सीबीआई के दो वरिष्ठतम अधिकारियों को केंद्र सरकार की ओर से छुट्टी पर भेजे जाने और उसके बाद के घटनाक्रमों पर एजेंसी के पूर्व संयुक्त निदेशक के. माधवन से बातचीत.
नई दिल्ली: देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) के दो शीर्ष अधिकारियों- आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना के बीच घमासान, केंद्र सरकार द्वारा दोनों अधिकारियों को छुट्टी पर भेजा जाना और उच्चतम न्यायालय के निर्देश का मुद्दा इन दिनों सुर्खियों में है.
सीबीआई के वर्तमान घटनाक्रमों पर एजेंसी के पूर्व संयुक्त निदेशक के. माधवन से बातचीत.
सीबीआई में जारी वर्तमान घटनाक्रमों पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है?
सीबीआई में जो कुछ भी हो रहा है, उसमें मुझे लगता है कि संबंधित अधिकारी निजी विषयों एवं व्यक्तिगत बातों के आधार पर बोल रहे हैं और चीज़ों को आगे बढ़ा रहे हैं. इन बातों का दफ़्तर के काम से कोई लेना-देना नहीं है. बाकी बातें अदालत में हैं, और इस पर कुछ कहना ठीक नहीं है.
क्या अधिकारियों के टकराव एवं सरकार के हस्तक्षेप से सीबीआई का कामकाज प्रभावित हो रहा है?
वर्तमान घटनाक्रम में सरकार के हस्तक्षेप के बारे में मुझे कुछ नहीं कहना है, लेकिन जहां तक एजेंसी में निदेशक एवं वरिष्ठ अधिकारियों का सवाल है, ऐसा प्रतीत हो रहा है कि अधिकारियों को सीबीआई जैसी एजेंसी में काम करने का कोई विशेष अनुभव नहीं होता है. सीबीआई में दो-तीन साल के लिए आते हैं और उसके बाद चले जाते हैं. अनुभव की कमी के कारण काम पर असर तो पड़ता है.
केंद्रीय जांच एजेंसी में निदेशक एवं वरिष्ठ पदों पर नियुक्ति के लिए आपका क्या सुझाव है?
मेरा मानना है कि सीबीआई में जो भी निदेशक बने, उसे 5 से 10 वर्ष का इस एजेंसी में काम करने का अनुभव होना चाहिए. तभी वे चीज़ों को उचित तरीके से देख सकेंगे और आगे बढ़ा पाएंगे.
क्या आपको लगता है कि सीबीआई के कामकाज में किसी तरह का सरकारी हस्तक्षेप है और क्या सीबीआई पर काम का बोझ अधिक है?
पहले तो कोई ऐसी समस्या नहीं थी, मेरा अपना ऐसा कोई अनुभव नहीं है. अब ऐसी जो ख़बरें आ रही हैं, उस बारे में मैं कुछ नहीं कह सकता. जहां तक सीबीआई पर काम के बोझ का सवाल है, पिछले दशकों में काम बढ़ा है. जितनी मांग है, उतने लोग नहीं हैं. एजेंसी में जब लोग कम होंगे तब काम पर असर पड़ेगा ही.
क्या सीबीआई में सुधार एवं एजेंसी को अधिक स्वायत्तता की ज़रूरत है?
समय के साथ बढ़ती चुनौतियों को देखते हुए ढांचागत सुधार तो सभी संस्थाओं में होने चाहिए और सीबीआई में भी ऐसा होना चाहिए. लेकिन केंद्रीय जांच एजेंसी को सरकार के तहत ही काम करने की ज़रूरत है.