रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर राजन ने कहा कि सरकार अगर आरबीआई पर लचीला रुख़ अपनाने का दबाव डाल रही हो तो केंद्रीय बैंक के पास ‘ना’ कहने की आज़ादी है.
नई दिल्ली: भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) और सरकार में बढ़ते टकराव के बीच इस केंद्रीय बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा है कि केंद्रीय बैंक किसी सरकार के लिए कार की सीट बेल्ट की तरह होता है जिसके बिना नुकसान हो सकता है.
संस्थान के रूप में आरबीआई की स्वायत्तता का सम्मान किए जाने की आवश्यकता पर बल देते हुए पूर्व गवर्नर राजन ने कहा कि सरकार अगर आरबीआई पर लचीला रुख़ अपनाने का दबाव डाल रही हो तो केंद्रीय बैंक के पास ‘ना’ कहने की आज़ादी है.
आरबीआई निदेशक मंडल की 19 नवंबर को होने वाली बैठक के बारे में उन्होंने कहा कि बोर्ड का लक्ष्य संस्था की रक्षा करना होना चाहिए, न कि दूसरों के हितों की सुरक्षा.’
राजन ने एक समाचार चैनल से बातचीत में कहा, ‘आरबीआई सीट बेल्ट की तरह है. सरकार चालक है, चालक के रूप में हो सकता है कि वह सीट बेल्ट न पहने. पर, हां यदि आप आप अपनी सीट बेल्ट नहीं पहनते हैं और दुर्घटना हो जाती है तो वह दुर्घटना अधिक गंभीर हो सकती है.’
अतीत में आरबीआई और सरकार के बीच रिश्ता कुछ इसी प्रकार का रहा है- सरकार वृद्धि तेज़ करने की दिशा में काम करना चाहती है और वह आरबीआई द्वारा तय सीमा के तहत जो कुछ करना चाहती है करती है. आरबीआई ये सीमाएं वित्तीय स्थिरता को ध्यान में रखकर तय करता है.
उन्होंने कहा, ‘इसलिए सरकार आरबीआई पर अधिक उदार रुख़ अपनाने के लिए ज़ोर देती है.’
राजन ने कहा कि केंद्रीय बैंक प्रस्ताव की ठीक ढंग से पड़ताल करता है और वित्तीय स्थिरता से जुड़े ख़तरों का आकलन करता है.
उन्होंने कहा, ‘हमारी (आरबीआई की) ज़िम्मेदारी वित्तीय स्थिरता को बनाए रखना है और इसलिए हमारे पास न कहने का अधिकार है.’
उल्लेखनीय है कि इस तरह की खबरें आ रही हैं कि उर्जित पटेल की अगुवाई वाले आरबीआई और सरकार में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है.
आरबीआई के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य के एक वक्तव्य के बाद केंद्रीय बैंक और सरकार के बीच मतभेद खुलकर सतह पर आ गए थे.
डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने कहा था कि जो सरकारें अपने केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता का सम्मान नहीं करतीं उन्हें देर सबेर ‘बाज़ारों के आक्रोश’ का सामना करना पड़ता है.
इसके बाद यह सामने आया कि सरकार ने एनपीए नियमों में ढील देकर क़र्ज़ सुविधा बढ़ाने सहित कई मुद्दों के समाधान के लिए आरबीआई अधिनियम के उस प्रावधान का इस्तेमाल किया है, जिसका उपयोग पहले कभी नहीं किया गया था ताकि वृद्धि दर तेज़ की जा सके. हालांकि केंद्रीय बैंक की सोच है कि इन मुद्दों पर नरमी नहीं बरती जा सकती है.
राजन ने कहा, ‘निश्चित तौर पर आरबीआई यूं ही न नहीं कहता है. वह ऐसा तब कहता है, जब परिस्थितियों की जांच के बाद उसे लगता है कि प्रस्तावित क़दम से बहुत अधिक वित्तीय अस्थिरता आएगी.’
पूर्व गवर्नर ने कहा, ‘मेरे ख़्याल से यह रिश्ता लंबे समय से चलता आ रहा है और यह पहला मौका नहीं है जब आरबीआई ने ना कहा हो. सरकार लगातार यह कह सकती है कि इस पर ग़ौर कीजिए, उस पर ग़ौर कीजिए लेकिन साथ ही वह कहती है कि ठीक है, मैं आपके फैसले का सम्मान करती हूं, आप वित्तीय स्थिरता को बनाए रखने वाले नियामक हैं और मैं (अपना प्रस्ताव) वापस लेती हूं.’
उन्होंने कहा, ‘जब आपने इन डिप्टी गवर्नरों और गवर्नर को नियुक्त किया है तो आपको उनकी बात सुननी होगी क्योंकि आपने इसी काम के लिए उनकी नियुक्ति की है, वे सेफ्टी बेल्ट हैं.’
मालूम हो कि बीते छह नवंबर को इंडियन एक्सप्रेस की एक विशेष रिपोर्ट में बताया गया था कि केंद्र की मोदी सरकार की ओर से 3.6 लाख करोड़ रुपये की सरप्लस (अतिरिक्त) रकम की मांग की गई थी, जिसे भारतीय रिज़र्व ने ठुकरा दिया था.
वित्त मंत्रालय की ओर से यह प्रस्ताव रिज़र्व बैंक को दिया गया था. प्रस्ताव में रिज़र्व बैंक के पास जमा कुल रकम या पूंजी 9.59 लाख करोड़ रुपये में से एक तिहाई यानी 3.6 लाख करोड़ रुपये की सरप्लस रकम केंद्र सरकार को देने की बात कही गई थी.
हालांकि सरकार को केंद्रीय बैंक के भंडार से इतनी बड़ी राशि देने के बाद अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ेगा, इस वजह से सरकार के इस प्रस्ताव को बैंक की ओर से नामंज़ूर कर दिया गया था.
केंद्र सरकार की राय है कि कुल पूंजी को लेकर केंद्रीय बैंक का अनुमान ज़रूरत से ज़्यादा है. इस वजह से उसके पास 3.6 लाख करोड़ रुपये की अतिरिक्त राशि है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)