भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर के ख़िलाफ़ प्राथमिकी ग़लती से रद्द कर दी: उच्चतम न्यायालय

धर्मशाला क्रिकेट स्टेडियम के निर्माण के लिए पट्टे पर ज़मीन देने में कथित अनियमितताओं और एक सरकारी ज़मीन के कथित अतिक्रमण के दो मामलों में शीर्ष अदालत ने भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर, उनके पिता तथा हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के ख़िलाफ़ दर्ज दो प्राथमिकियां रद्द कर दी थीं.

(फोटो: पीटीआई)

धर्मशाला क्रिकेट स्टेडियम के निर्माण के लिए पट्टे पर ज़मीन देने में कथित अनियमितताओं और एक सरकारी ज़मीन के कथित अतिक्रमण के दो मामलों में शीर्ष अदालत ने भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर, उनके पिता तथा हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के ख़िलाफ़ दर्ज दो प्राथमिकियां रद्द कर दी थीं.

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(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: धर्मशाला क्रिकेट स्टेडियम के निर्माण के लिए ज़मीन के कथित अतिक्रमण से संबंधित मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर और अन्य के ख़िलाफ़ एक प्राथमिकी ‘गलती’ से रद्द कर दी थी.

जस्टिस एके सीकरी और जस्टिस एसए नजीर की पीठ को हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की ओर से पक्ष रख रहे वकील ने कहा कि पहले शीर्ष अदालत के दो नवंबर के आदेश को वापस लिया जाना चाहिए. हिमाचल प्रदेश क्रिकेट संघ (एचपीसीए) द्वारा दायर मामले में सिंह को वादी बनाया गया है.

शीर्ष अदालत ने दो नवंबर को भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर, उनके पिता तथा हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल और अन्य के ख़िलाफ़ दो अलग-अलग मामलों में दर्ज दो प्राथमिकी रद्द कर दी थीं.

एक मामला धर्मशाला क्रिकेट स्टेडियम के निर्माण के लिए पट्टे पर ज़मीन देने में कथित अनियमितताओं से जुड़ा है और दूसरा मामला सरकारी ज़मीन के कथित अतिक्रमण से संबंधित है.

ठाकुर और अन्य की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता पीएस पटवालिया ने पीठ को बताया था कि आदेश को वापस लेने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि मुख्य प्राथमिकी पहले ही अदालत ने रद्द कर दी थी.

सिंह के वकील ने कहा कि दो नवंबर के आदेश को रद्द किया जाना चाहिए क्योंकि शीर्ष अदालत ने ठाकुर और अन्य के ख़िलाफ़ ज़मीन के कथित अतिक्रमण से संबंधित मामले के सिलसिले में दर्ज एक अलग प्राथमिकी को गलती से रद्द कर दिया था.

उन्होंने कहा कि दूसरी प्राथमिकी में उन्होंने कोई दलील नहीं दी, जिसे अदालत ने गलती से रद्द कर दिया था.

हालांकि, पटवालिया ने अदालत को बताया कि प्राथमिकी में कुछ भी नहीं बचा है क्योंकि अदालत ने दो नवंबर के फैसले में तथ्यों की सराहना की है.

उन्होंने दावा किया कि एफआईआर में आरोप यह था कि कर्मचारियों के क्वार्टरों को अवैध रूप से ध्वस्त कर दिया गया था, लेकिन तथ्य यह था कि शिक्षा सचिव ने भूमि हस्तांतरण के लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) दिया था और इसी तरह राज्य शिक्षा मंत्री की मंज़ूरी थी.

पटवालिया के दलीलों के बाद वीरभद्र सिंह के वकील ने अदालत को बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें सुने बिना प्राथमिकी रद्द कर दी थी.

अदालत ने सिंह के वकील से कहा, ‘आप कह रहे हैं कि आप बहस नहीं कर सकते हैं. यदि आप बहस नहीं कर सकते हैं, तो बहस मत करो. हम आदेश पारित करेंगे. हम कह रहे हैं कि यह एक गलती थी.’

सिंह के वकील ने इस मामले पर बहस करने के लिए कुछ समय मांगा, तो बेंच ने इस मामले को अगली सुनवाई 29 नवंबर को तय की है.

इससे पहले, सिंह ने अपने वकील डीके ठाकुर के माध्यम से धर्मशाला क्रिकेट स्टेडियम के निर्माण के संबंध में ठाकुर और अन्य के ख़िलाफ़ 2013 में दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग में शीर्ष अदालत में विरोध किया था.

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने 25 अप्रैल 2014 को उनके ख़िलाफ़ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने से इनकार कर दिया था, जिसे अनुराग ठाकुर, धूमल और एचपीसीए ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. यह प्राथमिकी उस समय की वीरभद्र सिंह की सरकार के दौरान दर्ज की गई थी.

यह एफआईआर हिमाचल प्रदेश में दिसंबर 2012 में कांग्रेस सरकार के सत्ता में आने के बाद विजिलेंस ब्यूरो के धर्मशाला कार्यालय की ओर से एक अगस्त 2013 को दर्ज कराई गई थी.

द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार, बीते 16 अप्रैल को हिमाचल प्रदेश की भाजपा सरकार ने निर्णय लिया कि हिमाचल प्रदेश क्रिकेट संघ से जुड़े इस मामले और राजनीतिक रूप में प्रेरित अन्य मामलों को ख़त्म किया जाएगा.

हमीरपुर के भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर, जो तब एचपीसीए के अध्यक्ष थे ने पहले सुप्रीम कोर्ट में दावा किया था कि मामला वास्तव में एक नागरिक विवाद से संबंधित था लेकिन तत्कालीन मुख्यमंत्री की अगुआई वाली सरकार ने उसे आपराधिक मामला राजनीतिक मंशा के तहत बना दिया.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)