प्रशांत भूषण ने कहा कि राफेल करार में 20,000 करोड़ रुपये का घोटाला हुआ है और राष्ट्रीय सुरक्षा से भी समझौता किया गया है. इससे पहले उन्होंने दावा किया था कि राफेल सौदा इतना बड़ा घोटाला है जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते हैं.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने शनिवार को कहा कि राफेल लड़ाकू विमान करार के मामले में वित्तीय भ्रष्टाचार और राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता दोनों पहलू हैं, जबकि बोफोर्स कांड में ऐसा नहीं था.
भूषण ने दिल्ली में एक सम्मेलन में कहा, ‘राफेल करार में न केवल भ्रष्टाचार हुआ, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता भी हुआ. बोफोर्स कांड 64 करोड़ रुपये के कमीशन का मामला था, लेकिन उसमें राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौते का पहलू नहीं था.’
उन्होंने कहा, ‘राफेल करार में 20,000 करोड़ रुपये का घोटाला हुआ है और राष्ट्रीय सुरक्षा से भी समझौता किया गया है.’ उनसे पूछा गया था कि क्या राफेल मुद्दे की तुलना बोफोर्स कांड से की जा सकती है.
इससे पहले प्रशांत भूषण ने दावा किया था कि राफेल लड़ाकू विमान सौदा इतना बड़ा घोटाला है जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते हैं.
उन्होंने आरोप लगाया था कि ऑफसेट करार के जरिए अनिल अम्बानी के रिलायंस समूह को दलाली (कमीशन) के रूप में 21,000 करोड़ रुपये मिले. उन्होंने इस सौदे से जुड़ी कथित दलाली की 1980 के दशक के बोफोर्स तोप सौदे में दी गई दलाली से तुलना की.
अंबानी ने इससे पहले आरोप से इनकार किया था. भूषण ने आरोप लगाया कि भाजपा नेतृत्व वाली सरकार ने केवल सौदे में अनिल अंबानी की कंपनी को जगह देने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता किया, भारतीय वायु सेना को बेबस छोड़ दिया.
उन्होंने कहा, ‘राफेल सौदा इतना बड़ा घोटाला है जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है. बोफोर्स 64 करोड़ रुपये का घोटाला था जिसमें चार प्रतिशत कमीशन दिया गया था. इस घोटाले में कमीशन कम से कम 30 प्रतिशत है. अनिल अम्बानी को दिए गए 21,000 करोड़ रुपये केवल कमीशन हैं, कुछ और नहीं.’
वहीं बीते 31 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को आदेश दिया कि वे 10 दिन के भीतर राफेल सौदे की कीमत और रणनीतिक जानकारी साझा करे. हालांकि जब अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कीमत बताने पर आपत्ति जताई तो कोर्ट ने कहा कि अगर केंद्र राफेल की कीमत नहीं बता सकती है तो वो हलफनामा दायर कर कहे कि लड़ाकू विमान की कीमत विशिष्ट सूचना है और इसे साझा नहीं किया जा सकता है.
मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस केएम जोसेफ की पीठ ने केंद्र से कहा कि जो सूचनाएं सार्वजनिक की जा सकती हैं उन्हें वह याचिकाकर्ताओं के साथ साझा करे. कोर्ट ने ये भी कहा कि अगर कोई सूचना गोपनीय है तो उसे सीलबंद लिफाफे में न्यायालय को दिया जाए.
सुप्रीम कोर्ट राफेल विवाद को लेकर पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिंहा, अरुण शौरी और वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण की याचिका समते कई अन्य जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है. इस मामले में अगली सुनवाई 14 नवंबर को होगी.
मालूम हो कि पिछले हफ्ते राफेल सौदे ने उस वक़्त तूल पकड़ लिया जब फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने दावा करते हुए कहा था कि राफेल लड़ाकू जेट निर्माता कंपनी डास्सो ने आॅफसेट भागीदार के रूप में अनिल अंबानी की रिलायंस डिफेंस को इसलिए चुना क्योंकि भारत सरकार ऐसा चाहती थी.
हालांकि, बाद में फ्रांस की वर्तमान सरकार और डास्सो एविएशन ने ओलांद के बयान को गलत ठहराया है. फ्रांस की सरकार ने कहा कि फ्रांसीसी कंपनियों को भारतीय कंपनियों के साथ साझेदारी करने की खुली छूट है.
उधर, केंद्र की मोदी सरकार ने भी इस आरोप का झूठा क़रार दिया था. वित्त मंत्री अरुण जेटली ने राफेल लड़ाकू विमान सौदा रद्द करने से इनकार करते हुए कहा है कि फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद इस सौदे पर विरोधाभासी बयान दे रहे हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 10 अप्रैल 2015 को पेरिस में तत्कालीन फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के साथ बातचीत के बाद 36 राफेल विमानों की ख़रीद का ऐलान किया था. करार पर अंतिम रूप से 23 सितंबर 2016 को मुहर लगी थी.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)