सबरीमाला पहाड़ी से करीब 20 किलोमीटर दूर निलक्कल में बड़ी संख्या में पुलिसकर्मी तैनात. मुख्यमंत्री विजयन ने कहा कि सामाजिक सुधार की सभी पहलों को रूढ़िवादी तत्वों के विरोध का सामना करना पड़ता है. सरकार सबरीमाला के नाम पर कोई हिंसा नहीं होने देगी. श्रद्धालुओं को रोकने वालों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई की जाएगी.
निलक्कल: सबरीमाला मंदिर में रजस्वला लड़कियों और महिलाओं के प्रवेश का विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों को हटाने के लिए बुधवार की सुबह पुलिस द्वारा बल प्रयोग किए जाने के बाद मंदिर जाने के मुख्य रास्ते निलक्कल में माहौल तनावपूर्ण हो गया.
सबरीमाला पहाड़ी से करीब 20 किलोमीटर दूर निलक्कल में बड़ी संख्या में तैनात पुलिसकर्मियों ने महिलाओं के प्रवेश के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे समूह ‘सबरीमाला आचार संरक्षण समिति’ के तंबू आदि भी हटा दिए हैं.
अयप्पा स्वामी मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देने वाले उच्चतम न्यायालय के फैसले के विरोध में प्रदर्शन कर रहे कुछ श्रद्धालु धरना दे रहे हैं और अयप्पा मंत्र का जाप कर रहे हैं.
बुधवार तड़के जब प्रदर्शनकारियों ने मंदिर तक जाने के मुख्य रास्ते पर बसों को रोकने का प्रयास किया तो पुलिस को उनके खिलाफ बल प्रयोग करना पड़ा. पुलिस की कार्रवाई शुरू होते ही वहां बेहद कम संख्या में मौजूद प्रदर्शनकारी भाग निकले.
मासिक पूजा के लिए मंदिर खुलने से कुछ घंटे पुलिस ने कहा कि वह किसी को भी लोगों के आने-जाने में अवरोध पैदा नहीं करने देगी. निलक्कल का पूर्ण नियंत्रण अपने हाथों में लेते हुए पुलिस ने अयप्पा मंदिर जाने वाले श्रद्धालुओं के रास्ते में अवरोध पैदा करने वालों को चेतावनी दी.
प्रदर्शनकारियों में कुछ ने पम्बा जाने वाले वाहनों को जांचा और उनमें सवार 10 से 50 वर्ष आयु वर्ग की महिलाओं को मंदिर जाने से रोक दिया, इस पर पुलिस ने कड़ी कार्रवाई की.
सबरीमाला आचार संरक्षण समिति के कार्यकर्ताओं ने सोमवार की रात तमिलनाडु से पम्बा जा रहे 45 और 40 वर्ष आयु के दंपति को केएसआरटीसी के बस से कथित रूप से उतरने को बाध्य कर दिया था.
हालांकि, दंपति का कहना है कि वह सिर्फ पम्बा तक जाएंगे और सबरीमाला पहाड़ी पर नहीं चढ़ेंगे. बाद में पुलिस उन्हें सुरक्षित ले गई.
वहीं मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने मंदिर में प्रवेश से श्रद्धालुओं को रोकने की कोशिश करने वालों को कड़ी चेतावनी दी है.
उन्होंने यहां संवाददाताओं से कहा, ‘हम सभी की सुरक्षा सुनिश्चित करेंगे. किसी को कानून हाथ में लेने की इजाजत नहीं दी जाएगी. मेरी सरकार सबरीमाला के नाम पर कोई हिंसा नहीं होने देगी. श्रद्धालुओं को सबरीमाला जाने से रोकने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी.’
उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पुनर्विचार की मांग न करने के सरकार के फैसले पर पुनर्विचार किये जाने की संभावना खारिज करते हुए कहा कि हम अदालत के कहे का पालन करेंगे. उन्होंने यह भी साफ किया कि सरकार द्वारा लैंगिक आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा.
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार मंगलवार शाम को मुख्यमंत्री ने कहा कि श्रद्धालुओं को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ खड़ा करके राज्य की सेकुलर विचारधारा को कमजोर करने के लिए जानबूझकर प्रयास किए जा रहे हैं. एक घंटे के अपने वक्तव्य में विजयन ने राज्य में हुए नवजागरण आंदोलन के लंबे इतिहास की बात की.
उन्होंने कहा, ‘सामाजिक सुधार की सभी पहलों को उस समय के रूढ़िवादी तत्वों के विरोध का सामना करना पड़ा था. जब महिलाओं ने छाती ढकने के अपने अधिकार के लिए लड़ाई लड़ी, उन्हें विरोध का सामना करना पड़ा. श्री नारायण गुरा और अय्यनकली जैसे समाज सुधारकों ने यह सिखाया है कि कुछ परम्पराएं उल्लंघन किए जाने के लिए ही होती हैं. जब वाम दलों और किसान संगठनों ने समाज सुधार की इस भावना को आगे बढ़ाया तब राज्य में कई बदलाव आये.’
भाजपा की अगुवाई में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में हो रहे में प्रदर्शन पर विजयन ने कहा कि संघ परिवार देश के कई पूजा स्थलों पर अधिकार की मांग कर रहा है, अगर हर बात आस्था पर आधारित होगी तो कल क्या होगा? ऐसी ताकतों का असली उद्देश्य राज्य की सेकुलर मानसिकता को नष्ट करना है.
बुधवार को भगवान अयप्पा स्वामी मंदिर जाने के मुख्य रास्ते निलक्कल पर महिला पुलिसकर्मियों सहित करीब 500 पुलिसकर्मी तैनात हैं. इस बीच पम्बा में श्रद्धालुओं के एक अन्य समूह ने गांधीवादी तरीके से अपना विरोध जताया.
उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद अयप्पा स्वामी मंदिर के दरवाजे पहली बार बुधवार की शाम खुलने वाले हैं. पांच दिन की मासिक पूजा के बाद यह 22 अक्टूबर को फिर बंद हो जाएंगे.
विरोध कर रहे लोगों ने दी सामूहिक आत्महत्या की धमकी
तिरुवनंतपुरम: सबरीमाला मंदिर में सभी आयुवर्ग की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देने के शीर्ष अदालत के आदेश के बाद पहली बार मंदिर के द्वार खुलने जा रहे हैं, जहां महिलाओं को प्रवेश देने के विरोध में लोगों ने ‘सामूहिक आत्महत्या’ और अवरोध पैदा करने तक की धमकी दी है.
हालात को सुलझाने के लिए त्रावणकोर देवाश्म बोर्ड (टीडीबी) के अंतिम प्रयास बेकार रहे, जहां पंडालम शाही परिवार और अन्य पक्षकार इस मामले में बुलाई गयी बैठक को छोड़कर चले गये.
शीर्ष अदालत के आदेश के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल करने के मुद्दे पर बातचीत करने में बोर्ड की अनिच्छा से ये लोग निराश दिखे.
इस बीच भगवान अयप्पा की सैकड़ों महिला श्रद्धालुओं ने मंदिर की ओर जाने वाले मार्ग पर जाकर उन महिलाओं को मंदिर से करीब 20 किलोमीटर पहले रोकने का प्रयास किया जिनकी आयु को देखकर उन्हें लगा कि उनकी आयु मासिर्क धर्म वाली हो सकती है.
‘स्वामीया शरणम् अयप्पा’ के नारों के साथ भगवान अयप्पा भक्तों ने इस आयु वर्ग की लड़कियों और महिलाओं की बसें और निजी वाहन रोके और उन्हें यात्रा न करने के लिए मजबूर किया.
निलक्कल में भारी तनाव के बीच एक महिला प्रदर्शनकारी ने कहा, ‘मासिक पूजा के लिए मंदिर जब बुधवारशाम को खुलेगा, तो 10 से 50 साल की आयु की किसी महिला को निलक्कल से आगे जाने और मंदिर में पूजा-अर्चना की इजाजत नहीं दी जाएगी.’
समाचार चैनलों की फुटेज में देखा गया कि काले कपड़े पहने कुछ युवतियों और कुछ कॉलेज विद्यार्थियों को एक बस से उतरने के लिए कहा जा रहा है.
मंदिर का प्रबंधन देखने वाले टीडीबी की मंगलवार को हुई बैठक के बाद पंडालम शाही परिवार के सदस्य शशिकुमार वर्मा ने कहा, ‘हम चाहते थे कि आज पुनर्विचार याचिका दाखिल करने पर फैसला हो, लेकिन बोर्ड ने कहा कि 19 अक्टूबर को टीडीबी की अगली बैठक में ही इस पर बातचीत हो सकती है. हम सभी चाहते हैं कि सबरीमाला को युद्ध क्षेत्र नहीं बनाया जाए.’
हालांकि बोर्ड के अध्यक्ष ए पद्मकुमार ने बैठक के असफल होने के तर्कों को खारिज कर दिया. उन्होंने कहा, ‘वे चाहते थे कि पुनर्विचार याचिका तत्काल दाखिल कर दी जाए. लेकिन उच्चतम न्यायालय 22 अक्टूबर तक बंद है. जब उच्चतम न्यायालय ने फैसला दिया है तो बोर्ड क्या कर सकता है? लेकिन बोर्ड इस मुद्दे के समाधान के लिए उनसे बात करता रहेगा.’
आदिवासियों का आरोप, सरकार हमारे सदियों पुराने रीति-रिवाज खत्म कर रही है
निलक्कल: सबरीमाला की आसपास की पहाड़ियों पर रहने वाले आदिवासियों ने आरोप लगाया है कि सरकार और टीडीबी सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 साल आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देकर सदियों पुरानी प्रथा को खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं.
उन्होंने दावा किया कि रजस्वला लड़कियों और महिलाओं पर लगी बंदिशें केरल के जंगलों में रहने वाले आदिवासी समाजों के रीति-रिवाज का हिस्सा हैं.
आदिवासियों ने यह भी कहा कि सबरीमाला मंदिर और इससे जुड़ी जगहों पर जनजातीय समुदायों के कई अधिकार सरकारी अधिकारियों और मंदिर का प्रबंधन करने वाले टीडीबी के अधिकारियों द्वारा छीने जा रहे हैं.
अट्टाथोडू इलाके में आदिवासियों के मुखिया वी के नारायणन (70) ने कहा, ‘देवाश्म बोर्ड ने सबरीमाला के आसपास की विभिन्न पहाड़ियों में स्थित आदिवासी देवस्थानों पर भी नियंत्रण कर लिया है.’
उन्होंने आरोप लगाया कि अधिकारी मंदिर से जुड़े सदियों पुराने जनजातीय रीति-रिवाजों को खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं.
नारायणन ने कहा, ‘हम आदिवासी हैं, जिन संस्थाओं पर हमारे रीति-रिवाजों के संरक्षण की जिम्मेदारी है, वही उन्हें खत्म कर रहे हैं.’
यहां आदिवासियों के मुखिया को ‘मूप्पेन’ कहा जाता है. उन्होंने कहा कि रजस्वला लड़कियों और महिलाओं को अशुद्ध मानना एक द्रविड़िय रिवाज है और आदिवासी लोगों द्वारा प्रकृति की पूजा से जुड़ा है.
सबरीमाला आचार संरक्षण समिति के प्रदर्शन में हिस्सा ले रहे नारायणन ने कहा, ‘भगवान अयप्पा हमारे भगवान हैं. किसी खास आयु वर्ग की महिलाओं के मंदिर में प्रवेश पर लगा प्रतिबंध हमारे रीति-रिवाज का हिस्सा है. घने जंगलों में स्थित भगवान अयप्पा के मंदिर में पूजा करने के लिए रीति-रिवाजों का पालन करना बहुत जरूरी है. इसका उल्लंघन नहीं होना चाहिए. अशुद्ध महिलाओं को सबरीमाला मंदिर में प्रवेश की इजाजत नहीं देनी चाहिए.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)