क्या 10 साल और 42 करोड़ से यमुना को हुए नुकसान की भरपाई हो पाएगी?

राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण की विशेषज्ञ समिति ने आर्ट आॅफ़ लिविंग के कार्यक्रम से यमुना को हुए नुकसान की रिपोर्ट सौंप दी है.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सत्कार करते श्री श्री रविशंकर (फोटो: पीटीआई)

राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण की विशेषज्ञ समिति ने आर्ट आॅफ लिविंग के कार्यक्रम से यमुना को हुए नुकसान की रिपोर्ट सौंप दी है.

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पिछले साल यमुना किनारे हुए श्रीश्री रविशंकर के कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी पहुंचे थे. (फाइल फोटो: पीटीआई)

पिछले वर्ष 11 से 13 मार्च 2016 के बीच दिल्ली के यमुना तट पर श्री श्री रविशंकर के आर्ट ऑफ़ लिविंग (एओएल) द्वारा आयोजित विश्व सांस्कृतिक महोत्सव के कारण यमुना तट पर काफ़ी नुकसान हुआ था. विशेषज्ञ समिति ने नुकसान का आकलन करते हुए बताया है कि नुकसान की भरपाई के लिए 10 साल का वक़्त लगेगा और जिसमें कुल 42.02 करोड़ रुपये का ख़र्च आएगा. विशेषज्ञों द्वारा 31 पन्नों की रिपोर्ट को राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) को सौंपा गया है.

लेकिन सवाल उठता है कि क्या 10 साल का समय और 42.02 करोड़ रुपये ख़र्च करके भी यमुना नदी और जलीय पर्यावरण को हुए नुकसान की भरपाई हो पाएगी?

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भौतिक नुकसान के ख़र्च की रिपोर्ट. (स्क्रीनशॉट: एनजीटी रिपोर्ट)

रिपोर्ट के अनुसार एओएल के कार्यक्रम के नुकसानों को दो भागों में बाटा गया है.जिसमें भौतिक और जैविक नुकसान शामिल हैं. रिपोर्ट में 10 साल में इन दोनों की भरपाई के लिए लगने वाले ख़र्च का उल्लेख है. विशेषज्ञों की रिपोर्ट के अनुसार भौतिक नुकसान की भरपाई के लिए 28,69,14,240 रुपये की लागत लगनी है, जबकि जैविक नुकसान पर 13,28,10,102 रुपये की लागत 10 वर्षों में लगनी है. रिपोर्ट में यह भी उल्लेख है कि भौतिक नुकसान की भरपाई 2 वर्षों में हो सकती है पर जैविक नुकसान की भरपाई के लिए 10 वर्ष लगने हैं.

जैविक नुकसान की भरपाई की रिपोर्ट (स्क्रीन शॉट: एनजीटी रिपोर्ट)
जैविक नुकसान की भरपाई की रिपोर्ट (स्क्रीन शॉट: एनजीटी रिपोर्ट)

विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले साल मार्च में हुए इस महोत्सव की वजह से यमुना के डूबक्षेत्र में पनपने वाली जैव विविधता वहां से हमेशा के लिए ग़ायब हो गई है. रिपोर्ट में दावा किया गया है कि सबसे ज़्यादा नुकसान उस जगह को पहुंचा है जहां पर रविशंकर ने अपना विशालकाय स्टेज लगाया था.

एनजीटी ने पिछले वर्ष जल संसाधन मंत्रालय के सचिव शशि शेखर की अध्यक्षता में 7 सदस्यीय समिति का गठन किया, जिसमें वरिष्ठ वैज्ञानिक के साथ-साथ पर्यावरण से जुड़े विशेषज्ञ शामिल थे. रिपोर्ट में कार्यक्रम से पहले और बाद के गुणात्मक परिवर्तनों का विश्लेषण भी शामिल है.

विशेषज्ञ समिति ने एनजीटी को बताया है कि यमुना नदी के बाढ़ क्षेत्र को हुए नुकसान की भरपाई के लिए बड़े पैमाने पर काम कराना होगा. समिति ने कहा, ऐसा अनुमान है कि यमुना नदी के पश्चिमी भाग (दाएं तट) के बाढ़ क्षेत्र के क़रीब 120 हेक्टेयर (क़रीब 300 एकड़) और नदी के पूर्वी भाग (बाएं तट) के क़रीब 50 हेक्टेयर (120 एकड़) बाढ़ क्षेत्र प्रभावित हुए हैं.

समिति ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा कि अब यमुना किनारे की इस ज़मीन को उसी पुराने स्वरूप में वापस लाने की ज़रूरत है, जैसी वह कार्यक्रम से कुछ महीनों पहले तक थी. एनजीटी ने 10 अगस्त 2016 को रिपोर्ट पर आदेश दिया था कि समिति इस मामले पर जल्द से जल्द एक रिपोर्ट बनाए जिसमें अनुमानित ख़र्च का भी उल्लेख करे.

सामाजिक कार्यकर्ता मनोज मिश्रा ने कार्यक्रम के विरोध में याचिका दायर की थी. शिकायत में बताया था कि किस तरह एओएल के आयोजन के नाते यमुना तट का प्राकृतिक रूप से भारी नुकसान हुआ है. जो पर्यावरण सुरक्षा के लिहाज से घातक है. याचिका को संज्ञान में लेते हुए एनजीटी ने प्रोफेसर एके गोसैन की नियुक्ति कर उन्हें शुरुआती जांच की ज़िम्मेदारी सौंपी, जिसमें उन्हें आयोजन स्थल का दौरा कर एक रिपोर्ट बनाने को कहा गया था.

एनजीटी ने 19 फ़रवरी 2016 को प्रधान समिति के अध्यक्ष और तीन विशेषज्ञ प्राचार्य समिति (प्रोफेसर एके गोसैन, प्रोफेसर ब्रिजगोपाल और प्रोफेसर सीआर बाबू) को स्थल पर जाने का निर्देश दिया कि उन्हें स्थल पर जाना चाहिए और यदि कोई नुकसान हो रहा है तो उसपर रिपोर्ट भी सौंपनी चाहिए.

20 फ़रवरी 2016 को समिति के अध्यक्ष और तीन विशेषज्ञ प्राचार्य समिति ने स्थल का दौरा किया और अपनी रिपोर्ट में सिफ़ारिश की, कि एओएल के आयोजन से होने वाले नुकसान की भरपाई को आयोजक से वसूला जाना चाहिए, साथ ही सुझाव दिया गया है कि अकेले पश्चिम की ओर स्थित बाढ़ के मैदान की बहाली की कुल लागत 100-120 करोड़ रुपये होगी.

रविशंकर द्वारा आयोजित कार्यक्रम पर काफ़ी बवाल भी हुआ था पर आस्था का विषय बता कर कार्यक्रम को बाद में अनुमति दे दी गई थी. विरोध के चलते एनजीटी ने एओएल से कार्यक्रम के पहले ही 5 करोड़ रुपये बतौर अंतरिम ज़ुर्माना जमा करवाने का आदेश दे दिया था. हालांकि शुरुआत में रविशंकर सहमत नहीं थे पर बाद में बड़ी मशक्क़त के बाद 25 लाख डीडीए के पास जमा करवा दिए, बाद में एनजीटी की सख़्ती के बाद बाक़ी 4.75 करोड़ भी जून 2016 में डीडीए के पास जमा करवाए थे.

श्री श्री रविशंकर ने एओएल की तरफ़ से औपचारिक बयान अपने ट्विटर पर लिखा है, जिसमें उन्होंने इस पूरी रिपोर्ट को अवैज्ञानिक और पक्षपात पूर्ण बताया है. उन्होंने यह भी कहा है कि इस रिपोर्ट का तथ्यों से कोई सरोकार नहीं और इस रिपोर्ट को वो नहीं मानते.

उन्होंने यह भी कहा है कि जो नुकसान 120 करोड़ का था वो अब अचानक 13 करोड़ पर आ गया है, पहले रिपोर्ट में गीली ज़मीन का उल्लेख था और अब बाढ़ की ज़मीन का उल्लेख है. जो साबित करता है कि यह रिपोर्ट पूरी तरह ग़लत है. एओएल अपने औपचारिक बयान में आगे कहता है कि समिति के अध्यक्ष शशि शेखर और ब्रिज गोपाल ने रिपोर्ट पर दस्तख़त नहीं किया और बिना अध्यक्ष के दस्तख़त के कोई भी रिपोर्ट कैसे सौंपी जा सकती है.

अपने बयान में एओएल आगे कहता है कि शशि शेखर और बृजगोपाल दोनों ही इस रिपोर्ट को अवैज्ञानिक मानते हैं, इसलिए उन्होंने दस्तख़त नहीं किया. उन्होंने आरोप लगाया है कि मीडिया में इस रिपोर्ट को लीक किया गया है. उनका कहना है कि एओएल पर्यावरण के लिए काम करने वाली संस्था है और उनकी क़ानूनी टीम रिपोर्ट का अध्ययन कर जल्द अपना जवाब दायर करेगी.

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पिछले साल यमुना किनारे हुए आर्ट आॅफ लिविंग के कार्यक्रम में अरविंद केजरीवाल, सुमित्रा महाजन, अमित शाह, अरुण जेटली और वेंकैया नायडू (फाइल फोटो: पीटीआई)

बता दें यमुना तट पर श्री श्री रविशंकर द्वारा आयोजित कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह, लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन और अरुण जेटली भी बतौर अतिथि शामिल हुए थे. मामले की अगली सुनवाई 20 अप्रैल 2017 को होनी है.