चुना गया आपको?
मुझे याद है कि मैं कहीं किसी और प्रोजेक्ट के लिए डबिंग कर रही थी तो मुझसे मिलने अनुराग कश्यप आए थे और रामू (राम गोपाल वर्मा) से मेरी बात हुई थी उन्होंने कहा था रामू आपसे आकर मिलेंगे और रोल के बारे समझाएंगे.
अनुराग ने मुझे रोल समझाया, जो मुझे बहुत पसंद आया और मैंने उन्हें हां कह दिया. जब हम फिल्म शूट कर रहे थे. तब अनुराग और रामू ने इतनी स्वतंत्रता दी मुझे, मुझसे दोनों ने पूछा कि तुम इस रोल के बारे में क्या कहना चाहती हो और इसे कैसे करना चाहोगी और फिर ये रोल मैंने किया.
आपका कोई फिल्मी बैकग्राउंड नहीं रहा ऐसे में फिल्मों में कैसे आना हुआ?
मैं मुंबई में ही पली-बढ़ी हूं. 10 साल की उम्र में मैंने स्कूल में एक नाटक किया है. मेरी टीचर के पति जो कि गुजराती में नाटक लिखते थे. उन्होंने मेरी फोटो देखी थी वो मेरे मम्मी पापा से आकर मिले.
इसके बाद मैंने आॅडिशन दिया और उनका एक नाटक कर लिया. उसके बाद एक लंबा अंतराल रहा. फिर जब कॉलेज में गई तब इंटर कॉलेज प्रतियोगिताएं हुईं. वहां से फिर गुजराती थियेटर शुरू हुआ, उसके बाद टेलीविज़न.
काफी समय बाद मुझे महसूस हुआ कि ये सब मैं रोज़ कर रही हूं तो यही मेरा प्रोफेशन होगा. तब तक इस बारे में सोचा नहीं था. तब तक यही लगता था कि ये सब शौक से कर रही हूं.
तो इस तरह से ये सब शुरू हुआ.
आपके पति विपुल शाह फिल्म प्रोड्यूसर हैं लेकिन आप बहुत ही चुनिंदा फिल्मों में नज़र आती हैं, ऐसा क्यों?
हम दोनों लोग एक दूसरे के काम का आदर करते हैं. सिर्फ मियां-बीवी हैं इसलिए साथ काम करें, ऐसा नहीं होगा. विपुल मुझे ऐसा कुछ भी आॅफर नहीं करेंगे जो मेरे लिए अच्छा न हो और मैं विपुल से ये उम्मीद नहीं करूंगी कि मेरे लिए कोई न कोई रोल अपनी फिल्म में वो बनाएं.
हम एक दूसरे से प्यार करते हैं और एक दूसरे का सम्मान करते हैं. जब कोई सही रोल होता है या जब उन्हें लगता है कि कोई रोल मैं कर सकती हूं तभी वो मुझसे पूछते हैं.
उन्होंने कभी ये नहीं कहा कि ये रोल करो, उन्होंने हमेशा मुझसे पूछा है और मैंने कभी सामने से नहीं कहा कि ये फिल्म मेरे लिए बनाओ.
आपने टीवी सीरियलों में भी काम किया है लेकिन हाल ही में एक इंटरव्यू के दौरान आपने कहा कि अब आप टीवी सीरियल नहीं करेंगी. इसकी वजह?
जब मैं टीवी के लिए काम करती थी तो एक सीमित संख्या में एपिसोड होते थे. उसमें एक निश्चित स्टोरीलाइन होती थी, निश्चित किरदार होते थे. अब तो 500 एपिसोड्स, 700 एपिसोड्स और जो टेलीविज़न मैं देख रही हूं वह क्वालिटी से ज़्यादा क्वांटिटी पर निर्भर है.
मतलब एपिसोड अच्छा हो या बुरा लेकिन इतने मिनट शूट करना ही होता है, ऐसे में काम प्रभावित होता है. दूसरा एक रोल बताया जा सकता है, एक कहानी बताई जा सकती है लेकिन तीन-चार अचानक किसी को लगे कि ये काम नहीं कर रहा है तो वो बदल जाएगा, तो इसका फायदा क्या.
मैं अभी जो टेलीविज़न का हाल मैं देख रही हूं, मैं टीवी देखती ही नहीं. मुझे अगर आप एक सीरियल से दूसरे सीरियल के बीच का अंतर मुझसे पूछें तो मैं नहीं बता पाऊंगी, क्योंकि मैं इन्हें देखती ही नहीं.
इसलिए मैं ऐसा कुछ भी नहीं करूंगी जिसमें मैं रचनात्मक रूप से ख़ुश न रहूं. सिर्फ काम करना है इसलिए जाकर काम करो, ये मैं नहीं कर सकती. इसका कोई मतलब नहीं है. मैं अपने काम को बेहद प्यार करती हूं और यह बहुत ही कीमती है.