ग्राउंड रिपोर्ट: मध्य प्रदेश के अमरकंटक से निकलने वाली नर्मदा नदी तब से ही चुनावी सुर्ख़ियों में है जब से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ‘नर्मदा सेवा यात्रा’ लेकर निकले थे. नर्मदा की सफाई, संरक्षण और नदी किनारे पौधारोपण व अवैध रेत खनन पर रोकथाम को लेकर उन्होंने अनगिनत घोषणाएं कीं, लेकिन ज़मीनी हक़ीक़त कुछ और ही नज़र आती है.
‘आज का दिन मेरे लिए सौभाग्य का दिन है. आज ‘नर्मदा सेवा यात्रा’ प्रारम्भ हुई है. यह यात्रा मां नर्मदा का क़र्ज़ उतारने का विनम्र प्रयास है.’
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 11 दिसबंर 2016 को यह ट्वीट किया था. उस दिन उन्होंने प्रदेश में ‘नर्मदा सेवा यात्रा’ की शुरुआत नर्मदा के उद्मगम स्थल अनूपपुर जिले के अमरकंटक से की थी. 150 दिन चली यह यात्रा 15 मई 2017 को अमरकंटक में ही समाप्त हुई थी.
इस यात्रा का उद्देश्य था, नर्मदा का संरक्षण, संरक्षण के प्रति लोगों में जागरूकता का प्रसार, नर्मदा मार्ग में पौधारोपण, उसके परिस्थितिकीय तंत्र को संरक्षित और संवर्धित करना, इसे अतिक्रमण, प्रदूषण मुक्त कर साफ स्वच्छ बनाना, नर्मदा घाटों को विकसित करना और सफाई पर जोर देना आदि.
शिवराज सिंह ने इस दौरान यह भी दावा किया कि नर्मदा किनारे 6 करोड़ से अधिक पौधे सरकारी संरक्षण में रोपे गये हैं. रेत खनन को लेकर सख्ती दिखाने की भी उन्होंने बात की. लेकिन, उनके इन सब दावों पर सवाल खड़े होते रहे हैं.
नर्मदा से रेत खनन बदस्तूर जारी है. यही कारण था कि अप्रैल 2018 में कम्प्यूटर बाबा ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए दावा किया कि 6 करोड़ से अधिक पौधे लगाने की बात झूठी है और नर्मदा में रेत खनन शिवराज सराकर रोक नहीं पा रही है.
इसे लेकर उन्होंने मुहिम चलाने की बात की तो शिवराज सिंह चौहान ने उन्हें अपनी सरकार में राज्य मंत्री का दर्जा दे दिया और यह बात वहीं दब गई. लेकिन, आए दिन नर्मदा से अवैध रेत खनन और छापेमारी की खबरें आती ही रहती हैं.
नर्मदा को कई बार विपक्ष ने भी मुद्दा बनाया. प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह स्वयं नर्मदा परिक्रमा पर निकले.
देखा जाये तो बीते दो सालों से नर्मदा मध्य प्रदेश में सुर्खियों में रही है. लेकिन सवाल उठता है कि क्या सुर्खियों में रही नर्मदा की स्थिति में कोई सुधार हुआ है? क्या पक्ष-विपक्ष की नर्मदा यात्रा, साधु-संतों की नर्मदा के प्रति कथित चिंता, शिवराज की नई रेत खनन नीति ने नर्मदा को नया जीवन दिया है?
क्या शिवराज के लगाए 6 करोड़ से अधिक पेड़-पौधे नर्मदा तटों की सूरत बदल पाये हैं? क्या नर्मदा अब साफ है, प्रदूषण मुक्त है? और क्यों वह वर्तमान चुनावी चर्चा से विलुप्त है?
नर्मदा के हालातों का जायजा लेने के लिए हमने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के विधानसभा क्षेत्र बुदनी के समीप के इलाकों को ही नर्मदा की वर्तमान स्थिति पता करने का मानक बनाया. इसका कारण यह रहा कि जिन शिवराज ने प्रदेश भर में नर्मदा के पुनरुत्थान का बीड़ा उठाया था, क्या वे अपने विधानसभा क्षेत्र से लगे इलाकों में ही नर्मदा नदी की समस्याओं का समाधान कर पाये हैं?
होशंगाबाद जिले में सेठानी घाट के नाम से प्रसिद्ध नर्मदा नदी का एक घाट है. इस घाट के उस पार से ही सीहोर जिला लग जाता है. शिवराज 5 बार सीहोर से सांसद रहे हैं. शिवराज का विधानसभा क्षेत्र बुदनी भी सीहोर में ही आता है.
घाट पर मौजूद लोग बताते हैं कि घाट के ठीक उस पार ही शिवराज सिंह चौहान का गृह गांव जैत पड़ता है. बस नदी पार करनी है और आप शिवराज के गढ़ में.
सड़क मार्ग से भी होशंगाबाद और बुदनी महज 5 से 6 किलोमीटर की दूरी पर ही पड़ते हैं. वहीं, होशंगाबाद से मध्य प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष सीतासरण शर्मा विधायक हैं. इसलिए नर्मदा के हालात और शिवराज के दावों को जांचने के लिए नर्मदा का यह इलाका एकदम मुफीद था.
सेठानी घाट पर पिछले 13 सालों से पूजन कार्य कराने वाले पंडित जितेंद्र अवस्थी बताते हैं, ‘जब शिवराज सिंह की परिक्रमा यात्रा निकली थी तब बताया गया था कि 35 हजार पौधे इस इलाके में लगाए गए हैं. उनमें से पांच किलोमीटर के दायरे में एक भी पेड़ कोई बता दे कि ये लगा है. सरकार के दावे में कितनी सच्चाई है ये सब जानते हैं.’
वे बताते हैं, ‘हाल ये है कि नर्मदा की सफाई भी स्वयं जनता कर रही है. सरकार कुछ नहीं कर रही है. रात 8 बजे कुछ लोग आएंगे. वे लंबे-लंबे बांसों में लगी जालियों से साफ-सफाई करेंगे. उनको कोई पैसा नहीं मिलता है. होशंगाबाद के ही लड़के हैं. अपना कामकाज खत्म करके रात को चले आते हैं. घंटे-दो घंटे मेहनत करते हैं. सारा नदी का कचरा जाली से निकालकर एक तरफ पटक जाते हैं. एकाध संस्था भी है जो रविवार को आकर दो-चार घंटे साफ-सफाई करती है. बाकी सरकार कुछ नहीं करती. घाट के विकास में कोई काम नहीं किया, जैसा पहले था वैसा ही आज है. बस स्नान करने वालों की सुरक्षा के लिए खंबे और जंजीर लगाई गई हैं. हां, ये जरूर है कि सरकारी विज्ञापनों से जनता जागरूक हुई है.’
घाट पर ही मौजूद 63 वर्षीय चंपालाल मालवीय बताते हैं, ‘पैसा बनाने और अपने प्रचार के लिए नर्मदा यात्रा निकाली थी, वरना नर्मदा सुखाने का पूरा प्लान है इनका. सौ पेड़ लगाए, दस हजार लिख दिए, उन सौ में से भी एक भी अब जीवित नहीं है.’
पेशे से मजदूर भागीरथ चौरसिया हमें नदी घाट की एक सीढ़ी पर बैठे मिलते हैं. बातचीत में वे कहते हैं, ‘नर्मदा के लिए शिवराज ने बस बड़ी-बड़ी बातें कीं. घाट पहले से ज्यादा घटिया हो गये हैं, रेत खनन ने नदी को खत्म कर दिया है.’
वे नदी तल की ओर इशारा करते हुए कहते हैं, ‘पहले रेत ऊपर तक आ जाती थी. घाट पर आधा पानी रेत से भरा होता था. बीच में जाओगे तो आधा हिस्सा रेत में नजर आता था. आज आपको कहीं रेत नहीं दिखेगी. रही बात पेड़-पौधों की तो यहां से अमरकंटक तक नर्मदा क्षेत्र में आपको कहीं पेड़-पैधे नहीं दिखेंगे. जबकि लाखों करोड़ों रुपये हर साल वृक्षारोपण के नाम से बर्बाद होते है. जो थोड़े-बहुत पेड़ उस पार दिख भी रहे हैं, वो प्रकृति के हैं, इनके लगाए नहीं.’
स्थानीय युवक विकास अग्रवाल भी कुछ ऐसा ही कहते हैं. उनका कहना है, ‘सब गबन कर दिया पौधों के नाम पर.’
उनके साथ मौजूद संदीप बिसोपिया का कहना है, ‘अब तो उस तरफ पहले से कम हरियाली दिखती है. घाट पर आकर्षण के लिए झाड़-फानूस जैसे लाइट, स्नान के लिए जंजीर और खंबे वगैरह लगा दिए गए हैं ताकि यह दिखाकर नर्मदा के गंभीर मुद्दों से जनता का ध्यान हटाया जा सके. जो एक नदी की वास्तविक जान होती है वो खींच ली गई है और इसका कारण है रेत खनन.’
वे आगे कहते हैं, ‘यहां प्रकृति के चक्र के साथ खिलवाड़ हुआ है. नदी में से खोद-खोदकर रेत निकाली जा रही है. रेत नदी में पानी को बहने नहीं देती और सोख लेती है और एक नदी को इतनी क्षमतावान बनाती है कि वह उसमें डाले जाने वाले कचरे को दूर धकेल सके. लेकिन रेत खनन ने नदी को छलनी करके उसकी अपना अस्तित्व बचाये रखने की वो क्षमता छीन ली है जिससे प्रदूषण बढ़ रहा है.’
विकास कहते हैं, ‘यहां पता नहीं चलेगा, यहां तो नर्मदा अच्छी ही दिखेगी. लेकिन नर्मदा ब्रिज से देखते हैं तो याद आता है कि पहले बस और ट्रेन में बैठकर वहां से गुजरते थे तो गर्मी के मौसम में भी नदीं ऊपर तक चढ़ी रहती थी. लेकिन पिछले आठ-दस सालों से देखा जा रहा है कि बारिश के बाद भी जलस्तर नीचे ही रहता है. अभी सर्दी है, जाकर देख लें, सूखा तल दिख रहा होगा.
हमने नर्मदा पुल पर जाकर विकास की बात की पुष्टि भी की और वह सही भी जान पड़ी. नर्मदा पुल के पास घुटनों तक भी पानी नहीं था. इसलिए विकास कहते हैं कि घाट किनारे लाइट या फव्वारे लगाना मृत्यु के द्वार पर खड़े शरीर को ढकने के लिए बस चमकीले कपड़े हैं.
बहरहाल संदीप सफाई की ओर ध्यान आकर्षित कराते हुए कहते हैं, ‘जनता नाम से घाट पर नहीं आयेगी. हम तो स्थानीय हैं, चले आते हैं लेकिन यहां जब गंदगी बढ़ जायेगी तो जनता क्यों आयेगी? आपने नदी के मुख्य बेस को साफ नहीं किया, सही नहीं रखा, कहते हैं न कि गुलाब जामुन सही नहीं बनाए, बस उसके ऊपर चांदी की परत अच्छी लगा दी.’
सफाई के मामले में भागीरथ एक उदाहरण देते हैं, ‘बरसात के समय नदी ऊपर चढ़ जाती है तो घाटों की सीढ़ियों और ऊपर के चबूतरे तक मिट्टी ही मिट्टी आ जाती है. बरसात बाद नदी उतरती है तो घाटों की सफाई तक नहीं होती. मिट्टी वैसे ही जमी रहती है. जनवरी में नर्मदा जयंती होती है, तब यहां झाड़ू लगती है. वरना सालभर नदी या घाट की कोई सुध नहीं लेता. आज भी सीवेज का गंजा नाला नर्मदा से जुड़ा है. कहा था कि ये नाले अलग बनेंगे, लेकिन अब तक बनते नहीं दिखते.’
यहां शिवराज के नर्मदा की साफ-सफाई के दावों की पोल खुलती प्रतीत होती है.
भागीरथ साथ ही यह भी कहते हैं कि जो लाइट या खंबे और जंजीरें नर्मदा किनारे लगी हैं, वह भी निर्दलीय चुनाव जीते पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष डॉक्टर पांडे के प्रयासों से संभव हुआ है. वही केंद्र से इन विकास कार्यों के लिए पैसा पास कराकर लाये थे. बाद में वे अध्यक्ष नहीं रहे और उस पैसे से ये काम हुआ लेकिन श्रेय मुख्यमंत्री या भाजपा ने ले लिया.
शिवराज ने अपनी यात्रा के दौरान नर्मदा तटों को नशामुक्त करने की भी घोषणा की थी, लेकिन घाट पर मौजूद स्थानीय लोग बताते हैं कि घोषणा के मुताबिक यहां से दुकानें तो हटा दी गईं लेकिन आज नर्मदा शराब तस्करी का जरिया बन गई है. उस पार से इस पार नावों के सहारे शराब ढोयी जाती है.
70 वर्षीय बालकृष्ण साहू नर्मदा की बदहाली पर आक्रोशित हो उठते हैं, ‘नर्मदा जी को सुखा रहे हैं पूरी तरह. जैसे और जगह नदियां सूख गईं न, वैसे ही. जैसे–जैसे रेत की चोरी हो रही है, नर्मदा जी सूख रही हैं. भाजपा के लोगों ने पूरी रेत ढो डाली. उनके ट्रक, उनके डंपर, सब उनका ही है.’
नर्मदा घाट पर मंदिर के एक पुजारी नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं, ‘यहां से अमरकंटक तक, पूरे इलाके में जितने भी रेत ढो रहे हैं न सब भाजपा के आदमी हैं. नर्मदा में हर जगह खोद-खोदकर गड्ढा कर दिया है इन्होंने.’
उनके साथ मौजूद एक अन्य व्यक्ति कहते हैं, ‘दो ही पक्ष के आदमी हैं, भाजपा और कांग्रेस. सब मिली जुली सरकार है. चोर तो सभी हैं और आपस में जाकर मिल लेते हैं.’
बहरहाल, भागीरथ कहते हैं, ‘नर्मदा के मामले में भ्रष्टाचार के अलावा 15 सालों में कुछ देखने नहीं मिला. कांग्रेस के समय उतना नहीं था. उस समय समस्या ये थी कि न तो सड़क थीं और न ही बिजली.’
रेत खनन के लिए शिवराज पर अंगुली उठाने वाले भी यहां कम नहीं मिलते. लेकिन वे अपनी बात कहने से डरते भी हैं.
होशंगाबाद में बुक स्टोर चलाने वाले एक रिटायर्ड पुलिसकर्मी नाम नहीं बताते लेकिन कहते हैं, ‘शिवराज ने नर्मदा को मार डाला. लेकिन, दूसरे अच्छे काम उसने किए हैं. बुजुर्ग तीर्थ दर्शन योजना, लाडली लक्ष्मी योजना, गरीबों को सस्ता अनाज और मकान. इन योजनाओं की भरपाई नर्मदा से की है.’
वहीं, एक अन्य व्यक्ति नाम न बताने की शर्त पर मुख्यमंत्री के गांव जैत पर आरोप लगाते हुए कहते हैं, ‘नदी के उस पार से सीएम साहब का गांव पास ही है. वहां से रेत उस पार तक लाई जाती है, फिर नाव से इस पार उतारी जाती है. यहां से रेत फिर ट्रॉली से आगे ले जाकर डाली जाती है. सीएम साहब का गांव पूरी रेत चोरी में लिप्त है. उन्होंने ही यहां नर्मदा की रेत खोद डाली है.’
उनका कहना था कि विधानसभा अध्यक्ष सीतासरण शर्मा के परिजन भी रेत खनन का काम करते हैं.
बहरहाल, पूरे होशंगाबाद में नर्मदा को लेकर जिससे भी बात करते हैं वह उसकी बदहली और रेत खनन पर सरकार के प्रयासों से नाराज ही नजर आता है और खनन के लिए शिवराज सिंह को सीधे तौर पर दोषी ठहराता है.
होशंगाबाद के प्रसिद्ध सात रास्ता मार्ग पर हमारी कुछ व्यवसायियों से चुनावी चर्चा हुई तो वे भी नर्मदा के मुद्दे पर शिवराज, सरकार और भाजपा पर फूट पड़े. उन्होंने सीधा नारा दिया, ‘नर्मदा बचाओ, कांग्रेस लाओ.’
किसी ने अपना नाम तो नहीं बताया लेकिन कहा कि अगर पौधे लगाने वाली बात सही होती तो कम्प्यूटर बाबा के विरोध के बाद उन्हें राज्यमंत्री नहीं बनाया जाता. उनका कहना था कि नर्मदा कोई मुद्दा ही नहीं होता. यह मुद्दा जनता को देने वाले भाजपा और शिवराज खुद ही हैं. उन्होंने बढ़-चढ़कर वादे किए और नर्मदा के हालात जनता की नजरों में आ गये.
वहीं, इसी क्षेत्र में एक और घाट है. वह होशंगाबाद से बुदनी जाते वक्त बुदनी की सीमा पर ही पड़ता है. नाम है, खर्रा घाट. इसका रास्ता बुदनी के बेरखेड़ी गांव से जाता है. यहीं वो नर्मदा ब्रिज बना है जिसका ऊपर जिक्र किया गया था. यह केवल नाम का घाट है. यहां न तो तट बने हैं और न हीं नहाने के लिए कोई सुविधा.
इस घाट के पास बने मंदिर और आश्रम के महंत परमानंद गिरी कहते हैं, ‘लोग यहां स्नान करने के लिए इसलिए आते हैं कि यहां नदी फैली हुई है, गहरी नहीं है. आदमी के डूबने का डर नहीं रहता है और आसानी से स्नान कर सकते हैं. वादा किया था कि यहां के सौंदर्यीकरण और विकास पर काम होगा. वो अब तक नहीं हुआ. घाट किनारे पोल टूटे हैं, अभी तक नहीं बने हैं. नदी किनारे गंदगी देखो, बस यही मिलेगी.’
खर्रा घाट पर दूर-दूर तक गंदगी के ढेर हैं. यहां न तो कोई पेड़-पौधा लगा दिखता है और न ही पहुंचने का कोई रास्ता. वहां दुकान चलाने वाले दुकानदार बताते हैं कि कभी यहां तक पहुंचने के लिए सड़क बनी तो थी लेकिन अब वो भी उखड़ गई है.
बहरहाल, इस तरह शिवराज के ही इलाके में नर्मदा के यह हाल बताते हैं कि जब यहां ऐसे हालात हैं तो दूर-दराज प्रदेश में नर्मदा की क्या स्थिति होगी?
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)