भाजपा की ओर से जारी 131 उम्मीदवारों की पहली सूची में दो मंत्रियों सहित महज़ 23 विधायकों का टिकट कटा है जबकि अमित शाह एंटीइनकम्बेंसी से निपटने के लिए आधे से ज़्यादा मौजूदा विधायकों की जगह नए चेहरों को मैदान में उतारना चाहते थे.
जयपुर: राजस्थान में सात दिसंबर को होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा की केंद्रीय चुनाव समिति ने 131 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर दी है. पार्टी ने 85 मौजूदा विधायकों को फिर से मौका दिया है जबकि दो मंत्रियों सहित 23 का टिकट कट गया है.
हालांकि जिन 23 मौजूदा विधायकोंं के टिकट पर कैंची चली है, उनमें से पांच का नाम उम्र आड़े आने की वजह से सूची में नहीं है. पार्टी ने इनकी जगह इनके परिजनों को मैदान में उतारा है.
मंत्री नंद लाल मीणा के बेटे हेमंत मीणा, विधायक सुंदर लाल काका के बेटे कैलाश मेघवाल, गुरजंट सिंह के पोते गुरमीत सिंह बराड़, कुंजी लाल मीणा के बेटे राजेंद्र मीणा व कैलाश भंसाली के भतीजे अतुल भंसाली को टिकट मिला है.
यानी ऐसे विधायकों की संख्या महज़ 18 है जिनका टिकट ख़राब प्रदर्शन के आधार पर कटा है. जबकि पहले यह माना जा रहा है कि एंटीइनकम्बेंसी से निपटने के लिए भाजपा आधे से ज्यादा विधायकों की जगह नए चेहरों को उम्मीदवार बनाएगी.
सियासी गलियारों में चली इस चर्चा को उस समय और बल मिला जब अमित शाह ने मुख्यमंत्री वसुंधरा की सूची को नकार दिया.
गौरतलब है कि राजे बीते 31 अक्टूबर को विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी के उम्मीदवारों के नाम तय करने के लिए अमित शाह से मिली थीं. इस दौरान पूर्व प्रदेशाध्यक्ष अशोक परनामी और पंचायतीराज मंत्री राजेंद्र राठौड़ भी उनके साथ थे. सूत्रों के अनुसार वे जो सूची अपने साथ ले गई थीं उसमें 90 नाम थे.
इस सूची में सबसे पहले श्रीगंगानगर ज़िले की सीटों पर चर्चा शुरू हुई. यहां की सादुलशहर सीट पर वसुंधरा मौजूदा उम्रदराज़ विधायक गुरजंट सिंह की जगह उनके पोते गुरमीत सिंह बराड़ का नाम तय कर ले गई थीं.
जानकारी के मुताबिक इसे देखते ही अमित शाह की त्योरियां चढ़ गईं. उन्होंने कहा कि जब विधायक जीतने की स्थिति में नहीं है तो उनका पोता कैसे जीत दर्ज करेगा.
भाजपा से जुड़े सूत्रों के अनुसार अमित शाह ने अपनी ओर से कराए गए सर्वे और संघ एवं विस्तारकों की ग्राउंड रिपोर्ट का हवाला देते हुए कड़े लहज़े में कहा कि पार्टी उसे ही टिकट देगी जो जीतने की स्थिति में होगा. सिर्फ इस आधार पर किसी को टिकट नहीं दिया जाएगा कि वो मंत्री, विधायक, बड़ा नेता या किसी का चहेता है. चुनाव राजस्थान में फिर से सरकार बनाने के लिए लड़ा जा रहा है न कि किसी पर मेहरबानी करने के लिए.
शाह के तल्ख़ तेवर पर वसुंधरा राजे ने तर्क दिया कि जो लोग पार्टी और उनसे लंबे समय से जुड़े हुए हैं उनकी अनदेखी करना ठीक नहीं होगा. इन लोगों को साथ लेकर नहीं चलेंगे तो चुनाव में नुकसान होगा, लेकिन राजे की इस दलील से अमित शाह सहमत नहीं हुए. उन्होंने प्रदेश नेतृत्व को सभी सीटों पर कम से कम तीन दावेदारों का पैनल बनाकर लाने के लिए कहा.
शाह के निर्देश के बाद गुलाब चंद कटारिया, राजेंद्र राठौड़, अविनाश राय खन्ना, वी. सतीश, चंद्रशेखर, ओमप्रकाश माथुर, अर्जुनराम मेघवाल, गजेंद्र सिंह शेखावत, नारायण पंचारिया, ओम बिड़ला, राजेंद्र गहलोत, हरिओम सिंह, सीपी जोशी, किरण माहेश्वरी व भजन लाल ने प्रदेश के सभी ज़िलों का दौरा कर दावेदारों का पैनल तैयार किया.
माना जा रहा था कि नए सिरे से तैयार पैनल और अमित शाह के पास मौजूद सूची के मिलान के बाद उम्मीदवारों का ऐलान होगा, लेकिन वसुंधरा राजे की ज़िद के सामने यह पूरी कवायद कोरी साबित हुई. टिकट तय करने में मुख्यमंत्री की तूती किस क़दर बोली है इसका अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि श्रीगंगानगर ज़िले की सादुलशहर सीट पर जिस नाम को देखकर अमित शाह भन्ना गए थे, पार्टी ने उन्हें ही प्रत्याशी घोषित किया है.
131 उम्मीदवारों की सूची में शामिल ज़्यादातर नाम मुख्यमंत्री की पसंद के हैं. जिन विधायकों के टिकट काटे गए हैं, उनके प्रदर्शन से वसुंधरा भी नाखुश थीं. हालांकि पार्टी ने संघनिष्ठ माने जाने वाले दो दर्जन से ज़्यादा नामों को चुनावी रण में उतारा है, लेकिन इनमें से एकाध को छोड़कर सभी के राजे से भी अच्छे संबंध हैं.
सूची की ख़ास बात यह है कि वसुंधरा खेमे के किसी बड़े नेता का टिकट नहीं कटा है. उनके चहेते माने जाने वाले मंत्री यूनुस ख़ान का टिकट ज़रूर अटक गया है.
गौरतलब है कि ख़ान के पास सार्वजनिक निर्माण विभाग और परिवहन विभाग के कैबिनेट मंत्री थे. आमतौर पर इन दोनों विभागों के अलग-अलग मंत्री होते हैं, लेकिन यूनुस ने अकेले ही इन्हें संभाला.
यूनुस ख़ान वर्तमान में नागौर ज़िले की डीडवाना सीट से विधायक हैं. चर्चा है कि उनकी उम्मीदवारी एक भी मुस्लिम को मौका नहीं देने की नीति के चपेट में आ सकती है. इस चर्चा को इसलिए बल मिला है, क्योंकि पार्टी ने नागौर विधायक हबीबुर्रहमान का टिकट काट दिया है. उल्लेखनीय है कि भाजपा में यूनुस ख़ान के अलावा वे ही मुस्लिम विधायक थे.
यूनुस ख़ान के अलावा वसुधंरा सरकार के सात मंत्रियों- कालीचरण सराफ, राजपाल सिंह शेखावत, जसवंत यादव, धन सिंह रावत, हेम सिंह भड़ाना, राजकुमार रिणवां व सुरेंद्र पाल सिंह टीटी के टिकट पर फैसला पहली सूची में नहीं हुआ है. इनमें कालीचरण सराफ का टिकट कटना तय माना जा रहा है.
भाजपा की ओर से जारी पहली सूची गौर करें तो इस पर वसुंधरा का अक्स साफतौर पर दिखाई देता है. राजनीतिक प्रेक्षकों के मुताबिक यह पूरी तरह से राजे की सूची है. इसमें अमित शाह का असर सिर्फ़ इतना सा है कि किसी भी मौजूदा विधायक को सीट बदलने का मौका नहीं मिला है. अब यह तय माना जा रहा है कि बाकी बचे 69 उम्मीदवार भी वसुंधरा की पसंद के होंगे.
यह लगातार दूसरा मौका है जब अमित शाह को वसुंधरा राजे की हठ के सामने सरेंडर करना पड़ा है. इससे पहले प्रदेशाध्यक्ष के मामले में उन्हें सूबे की मुख्यमंत्री के आगे झुकना पड़ा था.
गौरतलब है कि इसी साल फरवरी में दो लोकसभा और एक विधानसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव में भाजपा की क़रारी हार के बाद केंद्रीय नेतृत्व ने वसुंधरा के ‘यस मैन’ माने जाने वाले अशोक परनामी से 16 अप्रैल को इस्तीफ़ा लिया था.
अमित शाह राजस्थान में पार्टी की कमान केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के हाथों में सौंपना चाहते थे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी शेखावत को प्रदेशाध्यक्ष बनाना चाहते थे, लेकिन वुसंधरा राजे ने इस पर सहमति व्यक्त नहीं की. पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने राजे को राज़ी करने के लिए सभी जतन किए, लेकिन मुख्यमंत्री टस से मस नहीं हुईं.
आख़िरकार मोदी-शाह की पसंद पर वसुंधरा का वीटो भारी पड़ा और मदन लाल सैनी प्रदेशाध्यक्ष बने. नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री और अमित शाह के भाजपा अध्यक्ष बनने के बाद यह पहला मौका था जब इन दोनों को पार्टी के किसी क्षेत्रीय क्षत्रप ने न केवल सीधी चुनौती दी, बल्कि घुटने टेकने पर भी मजबूर कर दिया. जबकि माना यह जाता है कि मोदी-शाह की मर्ज़ी के बिना भाजपा में पत्ता भी नहीं हिलता.
अमित शाह के इस आत्मसमर्पण को उनके खेमे के एक नेता दूसरी नज़र से देखते हैं. नाम उजागर नहीं करने की शर्त पर वे कहते हैं, ‘राजस्थान में भाजपा हारी हुई लड़ाई लड़ रही है. अमित शाह ने जी यहां पार्टी को मुक़ाबले में लाने के लिए ख़ूब मशक्कत की, लेकिन बात बनती हुई दिखाई नहीं दे रही. मुख्यमंत्री का अड़ियल रवैया भी इसके लिए ज़िम्मेदार है.’
वे आगे कहते हैं, ‘पार्टी ने राजस्थान को हाथ से निकला हुआ मान लिया है. ऐसे में वसुंधरा का कहा न मानने का मतलब है उन्हें यह बहाना पकड़ा देना कि केंद्रीय नेतृत्व की दख़ल की वजह से पार्टी सत्ता में आने से रह गई. इसलिए पार्टी ने उन्हें पूरी तरह से फ्रीहैंड दे दिया है. पार्टी हारती है तो इसके लिए मुख्यमंत्री ज़िम्मेदार होंगी न कि पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व.’
वहीं, वसुंधरा खेमे के एक बड़े नेता उम्मीदवारों की पहली सूची को मुख्यमंत्री की जीत के तौर पर देखते हैं. ‘आॅफ द रिकॉर्ड’ बातचीत में वे कहते हैं, ‘एक बार फिर साबित हो गया कि राजस्थान में वसुंधरा ही भाजपा है. पार्टी के पास उनका दूसरा विकल्प नहीं है. उनकी बात मानना पार्टी की मजबूरी है. उन्हें फ्रीहैंड दिए बिना पार्टी चुनाव में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सकती.’
वे आगे कहते हैं, ‘पहले यह कहा जा रहा था कि अमित शाह ने अविनाश राय खन्ना, वी. सतीश, चंद्रशेखर, मदन लाल सैनी, प्रकाश जावड़ेकर और गजेंद्र सिंह शेखावत के ज़रिये ऐसा चक्रव्यूह बनाया है कि वसुंधरा राजे को आख़िरकार हाथ खड़े करने ही पड़ेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और न कभी होगा. राजस्थान में भाजपा की कमान वसुंधरा के हाथों में ही रहेगी.’
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)