पुलिसकर्मियों ने याचिका दायर कर आरोप लगाया था कि पीठ ने कुछ आरोपियों को पहले ही अपनी टिप्पणी में ‘हत्यारा’ बताया था. कोर्ट ने कहा कि एसआईटी द्वारा इन मामलों में की जा रही जांच पर संदेह का कोई कारण नहीं है.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मणिपुर के कुछ पुलिसकर्मियों द्वारा दायर उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें पीठ में शामिल जजों से मणिपुर फर्जी मुठभेड़ मामले की सुनवाई से अलग हो जाने की मांग की गई थी.
इन फर्जी मुठभेड़ मामलों की जांच सीबीआई का विशेष जांच दल (एसआईटी) कर रहा है.
जस्टिस मदन बी. लोकुर और जस्टिस यूयू ललित की पीठ ने कहा कि एसआईटी और इन मामलों में उसके द्वारा की जा रही जांच पर इन पुलिसकर्मियों के संदेह करने का कोई कारण नहीं है.
पीठ ने यह भी कहा कि न्यायपालिका और सीबीआई की सांस्थानिक पवित्रता को अवश्य कायम रखा जाना चाहिए.
शीर्ष अदालत का आदेश मणिपुर के कुछ पुलिसकर्मियों की याचिका पर आया है, जिन्होंने मांग की थी कि पीठ में शामिल जज मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लें.
याचिकाकर्ताओं ने दावा किया था कि पीठ ने कुछ आरोपियों को पहले अपनी टिप्पणी में ‘हत्यारा’ बताया था. इन आरोपियों के खिलाफ मुठभेड़ मामलों में एसआईटी ने आरोप पत्र दायर किया था.
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर में वर्ष 2000 से 2012 के बीच सुरक्षा बलों और पुलिस द्वारा कथित रूप से की गई 1528 फ़र्ज़ी मुठभेड़ और ग़ैर-न्यायिक हत्याओं के मामले की जांच के आदेश दिया है.
पिछले साल जुलाई के महीने में सुप्रीम कोर्ट ने उग्रवाद से प्रभावित मणिपुर में सेना, असम राइफल्स और मणिपुर पुलिस द्वारा की गई कथित ग़ैर-न्यायिक हत्याओं के मामले की सीबीआई जांच का निर्देश दिया है.
मणिपुर में गैर-न्यायिक हत्याओं के करीब 1528 मामलों की जांच की मांग वाली जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही शीर्ष अदालत ने पिछले साल 14 जुलाई को मणिपुर में कथित फर्जी मुठभेड़ों के मामलों में प्राथमिकी दर्ज करने और इनकी जांच करने का आदेश दिया था.
पीठ ने मानवाधिकार आयोग में पर्याप्त स्टाफ की कमी पर चिंता भी जताई और कहा कि आयोग के अधिकारियों पर अत्यधिक काम का बोझ है.
मालूम हो कि न्यायालय ने पिछले साल 12 जुलाई को इन मामलों की जांच के लिए विशेष जांच दल गठित किया था. इसमें सीबीआई के पांच अधिकारियों को शामिल किया गया था. न्यायालय ने मणिपुर मे ग़ैर-न्यायिक हत्याओं के मामलों में प्राथमिकी दर्ज करने और इनकी जांच का आदेश दिया था.
न्यायालय ने इस राज्य में 1528 ग़ैर-न्यायिक हत्याओं की जांच के लिए दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान पिछले साल जुलाई में 81 प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश दिया था.
इन मामलों में, 32 मामले जांच आयोग, 32 मामले न्यायिक आयोग और उच्च न्यायालयों की जांच, 11 मामलों में मानवाधिकार आयोग मुआवज़ा दे चुका है और छह मामलों में शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति संतोष हेगड़े की अध्यक्षता वाले आयोग ने जांच की थी, शामिल हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)