आज ही के दिन 1947 में पेश हुआ हिंदू कोड बिल, ​कट्टरपंथियों ने काटा था बवाल

आज जैसे तीन तलाक़ में बदलाव की मांग को कट्टरपंथी धड़ा इस्लाम में दख़ल बताता है, कुछ वैसा ही आज़ादी के बाद हिंदू रूढ़ियों में बदलाव किए जाने पर अतिवादियों ने उसे हिंदू धर्म पर हमला बताया था.

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New Delhi: Parliament during the first day of budget session in New Delhi on Tuesday. PTI Photo by Kamal Kishore (PTI2_23_2016_000104A)

प्रासंगिक: आज जैसे तीन तलाक़ में बदलाव की मांग को कट्टरपंथी धड़ा इस्लाम में दख़ल बताता है, कुछ वैसा ही आज़ादी के बाद हिंदू रूढ़ियों में बदलाव किए जाने पर अतिवादियों ने उसे हिंदू धर्म पर हमला बताया था.

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(साभार: Wikimedia Commons)

आपको यह जानकर हैरानी होगी जब भारत आजाद हुआ तब हिंदू समाज में पुरुष और महिलाओं को तलाक का अधिकार नहीं था. पुरूषों को एक से ज्यादा शादी करने की आजादी थी लेकिन विधवाएं दोबारा शादी नहीं कर सकती थी. विधवाओं को संपत्ति से भी वंचित रखा गया था.

आजादी के बाद भारत का संविधान बनाने में जुटी संविधान सभा के सामने 11 अप्रैल 1947 को डॉक्टर भीमराव आंबेडकर ने हिंदू कोड बिल पेश किया था. इस बिल में बिना वसीयत किए मृत्यु को प्राप्त हो जाने वाले हिंदू पुरुषों और महिलाओंं की संपत्ति के बंटवारे के संबंध में कानूनों को संहिताबद्ध किए जाने का प्रस्ताव था.

यह विधेयक मृतक की विधवा, पुत्री और पुत्र को उसकी संपत्ति में बराबर का अधिकार देता था. इसके अतिरिक्त, पुत्रियों को उनके पिता की संपत्ति में अपने भाईयों से आधा हिस्सा प्राप्त होता.

इस विधेयक में विवाह संबंधी प्रावधानों में बदलाव किया गया था. यह दो प्रकार के विवाहों को मान्यता देता था-सांस्कारिक व सिविल. इसमें हिंदू पुरूषों द्वारा एक से अधिक महिलाओं से शादी करने पर प्रतिबंध और अलगाव संबंधी प्रावधान भी थे. यह कहा जा सकता है कि हिंदू महिलाओं को तलाक का अधिकार दिया जा रहा था.

विवाह विच्छेद के लिए सात आधारों का प्रावधान था. परित्याग, धर्मांतरण, रखैल रखना या रखैल बनना, असाध्य मानसिक रोग, असाध्य व संक्रामक कुष्ठ रोग, संक्रामक यौन रोग व क्रूरता जैसे आधार पर कोई भी व्यक्ति तलाक ले सकता था.

यह बिल ऐसी तमाम कुरीतियों को हिंदू धर्म से दूर कर रहा था जिन्हें परंपरा के नाम पर कुछ कट्टरपंथी जिंदा रखना चाहते थे. इसका जोरदार विरोध हुआ. आंबेडकर के तमाम तर्क और नेहरू का समर्थन भी बेअसर साबित हुआ. इस बिल 9 अप्रैल 1948 को सेलेक्ट कमेटी के पास भेज दिया गया.

बाद में 1951 को आंबेडकर ने हिंदू कोड बिल को संसद में पेश किया. इसे लेकर संसद के अंदर और बाहर विद्रोह मच गया. सनातनी धर्मावलम्बी से लेकर आर्य समाजी तक आंबेडकर के विरोधी हो गए.

उस समय भारत का संविधान भी बनकर तैयार था. लेकिन संसद के सदस्यों को जनता ने नहीं चुना था. इन सदस्यों को बहुसंख्यक हिंदू समाज में बदलाव और पुराने रीति-रिवाजों को बदलने का निर्णय करना था. संसद में तीन दिन तक बहस चली.

हिंदू कोड बिल का विरोध करने वालों का कहना था कि संसद के सदस्य जनता के चुने हुए नहीं है इसलिए इतने बड़े विधेयक को पास करने का नैतिक अधिकार नहीं है. एक और विरोध इस बात का था कि सिर्फ हिंदुओं के लिए कानून क्यों लाया जा रहा है, बहुविवाह की परंपरा तो दूसरे धर्मों में भी है. इस कानून को सभी पर लागू किया जाना चाहिए. यानी समान नागरिक आचार संहिता.

संसद में जहां जनसंघ समेत कांग्रेस का हिंदूवादी धड़ा इसका विरोध कर रहा था तो वहीं संसद के बाहर हरिहरानन्द सरस्वती उर्फ करपात्री महाराज के नेतृत्व में बड़ा प्रदर्शन चल रहा था.

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भीमराव आंबेडकर (फोटो: Wikimedia Commons)

अखिल भारतीय राम राज्य परिषद की स्थापना करने वाले करपात्री का कहना था कि यह बिल हिंदू धर्म में हस्तक्षेप है. यह बिल हिंदू रीति-रिवाजों, परंपराओं और धर्मशास्त्रों के विरुद्ध है. उन्होंने इस बिल पर प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को वाद-विवाद करने की खुली चुनौती दी.

करपात्री महाराज के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, हिंदू महासभा और दूसरे हिंदूवादी संगठन हिंदू कोड बिल का विरोध कर रहे थे. इसलिए जब इस बिल को संसद में चर्चा के लिए लाया गया तब हिंदूवादी संगठनों ने इसके खिलाफ देश भर में प्रदर्शन शुरू कर दिए. आरएसएस ने अकेले दिल्ली में दर्जनों विरोध-रैलियां आयोजित कीं.

हालांकि प्रधानमंत्री नेहरू इस बिल को पारित करवाना चाह रहे थे, लेकिन तमाम विरोध और पहले आम चुनाव नजदीक होने के चलते वह इसे टाल गए. गौरतलब है कि फरवरी 1949 को संविधान सभा की बैठक में नेहरू ने कहा था, ‘इस कानून को हम इतनी अहमियत देते हैं कि हमारी सरकार बिना इसे पास कराए सत्ता में रह ही नहीं सकती.’

वहीं आंबेडकर हिंदू कोड बिल पारित करवाने को लेकर काफी चिंतित थे. वे कहते थे, ‘मुझे भारतीय संविधान के निर्माण से अधिक दिलचस्पी और खुशी हिंदू कोड बिल पास कराने में है.’ लेकिन यह बिल उस समय पारित नहीं हो सका. आंबेडकर ने हिंदू कोड बिल समेत अन्य मुद्दों को लेकर कानून मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया.

देश के पहले लोकसभा चुनाव के बाद नेहरू ने हिंदू कोड बिल को कई हिस्सों में तोड़ दिया. जिसके बाद 1955 में हिंदू मैरिज एक्ट बनाया गया. जिसके तहत तलाक को कानूनी दर्जा, अलग-अलग जातियों के स्त्री-पुरूष को एक-दूसरे से विवाह का अधिकार और एक बार में एक से ज्यादा शादी को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया.

इसके अलावा 1956 में ही हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, हिंदू दत्तक ग्रहण और पोषण अधिनियम और हिंदू अवयस्कता और संरक्षकता अधिनियम लागू हुए. ये सभी कानून महिलाओं को समाज में बराबरी का दर्जा देने के लिए लाए गये थे. इसके तहत पहली बार महिलाओं को संपत्ति में अधिकार दिया गया. लड़कियों को गोद लेने पर जोर दिया गया.

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