प्रवासी मज़दूरों का पलायन: ‘हमें मां-बहन की गालियां देकर गुजरात ख़ाली करने को कहा गया था’

28 सितंबर को गुजरात के साबरकांठा ज़िले में 14 महीने की मासूम से बलात्कार का आरोप बिहार मूल के एक व्यक्ति पर लगने के बाद राज्य के आठ ज़िलों में उत्तर भारतीय मज़दूरों के ख़िलाफ़ हिंसा शुरू हो गई जिसके बाद वहां से पलायन जारी है.

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Ahmedabad: Migrant workers wait to board a train out of Gujarat in view of protests and violence breaking out over the alleged rape of a 14-month-old girl, in Ahmedabad, Tuesday, Oct 9, 2018. (PTI Photo/Santosh Hirlekar) (PTI10_9_2018_000084B)
Ahmedabad: Migrant workers wait to board a train out of Gujarat in view of protests and violence breaking out over the alleged rape of a 14-month-old girl, in Ahmedabad, Tuesday, Oct 9, 2018. (PTI Photo/Santosh Hirlekar) (PTI10_9_2018_000084B)

28 सितंबर को गुजरात के साबरकांठा ज़िले में 14 महीने की मासूम से बलात्कार का आरोप बिहार मूल के एक व्यक्ति पर लगने के बाद राज्य के आठ ज़िलों में उत्तर भारतीय मज़दूरों के ख़िलाफ़ हिंसा शुरू हो गई जिसके बाद वहां से पलायन जारी है.

Ahmedabad: Migrant workers wait to board a train out of Gujarat in view of protests and violence breaking out over the alleged rape of a 14-month-old girl, in Ahmedabad, Tuesday, Oct 9, 2018. (PTI Photo/Santosh Hirlekar) (PTI10_9_2018_000084B)
बीते दिनों गुजरात में एक मासूम के साथ बलात्कार के बाद उत्तर भारत से गुज़रात गए मज़दूरों के ख़िलाफ़ हिंसा शुरू हो गई. अहमदाबाद स्टेशन पर ट्रेन से वापस अपने राज्य लौटने के लिए लगी लोगों की कतार. (फोटो: पीटीआई)

13 अक्टूबर की सुबह अपने तयशुदा समय से क़रीब चार घंटे की देरी के बाद जब नौ बजे अज़ीमाबाद एक्सप्रेस पटना स्टेशन पहुंची तो ट्रेन से उतरने वाले ज़्यादातर यात्रियों के चेहरे पर घर लौटने की खुशी नहीं थी. आख़िर होती भी कैसे, ये अपनी मर्ज़ी से तो बिहार लौटे नहीं हैं. इन्हें तो मजबूर होकर आना पड़ा है.

यहां से गुजरात जाते वक़्त उनकी आंखों में जो सपने दिखते थे, उनमें अब सूनापन दिखता है. ज़्यादातर लोग कुछ बोलना नहीं चाह रहे थे. उन्हें देखकर लगता है कि उनके मन में कड़वा-सा कुछ घुल रहा है.

अज़ीमाबाद एक्सप्रेस 10 अक्टूबर की रात साढ़े 9 बजे अहमदाबाद से खुली और करीब 36 घंटे के सफर के बाद पटना स्टेशन पहुंची थी. ट्रेन के सभी जनरल डिब्बे खचाखच भरे हुए थे. स्लीपर कोचों में भी बर्थ से ज़्यादा पैसेंजर थे.

28 सितंबर को गुजरात के साबरकांठा ज़िले के हिम्मतनगर में 14 महीने की एक मासूम बच्ची से बलात्कार का आरोप बिहार मूल के रवींद्र साहू पर लगने के बाद गुजरात के आठ ज़िलों में यूपी-बिहार के रहनेवालों के ख़िलाफ़ शुरू हुई हिंसा के बाद उस तरफ से आने वाली सभी ट्रेनों के डिब्बों का सूरत-ए-हाल एक-सा है. ट्रेन भर कर लोग बिहार लौट रहे हैं.

अज़ीमाबाद एक्सप्रेस से बिजेंदर कुमार भागलपुर अपने घर लौटे हैं.
अज़ीमाबाद एक्सप्रेस से बिजेंदर कुमार भागलपुर अपने घर लौटे हैं.

अज़ीमाबाद एक्सप्रेस से ही भागलपुर में अपने गांव अकबरनगर लौटे बिजेंदर कुमार के लिए गुजरात एक भयावह सपना साबित हुआ है.

बिजेंदर कुमार अहमदाबाद के नंदेश्वरी में एक गैस कंपनी में काम करते थे. वहां उनकी तनख्वाह 10 हज़ार रुपये महीना थी.

आठ अक्टूबर की रात उनके व उनके साथियों के क्वार्टरों पर पथराव किया गया और धमकी दी गई कि 10 अक्टूबर तक वे लोग गुजरात ख़ाली कर दें, वरना अंजाम बुरा होगा. पथराव में कुछ लोगों को चोटें भी आईं.

बिजेंदर कुमार ने कहा, ‘हमलावर मां-बहन की गालियां दे रहे थे. 8 अक्टूबर की रात हमला करने के बाद नौ तारीख़ को भी वे लोग हमारे क्वार्टरों के आसपास लाठी-डंडा लिए हुए दिखे थे. हम लोग डरे हुए थे और घरों में दुबके थे. हिंसा के कारण कई दिनों से फैक्टरी भी बंद थी.’

10 अक्टूबर को बिजेंदर व उनके अन्य सहयोगियों ने नंदेश्वरी से बस पकड़ी और वडोदरा आ गए, वहां से ट्रेन पकड़कर शुक्रवार की रात घर पहुंचे.

वहां डर का आलम ये था कि लोगों को बिना पूरी पगार लिए ही लौटना पड़ा है.

बिजेंदर ने कहा, ‘मेरी तनख्वाह 10 हज़ार बनती थी, लेकिन चार हज़ार रुपये ही मालिक ने दिया. वही लेकर लौट आया हूं. छह हज़ार रुपये तो डूब ही गए, लेकिन राहत यही है कि सही सलामत घर लौट गया हूं. मेरे साथ आए दूसरे लोगों को भी पूरी तनख्वाह नहीं मिल पाई है.’

बिजेंदर कुमार का तीन सदस्यों का परिवार है. बिजेंदर पढ़ाई करते थे. पढ़ाई छोड़ कर काम करने गुजरात गए थे.

गुजरात से तो लौट आए, अब क्या करेंगे? इस सवाल पर बिजेंदर ने कहा, ‘यहीं मज़दूरी करूंगा, लेकिन गुजरात में फिर कभी पांव नहीं रखूंगा.’

8 अक्टूबर के हमले के बाद से फैक्टरी मालिक ने भी बहुत मदद की. खाने-पीने का इंतज़ाम फैक्टरी मालिक ने किया था, ताकि उन्हें खाने-पीने के सामान के लिए क्वार्टर से बाहर नहीं निकलना पड़े.

अज़ीमाबाद एक्सप्रेस से ही उतरे नवीन कुमार कहते हैं, ‘सारा माहौल आपको मालूम ही है. दंगा-फसाद हो रहा है. बिहारी लोगों को वहां से भगाना चाह रहा है.’ नवीन कुमार मोकामा के रहने वाले हैं. वह अहमदाबाद के असलाली में एक गारमेंट फैक्टरी में काम करते थे. वहां उन्हें 12 हज़ार रुपये प्रति माह मिलते थे.

उन्होंने कहा, ‘हम लोग जहां रहते थे, उसके पास असलाली मोड़ पर बिहारी लोगों को स्थानीय लोगों ने बहुत मारा-पीटा था. हम लोग फैक्टरी के भीतर स्टाफ क्वार्टर में रहते थे, लेकिन डर तो हमारे भीतर भी फैला हुआ था. इधर, घर के लोग भी बहुत चिंता में थे, इसलिए हम लौट आए.’

अज़ीमाबाद एक्सप्रेस से लौटे मोहम्मद सरफ़राज़ वहां मेट्रो में काम करते थे. 12 हज़ार रुपये महीना मिलते थे. वह कुछ महीने पहले ही गए थे, लेकिन उन्हें भी लौटना पड़ा. उन्होंने कहा, ‘दिल में डर बैठा हुआ था. कभी भी कुछ भी हो जाता, इसलिए लौट आया.’

सरफ़राज़ लखीसराय के रहने वाले हैं. उनके पास थोड़ी ज़मीन है जिस पर खेती कर पांच सदस्यों का पेट पालना संभव नहीं है, इसलिए गुजरात से लौटना उनके लिए बहुत कठिन फैसला था.

उन्होंने कहा, ‘यहां बैठे रहने से तो परिवार नहीं चलने वाला है. बिहार में रोज़गार कहां है? मुझे कहीं न कहीं तो जाना ही होगा. दिल्ली या पंजाब जाने की सोच रहे हैं.’

मोहम्मद सरफ़राज़ के पास थोड़ी सी ज़मीन नहीं है, इसलिए घर पर रह कर परिवार चलाना मुश्किल है. वह गुजरात से लौटे हैं और अब दिल्ली या पंजाब जाना चाहते हैं. (फोटो : उमेश कुमार राय/द वायर)
मोहम्मद सरफ़राज़ के पास थोड़ी सी ज़मीन नहीं है, इसलिए घर पर रह कर परिवार चलाना मुश्किल है. वह गुजरात से लौटे हैं और अब दिल्ली या पंजाब जाना चाहते हैं. (फोटो : उमेश कुमार राय/द वायर)

बिहारियों पर हमले को लेकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहारियों पर हो रहे हमलों को लेकर गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी से फोन पर बात की है.

नीतीश कुमार ने उनसे कहा है, ‘हमारे डीजीपी व मुख्य सचिव गुजरात प्रशासन के संपर्क में हैं. हम वहां के हालात पर पैनी नज़र रखे हुए हैं. मैं वहां रहने वाले बिहारियों से अपील करता हूं कि भले ही जो भी दुर्घटनाएं हुई हों, जो जहां है, वहीं बना रहे.’

बिहार के डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी का कहना है कि गुजरात में बिहारी सुरक्षित हैं और वहां का प्रशासन हिंसा में शामिल लोगों पर कड़ी कार्रवाई कर रहा है.

उन्होंने कांग्रेस नेता अल्पेश ठाकोर पर हिंसा का आरोप लगाते हुए राहुल गांधी की चुप्पी पर सवाल उठाया है.

कांग्रेस नेता अल्पेश ठाकोर ने इन आरोपों को ख़ारिज करते हुए कहा है, ‘मेरे समुदाय पर हिंसा का आरोप लगाने और मेरा नाम इसमें घसीटने की साज़िश है. यह मेरा राजनीतिक करिअर ख़त्म करने का भाजपा का घटिया राजनीतिक खेल है.’

वहीं, इस हिंसा के लिए राजद ने गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी को कटघरे में खड़ा किया है.

इधर, बच्ची से बलात्कार के मामले में गिरफ्तारी के बाद से लेकर अब तक उत्तर भारतीयों पर हमले की दर्जनों वारदातें हो चुकी हैं, जिनमें 500 से ज़्यादा लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है.

हमले की घटनाओं को देखते हुए गुजरात के मुख्य सचिव डॉ. जेएन सिंह ने सभी ज़िला कलेक्टरों व पुलिस अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे प्रवासी मज़दूरों से मिल कर सुरक्षा को लेकर उन्हें आश्वस्त करें व प्रवासी तथा स्थानीय लोगों के बीच तनाव व हिंसा का माहौल बनाने की कोशिश करने वालों पर कार्रवाई करें.

संवेदनशील इलाकों में पुलिस बलों की तैनाती भी की गई है.

गुजरात में कितने बिहारी रहते हैं, इसका कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है, लेकिन गुजरात में काम करने वाले बिहारी समुदाय के संगठन बिहार विकास परिषद के अनुसार गुजरात में करीब 15 लाख बिहारी रह रहे हैं. इनमें कुछ व्यापारी भी हैं, लेकिन एक बड़ी आबादी वहां की फैक्टरियों में काम करती है.

बिहार विकास परिषद के चेयरमैन केके शर्मा ने फोन पर बताया, ‘हमने अब तक प्रभावित इलाकों का दौरा नहीं किया है, लेकिन मामले को लेकर डीजीपी व मुख्य सचिव से मुलाकात की है. उन्होंने कहा है कि स्थिति नियंत्रण में है.’

गुजरात की सरकार भले ही यह आश्वासन दे रही है कि हालात काबू में हैं, लेकिन इस घटना के बाद प्रवासी उत्तर भारतीयों के ज़ेहन में यह डर स्थाई जगह बना चुका है कि आगे भी ऐसी घटनाएं हो सकती हैं.

नवीन कुमार गुजरात के असलाली में एक गारमेंट फैक्टरी में काम करते थे. हिंसा के बाद डर कर वह बिहार लौट आए हैं. (फोटो: उमेश कुमार राय/द वायर)
नवीन कुमार गुजरात के असलाली में एक गारमेंट फैक्टरी में काम करते थे. हिंसा के बाद डर कर वह बिहार लौट आए हैं. (फोटो: उमेश कुमार राय/द वायर)

गुजरात से लौटने वाले नवीन कुमार कहते हैं, ‘खेती-बाड़ी व दूसरों के खेत में मेहनत-मज़दूरी कर किसी तरह चला लेंगे, लेकिन अब गुजरात नहीं जाएंगे.’

भागलपुर के किशनपुर गांव के निवासी भोली मंडल पिछले चार सालों से गुजरात के भरूच ज़िले के अंक्लेश्वर में कपड़ों के लिए रंग बनाने वाली एक फैक्टरी में काम कर रहे हैं. भरूच में किसी तरह की हिंसा नहीं हुई है, लेकिन डरे हुए वह भी हैं.

उन्होंने फोन पर बताया, ‘दो बेटे-दो बेटियों व परिवार के अन्य सदस्यों का ख़र्च गुजरात की कमाई से चलता है. कल अगर हिंसा की चपेट में हमारा इलाका आ गया तो बिहार ही लौटना पड़ेगा, लेकिन वहां जाकर ईंटा-पत्थर ढोने के सिवा क्या काम मिलेगा?’

पिछले चार सालों में कभी भी वह इतने डरे हुए नहीं थे. उन्होंने कहा, ‘पहले कभी भी ऐसी घटना गुजरात में नहीं हुई थी. लेकिन इस घटना के बाद से मन में बहुत डर समाया हुआ है.’

वह इस पलायन के लिए नीतीश सरकार को ज़िम्मेदार ठहराते हैं. भोली मंडल कहते हैं, ‘इतने सालों में भी नीतीश कुमार ने कुछ नहीं किया. गुजरात में 16,000 फैक्टरियां हैं. अगर इतनी फैक्टरियां बिहार में होतीं, तो मैं बिहार से यहां आता ही क्यों?’

गुजरात में उत्तर भारतीयों पर हिंसा की मुख्य वजह बलात्कार है, लेकिन कुछ हद तक गुजरात के कामगारों में उत्तर भारतीयों के प्रति बढ़ती नाराज़गी का भी असर है. गुजरात की आम जनता को अब लगने लगा है कि उत्तर भारत से आने वाले लोग उनकी नौकरी खा रहे हैं.

गुजरात सरकार को भी इसका बखूबी एहसास है. यही वजह है कि गुजरात सरकार एक कानून लाने जा रही है जिसमें उत्पादन व सेवा क्षेत्रों में 80 प्रतिशत कामगारों की नियुक्ति गुजरात से करनी होगी.

पिछले महीने ही विजय रूपाणी ने इसकी घोषणा की थी. उन्होंने कहा था, ‘गुजरात में ऑपरेशन शुरू करने के इच्छुक उत्पादन व सेवा क्षेत्रों के उद्यमियों को 80 प्रतिशत नियुक्ति गुजरातियों की करनी होगी.’

पटना स्टेशन पर खड़ी अहमदाबाद से पटना तक चलने वाली अजीमाबाद एक्सप्रेस. (फोटो: उमेश कुमार राय/द वायर)
पटना स्टेशन पर खड़ी अहमदाबाद से पटना तक चलने वाली अजीमाबाद एक्सप्रेस. (फोटो: उमेश कुमार राय/द वायर)

बिहार व उत्तर प्रदेश के संदर्भ में देखा जाए तो इन दोनों राज्यों से जो पलायन होता है वह दरअसल अवसादी होता है. यानी कि यहां से लोग गुजरात या अन्य राज्यों में बेहतर अवसर के चलते नहीं बल्कि ज़िंदगी की न्यूनतम ज़रूरतें पूरी करने के लिए नौकरी करने जाते हैं.

मिसाल के तौर पर नवीन कुमार का नाम लिया जा सकता है. उनसे जब हमने पूछा कि वह गुजरात क्यों गए, तो उन्होंने कहा, ‘हमारी तरफ इस साल बाढ़ आई थी, इसलिए सोचा कि कुछ दिन बाहर चले जाएं और कुछ कमा लें.’

दूसरे राज्यों से गए लोगों के पास स्थानीय लोगों की तरह ज़्यादा तनख्वाह मांगने के लिए मोलभाव करने का विकल्प नहीं होता. लिहाज़ा फैक्टरी मालिक पैसा बचाने के लिए कम तनख्वाह पर इन्हें रख लेते हैं.

34 सालों से गुजरात के सूरत में रह रहे केके शर्मा कहते हैं, ‘गुजरातियों के मन में ये बात धीरे-धीरे घर करने लगी है कि बिहारी उनकी नौकरी छीन रहे हैं. अत: एक न एक दिन यह आग भड़केगी ज़रूर. आज भड़के या 10-20 साल बाद.’

उल्लेखनीय है कि 2005 में बिहार में जब नीतीश कुमार की सरकार बनी थी, तो उसके करीब सात साल बाद बिहार के श्रम विभाग ने दावा किया था कि 2008 से 2010 के दरम्यान बिहार से पलायन में 35 से 40 प्रतिशत की गिरावट आई थी. श्रम विभाग ने यह भी कहा था कि पहले 15 से 20 लाख कामगार हर साल बिहार से बाहर चले जाते थे, लेकिन अब उन्हें बिहार में ही रोज़गार मिल रहा है.

लेकिन, अजीमाबाद एक्सप्रेस से उतरने वाले लोगों से बातचीत हुई तो कई लोगों ने बताया कि पिछले 4-5 सालों से वे गुजरात में रहने लगे हैं. इसका मतलब है कि नौकरी के लिए बिहार से पलायन बदस्तूर जारी है.

सामाजिक विज्ञानी डीएम दिवाकर कहते हैं, ‘मनरेगा के तहत रोज़गार में बिहार फिसड्डी है. हाल के वर्षों में खेती की भी हालत ख़राब रही. राज्य में कोई नया उद्योग-धंधा लग नहीं रहा है और नोटबंदी तथा जीएसटी ने अलग मुश्किलें पैदा कर दीं. कुल मिलाकर जो वस्तुस्थितियां दिख रही हैं, उनमें पलायन घटने का कोई कारण नज़र नहीं आ रहा है. बल्कि पलायन बढ़ा ही है.’

डीएम दिवाकर भी मानते हैं कि गुजरात में जारी हिंसा में बहुत अधिक नहीं भी हो तो थोड़ा किरदार पलायन का ज़रूर है.

वह आगे कहते हैं, ‘बिहार सरकार ने इतने वर्षों में भी पलायन रोकने के लिए कोई क़दम नहीं उठाया है. नतीजतन बिहार के लोग काम करने के लिए गुजरात समेत दूसरे राज्यों का रुख़ कर रहे हैं. दूसरी तरफ, काम-धंधे में मशीनी हस्तक्षेप इतना ज़्यादा हो गया है कि रोज़गार के अवसर सिकुड़ते जा रहे हैं.’

डीएम दिवाकर, ‘ऐसे में स्थानीय लोगों में यह भावना तो मज़बूत होगी ही कि बाहर के लोग उनका रोज़गार मार ले जा रहे हैं. अत: इस हिंसा में उस तत्व (रोज़गार) को ख़ारिज नहीं किया जा सकता है. बिहार सरकार को चाहिए कि वह रोज़गार के अवसर पैदा कर पलायन रोके.’

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और पटना में रहते हैं.)