आरटीआई रैंकिंग: मोदी सरकार में छठे स्थान पर पहुंचा भारत, मनमोहन सरकार में दूसरे नंबर पर था

भारत से नौ साल बाद साल 2014 में आरटीआई लागू करने वाला अफगानिस्तान सूची में पहले स्थान पर है. अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी संस्था एक्सेस इन्फो यूरोप और सेंटर फॉर लॉ एंड डेमोक्रेसी ने जारी की है रिपोर्ट.

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(फोटो साभार: विकीपीडिया)

भारत से नौ साल बाद साल 2014 में आरटीआई लागू करने वाला अफगानिस्तान सूची में पहले स्थान पर है. अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी संस्था एक्सेस इन्फो यूरोप और सेंटर फॉर लॉ एंड डेमोक्रेसी ने जारी की है रिपोर्ट.

(फोटो साभार: विकिपीडिया)
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मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान सूचना का अधिकार (आरटीआई) रैंकिंग में भारत की स्थिति में काफी गिरावट दर्ज की गई है. देश की रैकिंग नीचे गिरकर अब छठे नंबर पर पहुंच गई है. पिछले साल भारत पांचवें स्थान पर था.

मनमोहन सरकार में आरटीआई रैंकिंग में  भारत दूसरे स्थान पर था.

मानवाधिकारों पर काम करने वाली अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी संस्था एक्सेस इन्फो यूरोप (एआईई) और सेंटर फॉर लॉ एंड डेमोक्रेसी (सीएलडी) ने 28 सितंबर को इंटरनेशनल राइट टू नो (जानने का अधिकार) डे के दिन द्वारा यह रिपोर्ट पेश की गई है. वैश्विक स्तर पर एक सूची तैयार करने में 150 प्वाइंट स्केल का इस्तेमाल किया जाता है.

एनडीटीवी ख़बर के अनुसार, ‘दुनिया के प्रमुख 123 देशों में आरटीआई कानून है और जिन देशों को भारत से ऊपर स्थान मिला है, उनमें से ज्यादातर देशों ने भारत के बाद इस कानून को अपने यहां लागू किया हैं.’

साथ ही संस्था ने आरटीआई एक्ट से जुड़े तीन महत्वपूर्ण सेक्शन, मसलन 25 (2), सेक्शन 19 (1) और सेक्शन 19 (2) पर फोकस कर रिपोर्ट पेश की है.

बता दें भारत में इस कानून को सूचना का अधिकार नाम से जानते हैं वहीं दुनिया के कई देशों में इसे ‘राइट टू नो’ के रूप में जानते हैं.

(स्रोत: www.rti-rating.org)
(स्रोत: www.rti-rating.org)

ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया ने भारत में 12 अक्टूबर 2018 को आरटीआई दिवस के मौके पर जारी रिपोर्ट में भारत की अंतरराष्ट्रीय रैकिंग गिरने का ज़िक्र किया है.

ग्लोबल रैकिंग निकालने के लिए जिन पैमानों को आधार बनाया जाता है उसमें सूचना तक पहुंच, एक्ट का दायर, आवेदन की सहज प्रक्रिया, सूचना के दायरे से संस्थाओं को छूट अपील की प्रक्रिया, विभिन्न प्रकार की मंज़ूरी और संरक्षण कानून का प्रचार-प्रसार शामिल हैं.

वैश्विक स्तर पर ‘राइट टू नो’ के तहत जारी रैकिंग में भारत से कहीं छोटा देश अफगानिस्तान 139 पॉइंट के साथ पहले स्थान पर है. खास बात है कि भारत ने आरटीआई कानून 2005 में बनाया था तो अफगानिस्तान ने नौ साल बाद यानी 2014 में इस पर अमल किया था.

इसके बाद 136 पॉइंट के साथ मैक्सिको दूसरे स्थान पर है. फिर सर्बिया, श्रीलंका और स्लोवेनिया का स्थान है.

ख़ास बात यह है कि मनमोहन सरकार में भारत इस रैंकिंग में दूसरे नंबर पर था, वहीं अब खिसककर स्लोवेनिया, श्रीलंका, सर्बिया, मैक्सिको और अफगानिस्तान से भी पीछे आ गया है.

रिपोर्ट के अनुसार, सेंटर फॉर लॉ एंड डेमोक्रेसी की रिपोर्ट के मुताबिक भारत मनमोहन की यूपीए सरकार में वर्ष 2011 में 130 अंकों के साथ दूसरे नंबर पर था, जबकि 135 अंकों के साथ सर्बिया पहले स्थान पर था. 2012 में भी भारत की रैकिंग उसी स्तर पर बरक़रार रही. मगर 2014 में भारत 128 अंकों के साथ तीसरे स्थान पर खिसक गया. जबकि छोटे से देश स्लोवेनिया ने 129 अंकों के साथ भारत को पीछे छोड़ते हुए दूसरा स्थान हासिल किया.

फिर 2016 में भारत चौथे स्थान पर पहुंच गया, जबकि मैक्सिको नंबर वन पर कायम रहा. अगले साल 2017 में भारत और फिसलकर पांचवें स्थान पर पहुंच गया. वहीं भारत से 11 साल बाद आरटीआई कानून बनाने वाला श्रीलंका 131 अंकों के साथ तीसरे स्थान पर पहुंच गया.