देश में 93 लाख से ज़्यादा बच्चे गंभीर कुपोषण के शिकार

स्वास्थ्य राज्य मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते ने एक सवाल के जवाब में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे पर आधारित आंकड़ों की जानकारी राज्यसभा में दी.

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स्वास्थ्य राज्य मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते ने एक सवाल के जवाब में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे पर आधारित आंकड़ों की जानकारी राज्यसभा में दी.

 Rajni, a severely malnourished 2-year-old girl, is weighed by health workers at the Nutritional Rehabilitation Center of Shivpuri district in the central Indian state of Madhya Pradesh. Malnuitrition Reuters
(फाइल फोटो: रॉयटर्स)

भारत सरकार की एजेंसी राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे (एनपीएसएस) के ताज़ा आंकड़ों के अनुसार, देश में कुल 93.4 लाख बच्चे गंभीर रूप से कुपोषण (सीवियर एक्यूट मालन्यूट्रिशन- एसएएम) के शिकार हैं. मंगलवार को स्वास्थ्य राज्य मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते ने राज्यसभा में ये आंकड़ें पेश किए हैं.

समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, राज्यसभा में फग्गन सिंह ने कहा कि देशभर के 25 राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों में कुल मिलाकर 966 पोषण पुनर्वास केंद्र (एनआरसी) हैं. उन्होंने अपने लिखित जवाब में कहा है कि साल 2015 16 में 93.4 लाख कुपोषित बच्चों में से 10 प्रतिशत को चिकित्सा संबंधी जटिलताओं के वजह से एनआरसी में भर्ती की ज़रूरत पड़ सकती है.

राज्यसभा में उन्होंने यह भी बताया कि 2015-16 में लगभग 1,72,902 बच्चों को एनसीआर में भर्ती कराया गया था. उनमें से 92,760 सफलतापूर्वक बचाया जा सका था.

फग्गन सिंह ने बताया राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत एनआरसी की स्थापना सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में की गई है, ताकि गंभीर रूप से कुपोषण से ग्रस्त और मेडिकल जटिलताओं वाले बच्चों के इलाज और प्रबंधन के लिए उन्हें भर्ती कराया जा सके. बच्चों को परिभाषित प्रवेश मानदंडों के अनुसार भर्ती कराया जाता है और चिकित्सा और पोषण चिकित्सीय देखभाल की भी सुविधा दी जाती है.

आंकड़ों के संदर्भ में वे कहते हैं, गंभीर कुपोषण से ग्रस्त बच्चों के रोग प्रबंधन के लिए सेवाएं और देखभाल प्रदान की जाती हैं जिसमें बच्चे की 24 घंटे की देखभाल और निगरानी, चिकित्सा संबंधी जटिलताओं का उपचार, चिकित्सीय भोजन, भावनात्मक देखभाल प्रदान करना, परिवार का सामाजिक आकलन कर ज़रूरी योगदानों को उन तक पहुंचाना शामिल है.

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे (एनपीएसएस) के 2015-16 आकड़ों में कहा गया है कि बिहार में छह से 23 महीने के 10 में से 9 बच्चों को पर्याप्त मात्रा में पोषण नहीं मिल पाता है.

केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की देख-रेख में हुए सर्वे में पता चला है कि बिहार में सिर्फ 7.5 प्रतिशत बच्चों को ही पर्याप्त आहार और पोषण मिल पाता है.

द एशियन एज की रिपोर्ट के अनुसार, एनपीएसएस के आंकड़ों पर आधारित गैर सरकारी संगठन चाइल्ड राइट एंड यू क्राय के अध्ययन में पता चला है कि उत्तर प्रदेश में भी 10 में से 9 बच्चों को पर्याप्त आहार और पोषण नहीं मिलता. राज्य में महज 5.3 प्रतिशत बच्चों को ही पर्याप्त आहार और पोषण मिल पाता है. यह आंकड़ा पूरे देश में सबसे कम है.

अध्ययन में यह बात भी सामने आई है कि उत्तर प्रदेश में जन्म के पहले घंटे में चार में से तीन बच्चों को मां का दूध नहीं मिल पाता. राज्य में जन्म लेने वाले छह से 59 महीनों के दो तिहाई बच्चे एनीमिया के शिकार होते हैं.

बच्चों में कुपोषण की समस्या सीधे सीधे माताओं के पोषण से जुड़ी होती है.

अध्ययन से जुड़े विशेषज्ञों ने बताया कि केंद्र और राज्य सरकार चाहे कुछ भी दावा करें लेकिन प्रदेश में सिर्फ छह प्रतिशत महिलाओं को ही प्रसव पूर्व देखरेख की सुविधा मिल पाती है. इसके अलावा महज़ 13 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं को ही आयरन और फोलिक एसिड सप्लीमेंट मिल पाता है.

बाल मृत्यु दर के मामले में उत्तर प्रदेश देश में सबसे आगे है. यहां प्रति हज़ार बच्चों पर बाल मृत्यु दर 64 है और पांच साल के नीचे के बच्चों की बाल मृत्यु दर प्रति हज़ार बच्चों पर 78 है.

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