स्वच्छ भारत: शौचालयों के अपशिष्ट निस्तारण का इंतज़ाम न होने से भूजल दूषित होने का ख़तरा

रिपोर्ट के मुताबिक भारत में लगभग 14.4 करोड़ घरेलू शौचालयों के 72 करोड़ लोगों के इस्तेमाल से प्रतिदिन औसतन एक लाख टन अपशिष्ट निकलता है. इसके उचित निस्तारण के इंतजाम नहीं होने पर अपशिष्ट से जमीन और भूजल के दूषित होने का खतरा है.

स्वच्छ भारत मिशन (फोटो: swachhbharatmission.gov.in)

रिपोर्ट के मुताबिक भारत में लगभग 14.4 करोड़ घरेलू शौचालयों के 72 करोड़ लोगों के इस्तेमाल से प्रतिदिन औसतन एक लाख टन अपशिष्ट निकलता है. इसके उचित निस्तारण के इंतजाम नहीं होने पर अपशिष्ट से जमीन और भूजल के दूषित होने का खतरा है.

स्वच्छ भारत मिशन (फोटो: swachhbharatmission.gov.in)
स्वच्छ भारत मिशन (फोटो: swachhbharatmission.gov.in)

नई दिल्ली: पर्यावरण के क्षेत्र में कार्यरत शोध संस्था सेंटर फॉर सांइस एंड एनवायर्नमेंट (सीएसई) ने स्वच्छता अभियान की जमीनी हकीकत से जुड़ी रिपोर्ट के हवाले से कहा है कि देश को खुले में शौच की समस्या से मुक्ति (ओडीएफ) का तमगा भले ही मिल जाए लेकिन भारत में सफाई की वास्तविकता सवालों के घेरे से बाहर नहीं है.

सीएसई की महानिदेशक सुनीता नारायण ने पर्यावरण से जुड़ी पत्रिका ‘डाउन टू अर्थ’ के साथ सोमवार को जारी विश्लेषण रिपोर्ट के हवाले से कहा कि सरकारी आंकड़ों के मुताबिक भारत अगले साल फरवरी में ओडीएफ देश होने का दावेदार हो जाएगा.

उन्होंने कहा कि सरकार के स्वच्छ भारत अभियान के तहत अब तक देश के 76 प्रतिशत गांवों को ओडीएफ का दर्जा मिल गया है.

नारायण ने सरकारी आंकड़ों के हवाले से कहा कि देश में 8.33 करोड़ शौचालयों के बनने के दावे पर कहा कि ‘स्वच्छ भारत’ के दावे को हकीकत में बदलने के लिए शौचालय निर्माण पहला और सबसे आसान कदम है. लेकिन इसे सफलता का अंतिम पायदान नहीं माना जा सकता है.

उन्होंने कहा कि करोड़ों शौचालयों से भारी मात्रा में जनित ठोस और तरल कचरे के निस्तारण के पुख्ता उपाय नहीं होने पर पर्यावरण और मानवीय सेहत के लिए नया खतरा बन जायेगा.

विश्लेषण रिपोर्ट के मुताबिक भारत में लगभग 14.4 करोड़ घरेलू शौचालयों के 72 करोड़ लोगों के इस्तेमाल से प्रतिदिन औसतन एक लाख टन अपशिष्ट निकलता है. इसके उचित निस्तारण के इंतजाम नहीं होने पर अपशिष्ट से जमीन और भूजल के दूषित होने का खतरे की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता है.

रिपोर्ट में शौचालयों के निर्माण में अपशिष्ट के निस्तारण के सुरक्षित उपायों का ध्यान रखने की जरूरत पर बल देते हुए कहा गया है कि इसके लिए पुख्ता इंतजाम नहीं होने पर स्वच्छता अभियान के वांछित परिणाम नहीं मिलेंगे.

वहीं सीएसई की प्रोजेक्ट मैनेजर सुष्मिता सेनगुप्ता ने कहा, ‘खुले शौचालय की तुलना में यह एक बड़ी समस्या हो सकती है. यदि सही तरीके से इसे प्रबंधित नहीं किया जाता है, इन शौचालयों से निकलने वाले भारी मात्रा में अपशिष्ट लोगों के घरों के करीब फैल जाएंगे, जमीन और पानी के स्रोतों को गंभीर रूप से दूषित कर सकते हैं.’

सुनीता नारायन ने कहा, ‘यह स्पष्ट है कि अपशिष्ट के सुरक्षित निपटान को ध्यान में रखते हुए शौचालयों का निर्माण किया जाना चाहिए. इसके बिना, हमें सुरक्षित स्वच्छता का लाभ नहीं मिलेगा – मानव अपशिष्ट के सुरक्षित निपटान के कारण बीमारी में कमी आती है.’

रिपोर्ट के मुताबिक ओडीएफ प्रक्रिया के सत्यापन के लिए, पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय ने सिफारिश की है कि संबंधित राज्य के अधिकारियों/विभागों को नौ महीने तक प्रक्रिया में शामिल किया जाना चाहिए.

इस अवधि के दौरान, उनसे पानी की उपलब्धता, जल स्रोतों की सफाई और जल निकायों, विकेन्द्रीकृत अपशिष्ट प्रबंधन, स्कूल के रखरखाव और आंगनवाड़ी शौचालय आदि पर ध्यान केंद्रित करने की उम्मीद की जाएगी.

हालांकि राज्यों ने इन दिशानिर्देशों में संशोधन किया है (स्वच्छता राज्य का विषय है) और अन्य पहलुओं पर अधिक ध्यान देने के बिना केवल शौचालयों के निर्माण पर केंद्रित है.

रिपोर्ट में शौचालयों के निर्माण के तरीके में विसंगतियां मिली हैं. खराब डिजाइन में निर्मित ये शौचालय कई जगहों पर लोगों के लिए बोझ बन गए हैं. उदाहरण के लिए, बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में बने शौचालयों से मानसून के दौरान प्रदूषण और स्वास्थ्य जोखिम पैदा होने का खतरा है.

सेप्टिक टैंक नाइट्रेट और जीवाणु प्रदूषण के कारण पीने के लिए पानी को दूषित कर सकते हैं.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)