प्रख्यात वास्तुकार ने कहा, स्मार्ट सिटी एक भ्रामक नारा है

प्रख्यात वास्तुकार और नगर नियोजक क्रिस्टोफर बेननिंगर ने कहा कि सरकार को स्मार्ट सिटी के बजाय गरीब लोगों को गरिमापूर्ण रहन-सहन देने वाले शहरों के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए.

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प्रख्यात वास्तुकार और नगर नियोजक क्रिस्टोफर बेननिंगर. (फोटो साभार: फेसबुक/Christopher Charles Benninger)

प्रख्यात वास्तुकार और नगर नियोजक क्रिस्टोफर बेननिंगर ने कहा कि सरकार को स्मार्ट सिटी के बजाय गरीब लोगों को गरिमापूर्ण रहन-सहन देने वाले शहरों के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए.

प्रख्यात वास्तुकार और नगर नियोजक क्रिस्टोफर बेननिंगर. (फोटो साभार: फेसबुक/Christopher Charles Benninger)
प्रख्यात वास्तुकार और नगर नियोजक क्रिस्टोफर बेननिंगर. (फोटो साभार: फेसबुक/Christopher Charles Benninger)

नई दिल्ली: प्रख्यात वास्तुकार एवं नगर नियोजक क्रिस्टोफर बेननिंगर ने गुरुवार को कहा कि ‘स्मार्ट सिटी’ महज़ एक ‘भ्रामक नारा’ है. सरकार को इसके बजाय गरीब लोगों को गरिमापूर्ण रहन-सहन देने वाले शहरों के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए.

बेननिंगर ने नई दिल्ली में हुए साइरस झाबवाला स्मारक व्याख्यान के तीसरे संस्करण में कहा कि शहर को अपने सभी लोगों को मूलभूत सुविधाएं प्रदान करने वाला होना चाहिए.

उन्होंने कहा, ‘यदि आप किसी राज्य सरकार के नगर निगम अधिनियम को पढ़ेंगे तो आप पाएंगे कि यह सड़क, पेयजल, सीवेज प्रणाली, स्ट्रीट लाइट, फुटपाथ और कुछ अन्य चीज़ों के बारे में बातें करता है.’

75 वर्षीय वास्तुकार बेननिंगर ने कहा, ‘कोई भी शहर जो अपने राज्य के नगरपालिका अधिनियम को लागू करता है और अपने लोगों को ये बुनियादी सुविधाएं प्रदान करता है, मेरे ख़्याल में वो स्मार्ट सिटी है. न कि ये वाहियात चीज़ें, जिसे हम प्रायोजित कर रहे हैं. स्मार्ट सिटी एक मिथ्या है और दुखद है इसमें हम सभी को शामिल किया गया है.’

उन्होंने कहा कि विभिन्न मानदंडों के ज़रिये यह देखना आसान है कि पहले लोगों का रहन सहन क्या था और अब वे कैसे रह रहे हैं. उनके पास पेयजल, सीवेज प्रणाली जैसे मानदंड हो सकते हैं… इसे आर्थिक रूप से पिछड़े इलाकों के लिए भी मापा जा सकता है.

उन्होंने कहा कि आप यह माप सकते हैं कि तीन साल पहले की तुलना में किसी क्षेत्र के कुछ लोग या ज़्यादा लोगों के पास कैसा सीवर सिस्टम उपलब्ध है. आप लोगों के ज़िंदगी जीने के तौर-तरीकों से यह माप सकते हैं कि वे तब कैसे रहते थे और अब कैसे रह रहे हैं.

फुलब्राइट फेलोशिप पाने के बाद 1968 में भारत आए बेननिंगर ने तमाम परियोजनाओं पर काम किया जिसमें आईआईटी हैदराबाद, पुणे का कॉलेज आॅफ इंजीनियरिंग शामिल हैं.

रुथ झाबवाला और साइरस झाबवाला. (फोटो साभार: parsikhabar.net)
रुथ झाबवाला और साइरस झाबवाला. (फोटो साभार: parsikhabar.net)

उन्होंने देश के युवा वास्तुकारों को संबोधित करते हुए कहा कि उन लोगों को ‘भारत के लोगों के लिए’ एक शहर की योजना बनानी चाहिए.

उन्होंने कहा, ‘मेरा मानना है कि दक्षिण दिल्ली, लुटियन दिल्ली और चंडीगढ़ के लिए बहुत कुछ किया जा चुका है. आप वास्तुकार हैं और आप प्रसिद्ध वास्तुकार बनने चाहते हैं, इसलिए आपको भारत के लोगों के लिए एक शहर की योजना बनानी चाहिए.’

बेननिंगर ने कहा, ‘युवाओं को इस बात की जानकारी लेनी चाहिए कि इस देश में रहने वाले लोग कौन हैं और उन्हें किस तरह की योजना और वास्तुशिल्प की ज़रूरत है. विश्वास कीजिए अभी भी बहुत कुछ ऐसा है जिसे किया जाना बाकी है.’

इस साल इस व्याख्यानमाला का शीर्षक ‘द स्टोरीज़ फ्रॉम माय जर्नी: यस्टरडे, टुडे और टुमारो’ था. व्याख्यानमाला में बेननिंगर ने एक वास्तुकार के रूप में अपने शुरुआती दिनों और वर्षों के अपने काम की जानकारी भी दी.

यह व्याख्यानमाला प्रख्यात वास्तुकार साइरस झाबवाला की याद में हर साल आयोजित की जाती है. साइरस ने दिल्ली स्थित पारसी धर्मशाला, भिवंडीवाला हॉल और डार-ए-मेहर जैसे भवनों को डिज़ाइन किया था.

इसके अलावा उन्होंने उत्तर भारत के कुछ बड़े विश्वविद्यालयों का डिज़ाइन तैयार करने के अलावा दिल्ली में होने वाले ट्रेड फेयर के लिए तमाम पेवेलियन तैयार किया था. बुकर पुरस्कार प्राप्त उपन्यासकार रुथ प्रवेर झाबवाला उनकी पत्नी थीं.

उनके उपन्यास ‘हीट एंड डस्ट’ के लिए साल 1975 में उन्हें बुकर पुरस्कार मिला था. इसके अलावा 1987 में ‘अ रूम विथ अ व्यू’ के लिए और 1992 में ‘हॉवर्ड्स एंड’ फिल्म के लिए उन्हें बेस्ट अडॉप्टेड स्क्रीनप्ले का आॅस्कर अवार्ड मिला था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)