केंद्र सरकार ने क्यूरेटिव याचिका दाखिल कर सुप्रीम कोर्ट से 1528 कथित फर्जी मुठभेड़ों की जांच के आदेश पर फिर से विचार करने का अनुरोध किया है.
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर अदालत से उस फैसले पर विचार करने का आग्रह किया है जिसमें उसने मणिपुर में 1528 कथित फर्जी मुठभेड़ों की जांच के आदेश दिये थे. सुप्रीम कोर्ट ने 2016 में दिए फैसले में फर्जी मुठभेड़ों की जांच के अलावा कहा था कि सेना जरूरत से ज्यादा बल का इस्तेमाल नहीं कर सकती. आत्मरक्षा के लिए न्यूनतम बल का इस्तेमाल होना चाहिए.
इस मसले पर केंद्र की पुनर्विचार याचिका खारिज हो चुकी है और अब सरकार ने क्यूरेटिव याचिका दाखिल की है. सरकार का कहना है कि शीर्ष अदालत के इस आदेश से सेना की आतंकवाद से निपटने की योग्यता प्रभावित हो रही है.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर के नेतृत्व वाली पीठ से क्यूरेटिव याचिका पर खुली अदालत में जल्द सुनवाई किये जाने की मांग की. उन्होंने कहा कि फैसले का असर आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पावर एक्ट और गैर कानूनी गतिविधि रोक अधिनियम (यूएपीए) के प्रावधानों में सेना को मिले संरक्षण पर भी पड़ रहा है. रोहतगी ने अदालत में इसे राष्ट्रीय सुरक्षा का मसला बताया.
सरकार ने अपनी क्यूरेटिव याचिका में कहा है कि कोर्ट ने आदेश देते समय सेना द्वारा आतंकवाद और उग्रवाद के खिलाफ चलाए जाने वाले अभियानों पर विचार नहीं किया. आदेश का सीधा प्रभाव सेना के उग्रवाद के खिलाफ चलाए जा रहे अभियानों पर पड़ रहा है.
सरकार का कहना है कि सैन्य अभियान के दौरान की गई कार्रवाई की न्यायिक समीक्षा नहीं हो सकती और पिछले दो तीन दशकों में जो कार्रवाइयां हुई हैं उस बारे में अब एक्शन लेने से सेना का मनोबल टूटेगा. यहां तक कि इसका सर्विंग और सेवानिवृत हो चुके सैन्य अधिकारियों पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा. जिन्होंने सारा जीवन देश को सुरक्षित और अखंड बनाए रखने में लगा दिया.