विशेष रिपोर्ट: सुप्रीम कोर्ट ने तीन साल पहले दिसंबर 2015 में आरबीआई की सभी दलीलों को ख़ारिज करते हुए अपने फैसले में कहा था कि आरबीआई देश के शीर्ष 100 डिफॉल्टरों के बारे में जानकारी दे और इससे संबंधित सूचना वेबसाइट पर अपलोड करे.
नई दिल्ली: भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन करते हुए आदेश के तीन साल बाद भी देश के शीर्ष 100 डिफॉल्टर्स के बारे में जानकारी नहीं दी है और न ही इससे संबंधित कोई सूचना अपनी वेबसाइट पर अपलोड की है.
इस मामले में मुख्य याचिकाकर्ता पीपी कपूर ने द वायर को ये जानकारी दी है कि कोर्ट के आदेश के बावजूद आरबीआई ने उन्हें मांगी गई जानकारी नहीं दी है.
सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की पीठ ने 16 दिसंबर, 2015 को आरबीआई की तमाम दलीलों को ख़ारिज करते हुए केंद्रीय सूचना आयोग के उस फैसले को सही ठहराया था जिसमें ये कहा गया था कि आरबीआई देश के शीर्ष-100 डिफॉल्टर्स के बारे में जानकारी दे.
आरबीआई ने कहा था कि डिफॉल्टर्स के बारे में जो जानकारी बैंकों द्वारा भेजी जाती है उसे भरोसेमंद क्षमता में रखा जाता है और ये सूचना गोपनीय होती है. इसलिए ये जानकारी सूचना का अधिकार (आरटीआई) एक्ट की धारा 8(1)(ई) के तहत नहीं दी जा सकती है.
हालांकि तत्कालीन केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेष गांधी ने 15 नवंबर 2011 को अपने फैसले में आरबीआई की इन दलीलों को ख़ारिज कर दिया था और आदेश दिया कि आरटीआई आवेदक को मांगी गई सभी जानकारी मुहैया कराई जाई.
हरियाणा के पानीपत के रहने वाले पीपी कपूर ने 16 अगस्त 2010 को आरटीआई आवेदन दायर कर देश के 100 सबसे बड़े बैंक डिफॉल्टर उद्योगपतियों का नाम, पता, फर्म, क़र्ज़ की मूल राशि, क़र्ज़ पर ब्याज राशि, मूल क़र्ज़ राशि+कुल ब्याज राशि समेत कुल देय राशि की जानकारी मांगी थी.
कपूर ने यह भी पूछा था कि बैंक डिफॉल्टर्स की सूची बैंकों की वेबसाइट पर डालने के बारे में क्या किया जा रहा है और यह कब तक होगा. हालांकि आरबीआई ने इन सवालों पर जानकारी नहीं दी और इसकी वजह से पीपी कपूर ने आरटीआई मामलों को देखने वाली सबसे बड़ी संस्था केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) का रुख़ किया.
आयोग ने माना कि ये सभी जानकारियां जनहित में हैं और इसे आम जनता को दी जानी चाहिए. हालांकि आरबीआई इस आदेश के ख़िलाफ़ हाईकोर्ट गया और कोर्ट ने इस आदेश पर रोक लगा दी.
इसके बाद साल 2015 में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया बनाम जयंतीलाल एन. मिस्त्री मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एमवाई इकबाल और जस्टिस सी. नगप्पन ने कई सारे अन्य मामलों को मिलाकर, जिसमें सीआईसी का ये आदेश भी शामिल था, लंबी बहस की और सीआईसी के आदेश को सही ठहराया.
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा, ‘आरबीआई को कुछ चुनिंदा बैंकों के हित की जगह जनहित को तरजीह देनी चाहिए. बैंक को पारदर्शिता के साथ काम करना चाहिए और ऐसी सूचनाओं को नहीं छुपाना चाहिए जो कि किसी बैंक के लिए आपत्तिजनक साबित हो सकता है. आरबीआई का ये तर्क बिल्कुल आधारहीन और गलत है कि ऐसी सूचनाओं को सार्वजनिक करने से देश के आर्थिक हितों पर प्रभाव पड़ेगा.’
पीपी कपूर ने द वायर को बताया कि इस फैसले के बाद भी अभी तक आरबीआई ने उन्हें ज़रूरी जानकारी नहीं दी है.
उन्होंने कहा, ‘ये देश की जनता के पैसे की जानकारी है लेकिन आरबीआई इसे छुपा रहा है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी अभी तक मुझे मांगी गई जानकारी नहीं मिली है. मैंने एक अन्य आरटीआई दायर कर यही सूचना और सुप्रीम कोर्ट के आदेश का अनुपालन रिपोर्ट के बारे में जानकारी मांगी लेकिन ज़रूरी जानकारी नहीं मिली.’
केंद्रीय सूचना आयोग ने हाल ही में अपने एक फैसले में इसी तरह की जानकारी नहीं देने के कारण आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल को कारण बताओ नोटिस जारी किया है.
आयोग ने अपने दो नवंबर के फैसले में पीपी कपूर मामले का भी बेहद गंभीरता से संज्ञान में लिया है और आरबीआई को निर्देश दिया है कि पांच दिन के भीतर वे प्रमाण के साथ बताएं कि इस मामले में उन्होंने क्या किया है.
केंद्रीय सूचना आयुक्त श्रीधर आचार्युलु ने कहा, ‘यदि आरबीआई जैसे बैंकिंग नियामक संवैधानिक संस्थानों के दिशानिर्देश का सम्मान नहीं करेंगे, तो क़ानून के शासन को सुरक्षित करने पर संविधान का क्या प्रभाव होगा?’
आयोग ने इस बात पर हैरानी जताई कि आरबीआई ने डिफॉल्टरों के बारे में सूचना नहीं देने के लिए उन्हीं तर्कों का सहारा लिया जिसे साल 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने सिरे से ख़ारिज कर दिया था.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद आरबीआई ने पीपी कपूर को जो जवाब भेजा था उसमें उन्होंने लिखा था कि दिसंबर 2014 के बाद से बैंक/फाइनेंशियल इंस्टिट्यूशन डिफॉल्टर्स (क़र्ज़ नहीं चुकाने वाले) और विलफुल डिफॉल्टर्स (जान-बूझकर क़र्ज़ नहीं चुकाने वाले) की जानकारी सीधे क्रेडिट इनफॉरमेशन कंपनियों को भेजते हैं, आरबीआई को नहीं. इसलिए हम ये जानकारी नहीं दे सकते हैं.
हालांकि बीते दो नवंबर को हुई सुनवाई में सीआईसी के सामने दलीलें पेश करते हुए आरबीआई ने ये स्वीकार किया है कि बैंक/फाइनेंशियल इंस्टिट्यूशंस डिफॉल्टर्स और विलफुल डिफॉल्टर्स की जानकारी सीधे क्रेडिट इनफॉरमेशन कंपनियों को भेजते हैं लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि आरबीआई के पास इनकी जानकारी नहीं होती है. आरबीआई के अधिकारी ने कहा कि उनके पास इससे संबंधित जानकारी होती है.
बता दें कि इस समय रिज़र्व बैंक द्वारा प्रमाणित चार क्रेडिट सूचना कंपनियां हैं. इनके नाम हैं: क्रेडिट इनफॉरमेशन ब्यूरो (इंडिया) लिमिटेड, इक्विफैक्स क्रेडिट इनफॉरमेशन सर्विसेस प्राइवेट लिमिटेड, एक्सपेरिअन क्रेडिट इंफॉर्मेशन कंपनी ऑफ इंडिया प्राइवेट लिमिटेड और सीआरआईएफ हाई मार्क क्रेडिट इनफॉरमेशन सर्विसेस प्राइवेट लिमिटेड.
पीपी कपूर ने सीआईसी के हालिया फैसले के बाद सूचना आयुक्त श्रीधर आचार्युलु को आरबीआई द्वारा आदेश के उल्लंघन को लेकर पत्र लिखा है.
इससे पहले बीते दो नवंबर को सीआईसी ने प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ), वित्त मंत्रालय और भारतीय रिज़र्व बैंक को ये जानकारी देने का आदेश दिया कि आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन द्वारा भेजे गए एनपीए के बड़े घोटालेबाज़ों की सूची पर क्या क़दम उठाया गया है.
द वायर ने आरटीआई दायर कर ये जानकारी प्राप्त की थी कि आरबीआई, पीएमओ और वित्त मंत्रालय रघुराम राजन द्वारा भेजे गए एनपीए के बड़े घोटालेबाज़ों की सूची नहीं दे रहे हैं. केंद्रीय सूचना आयुक्त श्रीधर आचार्युलु ने द वायर की रिपोर्ट का संज्ञान लेते हुए रघुराम राजन की सूची पर क्या कदम उठाया गया है, इसके बारे में 16 नवंबर 2018 से पहले जानकारी देने के लिए कहा है.
हालांकि रिज़र्व बैंक ने 26 नवंबर तक जवाब देने के लिए समय मांगा है. ऐसा माना जा रहा है कि ये मामला अब ठंडे बस्ते में जा सकता है क्योंकि सूचना आयुक्त श्रीधर आचार्युलु रिटायर होने वाले हैं और उनके कार्यकाल का आख़िरी दिन 20 नवंबर है.
रघुराम राजन ने 4 फरवरी 2015 को एनपीए के बड़े घोटालेबाज़ों के बारे में प्रधानमंत्री कार्यालय को पत्र लिखा था और कार्रवाई करने की मांग की थी. राजन ने सिर्फ प्रधानमंत्री कार्यालय ही नहीं, बल्कि वित्त मंत्रालय को भी ये सूची भेजी थी, जिसके मुखिया केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली हैं.