किसी भी स्थिति में कांग्रेस को जोगी का समर्थन नहीं लेना चाहिए: नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव

साक्षात्कार: दीपक गोस्वामी से बातचीत में छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव ने कहा, 'अच्छा हुआ कि अजीत जोगी ने अलग रास्ता पकड़ लिया. हमें विभीषण से मुक्ति मिली, हम बहुत खुश हैं.'

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छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव (फोटो: द वायर)

साक्षात्कार: दीपक गोस्वामी से बातचीत में छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव ने कहा, ‘अच्छा हुआ कि अजीत जोगी ने अलग रास्ता पकड़ लिया. हमें विभीषण से मुक्ति मिली, हम बहुत खुश हैं.’

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव (फोटो: द वायर)
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव (फोटो: द वायर)

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को सत्ता से दूर हुए 15 साल हो गए हैं, लगातार तीन चुनाव हारे. हालांकि वोट प्रतिशत के लिहाज से अंतर काफी कम रहा लेकिन सीटों की लिहाज से बहुत पीछे रहे. इस बार कांग्रेस को क्या लगता है कि जनता सीटों पर भी उसे क्यों बहुमत दिलाएगी?

क्योंकि बीते पांच सालों में प्रदेश में कांग्रेस ने एक सक्रिय और जिम्मेदार विपक्ष की भूमिका निभाई. संगठन के माध्यम से अनेकों आंदोलनों को किए, फिर चाहे बात सत्ता में आने के बाद भाजपा की दोहरी नीति पर प्रहार की हो या उसके जनविरोधी फैसलों जैसे लोगों के राशन कार्डों को काटना.

प्रदेश में गर्भाशय कांड जहां महिलाओं की बिना सहमति या जानकरी के उनके गर्भाशय निकाल लिए गए, आंखफोड़वा कांड जिसमें मोतियाबिंद के ऑपरेशन हुए और आंख की रोशनी चली गई, जिसके चलते कुछ मौतें भी हुईं, स्वयं मुख्यमंत्री के विधानसभा क्षेत्र राजनांदगांव में ऐसी घटना हुई, सब पर मुखरता से हम जनता के साथ खड़े रहे.

शासन की दूषित दवाओं से अंतरराष्ट्रीय परिवार नियोजन योजना में 13 महिलाओं की जान गई. खेती-किसानी के मुद्दे, घपले-घोटाले, जमीन अधिग्रहण, अदिवासी समुदाय के मुद्दे, उनके अधिकार, पंचायती राज की 774 करोड़ की राशि निजी कंपनी को टावर लगाने के लिए देने, वनाधिकार के मसले, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार आदि सभी जनहित के मुद्दों पर या तो हम सड़कों पर उतरे हैं या विधानसभा में उन्हें उठाया है.

15 साल की सरकार ऐसा नहीं कर पाई कि हमारे बीच के एमएससी पास बच्चे-बच्चियों को शिक्षक वर्ग के पद देकर रोजगार दे देती. नर्सों की भर्ती राज्य के बाहर से हुई, शिक्षकों की भर्ती राज्य के बाहर से हुई, अनेकों क्षेत्र में भर्ती बाहर से हुई. शिक्षा के स्तर पर राष्ट्रीय पत्रिका का सर्वे कहता है कि छत्तीसगढ़ में शिक्षा का स्तर देश के 21 बड़े राज्यों में 18वें स्थान पर है.

विकास कार्यों की गति धीमी है. सड़कें बदतर हालात में हैं. रायपुर से अंबिकापुर जाओ तो 8 घंटे लगते हैं. रिंग रोड इत्यादि सड़कों की दुर्दशा बयां नहीं जा सकती.

15 साल से सरकार ने सिंचाई क्षेत्र के विकास में जो औसत बढ़ोतरी की है वो सिर्फ 0.63 प्रतिशत की है. रिजर्व बैंक के मुताबिक देश में सर्वाधिक गरीबी 39.93 प्रतिशत अंकों के साथ छत्तीसगढ़ में है. कहने को तो प्रति व्यक्ति आय बढ़ रही है लेकिन ये पैसे जा कहां रहे हैं?

सच यह है कि चुनिंदा एक-दो प्रतिशत लोगों की आमदनी बढ़ रही है. तभी तो नरेगा के नीचे रहने वाले राज्य में सर्वाधिक हैं.

कई पैरामीटर में स्थिति ऐसी ही रही. धान के बारे में इन्होंने वादा किया था कि हम एक-एक दाना खरीदेंगे. 2100 एमएसपी पर खरीदेंगे, 300 रुपये बोनस देंगे. ऐसा कहकर खेती करवाई, लेकिन दाम नहीं बढ़ाए. नतीजतन किसान आत्महत्या करने की स्थिति में आ गये. अनेक मुद्दे रहे जिन्हें उठाकर हमने जनता के बीच अपनी बात रखी और सरकार को झुकना पड़ा. इसलिए जनता को सब दिख रहा है.

मुकाबला इस बार केवल भाजपा से नहीं है जोगी कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का गठबंधन तथा आम आदमी पार्टी (आप) भी मैदान में है. क्या इनकी मौजूदगी ने कांग्रेस की रणनीति को प्रभावित किया है?

इनके उदय से कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा क्योंकि छत्तीसगढ़ में मुकाबला दो ध्रुवीय ही होता है. 2003 से वोट शेयर देखेंगे तो कांग्रेस और भाजपा का वोट शेयर मिलाकर करीब 76 प्रतिशत, 2008 में 79 और 2013 में 81 प्रतिशत रहा. तो यहां बसपा या अन्य दल हैं केवल शेष वोट ही लेने की स्थिति में रहते हैं.

मतलब आप कहना चाहते हैं कि अजीत जोगी के कांग्रेस छोड़कर मैदान में उतरने से पार्टी की रणनीति पर बिल्कुल प्रभाव नहीं पड़ा है?

अजीत जोगी का मैदान में आना हमारे लिए सौभाग्य की बात है कि उनके रहते जो भितरघात होता था, हमारा वोट भाजपा को ट्रांसफर होता था, अब वही जोगी भाजपा की चिंता का विषय ज्यादा है. हम लोग तो बहुत सुखी हैं. जोगी जी ने अपना अलग रास्ता पकड़ा, हमें विभीषण से मुक्ति मिली, हम बहुत खुश हैं.

अगर ऐसी परिस्थितियां बनती हैं कि कांग्रेस और भाजपा मामूली अंतर से बहुमत पाने से रह जायें तो क्या कांग्रेस जोगी से समर्थन लेगी अगर वे देना चाहें तो?

मेरी निजी राय है कि कभी नहीं लेना चाहिए. उसका कारण है कि हमारा उनसे मुद्दों पर मतभेद था. इसलिए उनके साथ काम न करने की स्थिति बनी थी.

वहीं, उनका आचरण पूरी तरह से व्यक्तिवादी रहा. साथ ही उनके खिलाफ अनेकों मुद्दे सामने आये जैसे कि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के कोषाध्यक्ष की उनके कार्यकाल में हत्या हुई जिसमें उनके बेटे की संलिप्तता सामने आई. वे 11 महीने जेल भी रहे और आज जमानत पर बाहर हैं.

फिर इनका आदिवासी होने का विवाद है जिसमें रमन सिंह हर बार चुनाव के पहले शासनतंत्र का दुरुपयोग करके उनको लाभ देते हैं.

फिर अंतागढ़ में हमारे विधायक की खरीद-फरोख्त का मामला आया. एक टेप लीक हुआ जिसमें जोगी और उनके बेटे अमित और मुख्यमंत्री रमन सिंह के एक रिश्तेदार सौदेबाजी कर रहे हैं. हमारा विधायक अपना नामांकन भरने के बाद वापस लेता है.

इस तरह हमने उनका वैचारिक और बुनियादी विरोध किया था कि यह सब अनुचित है.

एक अहम बात यह भी कि आपने संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) का दूसरा कार्यकाल देखा होगा कि सरकार चलाने का साझा प्रयास हुआ था और समान विचार के दल न होने की स्थिति में पॉलिसी पैरालिसिस की बात सामने आती थी कि सरकार ठीक ठंग से काम नहीं कर पा रही है. तो मेरा मानना है कि ऐसे किसी भी दल के साथ कतई सरकार नहीं बनानी चाहिए जिससे वैचारिक मतभेद हों.

यह मेरी निजी राय है कि कांग्रेस पार्टी को जोगी के साथ सरकार नहीं बनानी चाहिए. कहीं बेहतर होगा कि दोबारा मतदाता के पास जाया जाए.

बसपा के साथ कांग्रेस की गठबंधन करने के संबंध में लंबी बात चली लेकिन अंत में जोगी बाजी मार ले गये. कांग्रेस की रणनीति में कहां कमी रह गई कि बसपा के साथ गठबंधन न हो सका?

बात सीट शेयरिंग पर अटकी थी. जोगी के साथ गठबंध में बसपा को 35 सीटें मिलीं. बसपा 90 सीटों पर चुनाव लड़ती आई है. इसलिए उनकी महत्वाकांक्षाएं अधिक थीं.

वहीं, उनके सीमित सीटों पर लड़ने के कारण पार्टी के बीच भी व्यापक असंतोष जन्मा है बल्कि बसपा से बहुत लोग कांग्रेस में आ गये और हमारा सहयोग किया है. गठबंधन की स्थिति में इसी तरह सीटों पर समझौते वाली स्थिति का नुकसान कांग्रेस को भी हो सकता था.

हालांकि यह एक अलग स्थिति है. फिर भी हमने प्रयास किया था कि समान विचारधाराओं की पार्टी जिनके गठबंधन पर 2019 के चुनावों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर गंभीरता से चर्चा चल रही है, उसी के मद्देनजर हमने पहल की थी. लेकिन सीट शेयरिंग को लेकर सहमति नहीं बनी.

छत्तीसगढ़ में ऐसा ट्रेंड बन गया है कि सिटिंग विधायक अपनी सीट नहीं बचा पाते हैं. बावजूद इसके कांग्रेस ने जैसी उम्मीद थी, उस संख्या में अपने विधायकों के टिकट नहीं काटे. कहीं पिछले चुनावों की तरह इस बार फिर कांग्रेस का यह कदम उसे नुकसान न पहुंचाये?

सिर्फ इस पॉलिसी के तहत टिकट काट दें तो यह तर्कसंगत नहीं है और सिटिंग विधायक है तो टिकट पायेगा ही, यह भी तर्कसंगत नहीं है. मतलब कि विधायक है तो फिर से टिकट मिलेगा या विधायक है तो हार जायेगा मानकर टिकट न दें दोनों ही स्थितियां तर्कसंगत नहीं हैं.

इसलिए व्यक्तिगत हालात टटोलकर कौन सा उम्मीदवार जीतने की सबसे ज्यादा संभावना रखता है, उनको पार्टी टिकट देती है.

विशेषकर बस्तर और सरगुजा क्षेत्र में जो आदिवासी बेल्ट है, वहां हमें महसूस हुआ कि ज्यादातर सिटिंग एमएलए अच्छी स्थिति में हैं तो यह कारण बना कि उन्हें वापस मैदान में उतारा गया.

कहते हैं कि छत्तीसगढ़ कांग्रेस में गुटबाजी चरम पर है. कई चेहरे हैं जो खुद को मुख्यमंत्री देखना चाहते हैं. कई खुलकर इस संबंध में बयान भी दे चुके हैं तो मांग आदिवासी चेहरे को मुख्यमंत्री बनाने की भी उठी है. क्या यह गुटबाजी कांग्रेस के सत्ता के सफर के बीच रोड़ा तो नहीं साबित होगी?

मुझे एक परिवार बताइए जिसमें किसी न किसी मौके पर पति-पत्नी के बीच मत भिन्नता न रहती हो. ऐसे कितने परिवार होंगे जहां ऐसे भाई-बहन हैं, जिनमें मत भिन्नता न हो. कौन-सा ऐसा संगठन है, चाहे मीडिया हो या व्यापारिक या कॉरपोरेट या शासकीय अधिकारियों का जहां प्रतिस्पर्धा नहीं होती. यह तथ्य नकारते हुए ऐसा कहना कि कांग्रेस को नुकसान की स्थिति है तो मैं कहना चाहूंगा कि मीडिया का ध्यान उस ओर क्यों नहीं जाता जहां भाजपा की नेता सरोज पांडे ने चुनाव के दो-तीन महीने पहले बयान दिया था कि कहां ऐसा है कि रमन सिंह ही मुख्यमंत्री बनेंगे?

यह उनका सार्वजनिक बयान था और बृजमोहन और भाजपा नेताओं के संबंध दुनिया जानती है. भाजपा में किस तरह आदिवाली नेतृत्व को दरकिनार करने के लिए नंदकुमार सहाय के साथ व्यवहार हुआ, हर व्यक्ति उस बात को जानता है.

पर प्रश्न उस बात की नहीं है. बात ये है कि हर दल में थोड़ी-बहुत कहीं न कहीं मत मत भिन्नता हो सकती है. कोई भी ऐसी सामाजिक इकाई नहीं है जो परिवार के आधार पर ही बनी हो और उसमें मतांतर न हो.

किसान कर्ज माफी के मुद्दे पर कांग्रेस गंगाजल उठा रही है कि कर्ज माफ करेंगे. इसका क्या मतलब निकला कि जनता आप पर भरोसा नहीं करती इसलिए गंगाजल उठाकर भरोसा दिलाया जा रहा है?

कांग्रेस ने गंगाजल उठाया ऐसी जानकारी नहीं है. कांग्रेस एक बहुत ही व्यापक शब्द है. किसी व्यक्ति ने कभी कोई बयान दिया हो तो मैं नहीं कह सकता. लेकिन ऐसे बयान की की आवश्यकता नहीं है.

हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष जब यह घोषणा कर चुके हैं कि सत्ता में आने के दस दिन के भीतर कर्ज माफी कर दी जायेगी, साथ ही वे हर भाषण में कहते हैं कि मैं ऐसी घोषणाएं नहीं करतै जो पूरी नहीं की जा सकतीं, तो गंगाजल उठाने की जरूरत ही नहीं रह जाती है.

कर्ज माफी पंजाब में लागू हो गई, कर्नाटक में भी लागू हुई और छत्तीसगढ़ में लागू होगी.

गंगाजल उठाकर कर्जमाफी का वादा करने वालों में आरपीएन सिंह जैसे बड़े नेता शामिल थे. क्या आप उनकी बात से इत्तेफाक नहीं रखते?

हर आदमी की अपनी शैली होती है काम की. पर मैं नहीं समझता कि गंगाजल उठाने की आवश्यकता है या कसम खाने की जरूरत है.

अगर आपमें निष्ठा है और सच्चे मन से किसी बात को उठाकर आगे ले जा रहे हैं तो लोग आप पर विश्वास रखेंगे. यही कारण है कि आज प्रदेश का किसान धान नहीं बेच रहा और इंतजार में है कि कांग्रेस की सरकार आयेगी और बढ़े हुए दामों पर उसकी फसल खरीदेगी.

अगर वे बेच रहे होते तो लगता कि कांग्रेस राजनीतिक पार्टी है, पार्टी वाले बोलते रहते हैं. ये भी बोल रहे हैं, अपना धान बेच दो. लेकिन, यथार्थ यह है कि आज जो बहुत दबाव में है वो ही धान को बेचने ले जा रहा है और वो भी इस विश्वास के साथ ले जा रहा है कि कांग्रेस आएगी तो हमारा कर्ज निपटारा होगा और दाम भी हमको बढ़कर मिलेगा, अभी बेचो फिर सब ठीक होगा.

(दीपक गोस्वामी स्वतंत्र पत्रकार हैं.)