आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार दक्षिणपंथी नेता संभाजी भिड़े और उनके संगठन शिव प्रतिष्ठान हिंदुस्तान के ख़िलाफ़ छह मामले दर्ज किए गए थे. इसके अलावा भाजपा और शिवसेना नेताओं के ख़िलाफ़ दर्ज मामले भी महाराष्ट्र सरकार द्वारा वापस लिए गए.
पुणे: महाराष्ट्र पुलिस ने दक्षिणपंथी नेता संभाजी भिड़े के ख़िलाफ़ दंगों के मामले वापस ले लिए गए हैं. एक आरटीआई के जवाब में इसका खुलासा हुआ है. ये मामले पुणे के पास भीमा-कोरेगांव में हुई हिंसा से छह माह पहले वापस ले लिए गए थे.
आरटीआई के जवाब के अनुसार, भिड़े और उसके संगठन शिव प्रतिष्ठान हिंदुस्तान के ख़िलाफ़ छह मामले दर्ज किए गए थे, ये मामले वर्ष 2008 में बॉलीवुड फिल्म ‘जोधा अकबर’ और वर्ष 2009 में शिवाजी की हत्या पर बनी फिल्म के ख़िलाफ़ प्रदर्शन के संबंध में दर्ज किए गए थे.
प्रदर्शनकारियों ने इस दौरान दंगा, पथराव किया और कई टायरों को आग भी लगाई थी. इन दंगों के संबंध में संभाजी भिड़े और उनके संगठन के सैकड़ों कार्यकर्ताओं को आरोपी बनाया गया था.
बहरहाल, पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने सोमवार को कहा कि 85 वर्षीय भिड़े के ख़िलाफ़ मामले अभी वापस नहीं लिए गए हैं.
समाचार एजेंसी एएनआई से बातचीत में पुणे के पुलिस अधीक्षक संदीप पाटिल ने कहा है कि भीमा-कोरेगांव हिंसा के संबंध में संभाजी भिड़े और दूसरों के ख़िलाफ़ से मामले वापस नहीं लिए गए हैं. मामले की जांच अब भी जारी है.
No charges against Sambhaji Bhide and others have been removed so far in Bhima Koregaon violence case. The investigation is still in progress: Pune SP Sandeep Patil to ANI
— ANI (@ANI) October 1, 2018
एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार, दंगों से संबंधित दर्जनों ऐसे मामले जिसमें भाजपा और शिवसेना के नेता और समर्थक आरोपी थे, उन्हें भी वापस ले लिया गया है.
इतना ही नहीं फिल्म जोधा अकबर की रिलीज़ के समय आरएसएस कार्यकर्ताओं के ख़िलाफ़ दर्ज छह में से तीन मामले ख़त्म कर दिए गए हैं.
मुंबई से 375 किलोमीटर दूर सांगली शहर के एक मल्टीप्लेक्स के बाहर शिव प्रतिष्ठान हिंदुस्तान के नेतृत्व में हुए विरोध प्रदर्शन के दौरान सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने फिल्म के पोस्टर फाड़ दिए थे और जमकर नारेबाज़ी की थी.
इतना ही नहीं उग्र कार्यकर्ताओं ने पुलिसकर्मियों पर पथराव करने के साथ ही पुलिस वैन के अलावा बसों और दूसरे वाहनों को क्षतिग्रस्त कर दिया था.
महाराष्ट्र के वित्त मंत्री सुधीर मुनगंटीवार ने एनडीटीवी से बातचीत में बताया, ‘महाराष्ट्र की पूर्ववर्ती कांग्रेस-राकांपा सरकार की ओर से जारी अध्यादेश के हिसाब से मामले वापस लिए गए हैं. अध्यादेश के अनुसार ऐसे प्रदर्शन या आंदोलन जो जनता द्वारा शुरू किए गए हो उनके संबंध में दर्ज मामले वापस लिए जा सकते हैं.’
आरटीआई में खुलासा हुआ है कि पिछले साल जून से महाराष्ट्र सरकार की ओर से कम से कम आठ प्रस्ताव जारी किए गए थे जिनमें संभाजी भिड़े, भाजपा और शिवसेना के नेताओं और हज़ारों कार्यकताओं के ख़िलाफ़ दर्ज मामले वापस लेने को कहा गया था.
सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत मुंबई के कार्यकर्ता शकील अहमद शेख़ ने साल 2008 से राजनीतिक नेताओं के ख़िलाफ़ दर्ज कितने केस वापस लिए गए, इसकी जानकारी मांगी गई थी. आरटीआई एक्टिविस्ट शकील अहमद शेख ने बताया, ‘संभाजी भिड़े के ख़िलाफ़ तीन केस और भाजपा व शिवसेना के नेताओं के खिलाफ़ नौ केस ख़त्म कर दिए गए.’
Filed RTI to seek information on how many cases against political leaders&their supporters were withdrawn since 2008. 3 cases against Bhima Koregaon violence accused Sambhaji Bhide were withdrawn & 9 cases against BJP & Shiv Sena leaders withdrawn: RTI activist Shakeel A Shaikh pic.twitter.com/Fb0zLeYqud
— ANI (@ANI) October 1, 2018
इसके जवाब में कहा गया था कि इस तरह की पहली अधिसूचना साल 2017 में भाजपा-शिवसेना सरकार के दौरान जारी की गई थी.
एनडीटीवी से बातचीत में शकील अहमद शेख़ ने बताया, ‘पिछले एक साल में महाराष्ट्र सरकार की ओर से 41 मामले ख़त्म किए गए. इनमें से 14 मामले विभिन्न विधायकों, भाजपा और शिवसेना के नेताओं के ख़िलाफ़ थे, जिन्हें रद्द किया गया.’
मालूम हो कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व कार्यकर्ता भिड़े ‘शिव प्रतिष्ठान हिंदुस्तान’ के प्रमुख हैं. वह एक जनवरी को पुणे के भीमा-कोरेगांव युद्ध की 200 वर्षगांठ के दौरान हुई जातीय हिंसा के मुख्य आरोपियों में से एक हैं. मामले के एक अन्य आरोपी मिलिंद एकबोटे हैं. मिलिंद एक हिंदुत्ववादी नेता हैं और हिंदू एकता मंत्र नाम का संगठन चलाते हैं.
भीमा-कोरेगांव हिंसा के दौरान एक व्यक्ति की मौत हो गई थी और कई घायल हो गए थे. इस संबंध में पुणे पुलिस की ओर से बनाई गई 10 सदस्यीय कमेटी की ओर से जारी रिपोर्ट में कहा गया कि हिंसा के पीछे संभाजी भिड़े और मिलिंद एकबोटे का हाथ है.
एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार, इस संबंध में दर्ज एफआईआर में संभाजी भिड़े का नाम शामिल किया गया था. एकबोटे को इस संबंध में गिरफ़्तार किया गया था. बाद में उन्हें ज़मानत मिल गई थी वहीं संभाजी भिड़े से सबूतों के अभाव में पूछताछ भी नहीं की जा सकी थी.
भीमा-कोरेगांव हिंसा के मामले ने बीते अगस्त महीने में तब तूल पकड़ लिया था जब विभिन्न जगहों ने पुलिस ने पांच सामाजिक और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को गिरफ़्तार किया था.
पुणे पुलिस ने पिछले साल 31 दिसंबर को हुए एलगार परिषद के सम्मेलन के बाद दर्ज की गई एक प्राथमिकी के सिलसिले में 28 अगस्त को इन कार्यकर्ताओं को गिरफ़्तार किया था. पुलिस का कहना था कि इस सम्मेलन के बाद राज्य के भीमा-कोरेगांव में हिंसा भड़की थी.
इन पांच लोगों में तेलुगू कवि वरवरा राव, मानवाधिकार कार्यकर्ता अरुण फरेरा और वर्णन गोंसाल्विस, मज़दूर संघ कार्यकर्ता और अधिवक्ता सुधा भारद्वाज और नागरिक अधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा शामिल है.
इसके बाद से इन पांचों लोगों को नज़रबंद किया गया था. सोमवार को दिल्ली उच्च न्यायालय ने गौतम नवलखा की नज़रबंदी ख़त्म कर दी.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)