उत्तर प्रदेश में निजी मेडिकल और डेंटल कॉलेजों में आरक्षण ख़त्म करने की झूठी ख़बर को मीडिया ने योगी के भ्रष्टाचार विरोधी कड़े कदम के रूप में प्रचारित किया.
योगी आदित्यनाथ के उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनते ही कुछ मीडिया संस्थान और कुछ पीआर संस्थाओं ने उनकी छवि को बदलने का प्रयास शुरू कर दिया है. बुधवार को सोशल मीडिया पर आदित्यनाथ का महिमामंडन करते हुए कहा जा रहा था कि निजी मेडिकल कॉलेजों में उन्होंने अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग को मिलने वाले जाति आधारित आरक्षण को समाप्त कर दिया है. अगले दिन ‘डेस्कटॉप पत्रकारों’ ने इसे उठाते हुए तुरंत इसकी ख़बर बना दी.
इंडिया टुडे के एक लेख में कहा गया कि योगी सरकार ने निजी मेडिकल कॉलेजों में जाति आधारित आरक्षण को समाप्त कर दिया है. जल्दबाज़ी में इस पत्रिका ने नई सरकार द्वारा भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने का कार्य और राज्य के लिए मुख्यमंत्री द्वारा किए गए सुधार कामों का उल्लेख कर दिया.
इंडिया टुडे ने अपने लेख में यह भी कहा कि आरक्षण का निर्णय अखिलेश सरकार द्वारा लिया गया था, जिसे नए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पदभार संभालते ही बदल दिया है.
पूरी ख़बर में सबसे दिलचस्प बात यह है कि इसमें किसी स्रोत का कोई उल्लेख नहीं है. पूरी ख़बर में किसी सरकारी कर्मचारी या किसी सरकारी विभाग के आदेश का उल्लेख नहीं है. इसी तरह की ख़बर टाइम्स समूह के Indiatimes.com और Mensxp.com पर, ज़ी न्यूज़ समूह का India.com और Newsnation.com ने भी अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित किया था.
उधर, मेडिकल शिक्षा विभाग ने इस ख़बर का खंडन करने में देरी नहीं लगाई. विभाग के महानिदेशक डॉ. वीएन त्रिपाठी ने टाइम्स ऑफ इंडिया से कहा, ‘निजी मेडिकल और डेंटल कॉलेजों में आरक्षण का कोई प्रावधान ही नहीं था. ऐसी ख़बर बेबुनियाद है. सरकार ने आरक्षण के मामले में किसी भी प्रकार का कोई फैसला नहीं लिया है.’
10 मार्च, 2017 के आदेश के मुताबिक, अखिलेश सरकार ने फैसला लिया था कि निजी मेडिकल और डेंटल कॉलेज में दाख़िला भी नीट परीक्षा के ज़रिये होगा. द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर के अनुसार, आदेश के 7वें क्लॉज़ में यह भी कहा गया था कि निजी संस्थानों में आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं होगा.
महानिदेशक कहते हैं, ‘यह पहली बार हुआ है कि निजी मेडिकल और डेंटल कॉलेजों को नीट परीक्षा के तहत लाया गया है. पोस्ट ग्रैजुएट की सीट भी इसी परीक्षा के तहत भरी जानी है.’
भारत भर में सरकारी मेडिकल और डेंटल कॉलेजों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और ओबीसी उम्मीदवारों के लिए आरक्षित सीट उपलब्ध कराई जाती हैं, लेकिन निजी कॉलेजों को आरक्षण लागू करने से छूट दी जाती है. उत्तर प्रदेश सरकार ने 10 मार्च, 2017 के आदेश में अनिवार्य रूप से इस वास्तविकता को दोहराया है.
द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, मेडिकल शिक्षा के प्रधान सचिव ने ऐसी ख़बरों का खंडन करते हुए कहा है कि ये सब झूठी ख़बर हैं जिसका इस्तेमाल नई सरकार को बदनाम करने के लिए किया जा रहा है.
हालिया विधानसभा चुनाव के दौरान जिस आक्रामक तरीके से भाजपा ने अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं को लुभाने का काम किया है. ऐसे में यह ‘ख़बर’ जिसमें बताया गया है कि आदित्यनाथ विद्यार्थियों के लिए जाति आधारित आरक्षण ख़त्म कर रहे हैं, इस पर इन समुदायों की ओर से तीखी प्रतिक्रिया होती.
विडंबना यह है कि जिन मीडिया संस्थानों ने इस समाचार को प्रकाशित किया उन्होंने ख़बर के इस पहलू को नज़रअंदाज़ किया. और ये समझ से परे है कि कैसे इंडिया टुडे की वेबसाइट ने इस ‘निर्णय’ को ‘राज्य के फायदे और भ्रष्टाचार के ख़ात्मे’ के रूप बता दिया.