हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के अध्यक्ष ने कहा कि जैसा कि राफेल सौदे में सरकार सीधे शामिल थी इसलिए हम विमान की कीमत और नीतियों पर टिप्पणी नहीं कर सकते.
बेंगलुरु: राफेल सौदे को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच आरोप प्रत्यारोप के दौर में हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) की ओर से कहा गया है कि उन्हें नहीं पता कि पिछले राफेल सौदा रद्द हो गया है.
एचएएल की ओर से कहा गया है कि उन्हें नहीं पता था कि केंद्र की मोदी सरकार द्वारा पिछला राफेल सौदा रद्द किया जा चुका है और फ्रांसीसी कंपनी दासो एविएशन के साथ नए सिरे से सौदा तय किया गया है.
बेंगलुरु में समाचार एजेंसी आईएएनएस से बातचीत में एचएएल के चेयरमैन आर. माधवन ने कहा है, ‘हमें पिछले सौदे को रद्द किए जाने की जानकारी नहीं थी. हम राफेल पर टिप्पणी नहीं करना चाहते, क्योंकि अब हम इस सौदे का हिस्सा नहीं हैं.’
राफेल एयरक्राफ्ट निर्माण का हवाला देते हुए माधवन ने कहा, ‘हम अब उस कारोबार में शामिल नहीं हैं. राफेल उन परियोजनाओं में से एक थी जिसमें हम शामिल थे और यह हमारी एकमात्र परियोजना नहीं थी.’
उन्होंने कहा कि जैसा कि राफेल सौदे में सरकार सीधे शामिल थी इसलिए एचएएल इसकी कीमत और नीतियों को लेकर कोई टिप्पणी नहीं कर सकता है.
मालूम हो कि राफेल सौदे में कथित घोटाले को लेकर विपक्षी दलों का आरोप हैं कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार की अगुवाई में दोबारा हुए सौदे में हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड को नज़रअंदाज़ किया गया और अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस डिफेंस का फायदा पहुंचाया गया.
समाचार एजेंसी आईएएनएस के मुताबिक कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने फ्रांस की कंपनी दासो एविएशन के साथ 125 राफेल विमानों का सौदा किया था. ये विमान भारतीय वायु सेना के लिए ख़रीदे जाने थे.
इनमें से 108 विमानों का निर्माण भारत में हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड की ओर से किया जाना था 18 विमानों का निर्माण फ्रांस में कर उसे भारत लाने की योजना थी. हालांकि इस सौदा को बीच में ही रद्द कर दिया गया.
इसके बाद नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार ने वर्ष 2015 में फ्रांस की सरकार के साथ दूसरा सौदा किया, जिसमें 125 के बजाय सिर्फ़ 36 राफेल विमानों की ख़रीद की गई इसकी अनुमानित कीमत 54 अरब डॉलर है. इस सौदे में हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड को शामिल नहीं किया गया.
आरोप यह भी है कि यूपीए सरकार के समय हुए सौदे में विमानों की लागत कम थी, जबकि मोदी सरकार की ओर से उन्हीं विमानों के लिए ज़्यादा कीमत चुकाई जा रही है.