सुनवाई के दौरान बिहार सरकार ने शीर्ष अदालत से मांग की कि मामला सीबीआई को न देते हुए उसे एक मौका और मिलना चाहिए, जिसे ठुकराते हुए अदालत ने कहा कि सरकार ने अपना काम ठीक से नहीं किया.
नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को बिहार के 16 आश्रय गृहों में रहने वाले बच्चों के शारीरिक और यौन शोषण के आरोपों की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो को सौंप दी.
जस्टिस मदन बी लोकुर, जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस दीपक गुप्ता की पीठ ने इन मामलों की जांच सीबीआई को नहीं सौंपने का राज्य सरकार का अनुरोध ठुकरा दिया. बिहार पुलिस इन मामलों की जांच कर रही थी.
शीर्ष अदालत ने कहा कि टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टीआईएसएस-टिस) की रिपोर्ट में राज्य के 17 आश्रय गृहों के बारे में गंभीर चिंता व्यक्त की गयी थी. इसलिए केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को इनकी जांच करनी ही चाहिए.
इनमें से एक मुजफ्फरपुर आश्रयगृह में लड़कियों का कथित रूप से बलात्कार और यौन शोषण कांड की जांच ब्यूरो पहले ही कर रहा है.
एनडीटीवी की खबर के मुताबिक मामले की सुनवाई के दौरान बिहार सरकार ने कहा कि इस बारे में आज आदेश जारी मत कीजिये, हमें एक मौका दीजिए. हमें एक हफ्ते का वक्त दिया जाए. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बिहार सरकार ने अपनी डयूटी सही तरीके से नहीं निभाई, इसलिए मामले की जांच सीबीआई को देने की नौबत आई है.
इस बीच, सीबीआई ने पीठ से कहा कि सिद्धांत रूप में वह जांच का काम अपने हाथ में लेने के लिये तैयार है. जांच ब्यूरो ने न्यायालय को बताया कि मुजफ्फरनगर मामले में सात दिसंबर तक आरोप पत्र दाखिल किया जा सकता है.
शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि बिहार में आश्रय गृहों की जांच कर रहे जांच ब्यूरो के किसी भी अधिकारी का उसकी पूर्व अनुमति के बगैर तबादला नहीं किया जाये.
सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को 31 जनवरी तक स्टेट्स रिपोर्ट देने को कहा है, साथ ही बिहार सरकार को शेल्टर होम की जांच करने वाली सीबीआई टीम को सहायता मुहैया कराने के निर्देश दिए.
इससे पहले शीर्ष अदालत ने मंगलवार को ही बिहार के आश्रय गृहों में बच्चों के शारीरिक और यौन शोषण के आरोपों के बावजूद उचित कार्रवाई नहीं करने पर राज्य सरकार के आचरण को ‘बहुत ही शर्मनाक’ और ‘अमानवीय’ करार दिया था.
न्यायालय ने कहा था कि इन मामलों की जांच भी सीबीआई से कराने की आवश्यकता है.
न्यायालय ने काफी तल्ख शब्दों में कहा था कि ऐसे अपराध करने वालों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने के मामले में सरकार का रवैया ‘बहुत ही नरम’ और ‘पक्षपातपूर्ण’ रहा है. न्यायालय ने राज्य सरकार से सवाल किया था कि क्या ये बच्चे इस देश के नागरिक नहीं हैं?
शीर्ष अदालत ने बिहार सरकार के वकील से जानना चाहा था कि आश्रय गृहों में बच्चों के साथ अप्राकृतिक अपराध के आरोपों के बावजूद ऐसे मामलों में भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत प्राथमिकी दर्ज क्यों नहीं की गयी?
हालांकि, बिहार सरकार के वकील ने न्यायालय को आश्वासन दिया था कि सरकार इस मामले में सभी उचित कदम उठायेगी और अपनी सभी गलतियों को सुधारेगी. न्यायालय का कड़ा रुख देखते हुये राज्य सरकार के वकील ने कहा था कि वह सुनिश्चित करेंगे कि दर्ज प्राथमिकी में धारा 377 भी जोड़ी जाये.
याचिकाकर्ता फौजिया शकील की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता शेखर नफडे ने दावा किया था कि राज्य सरकार इन मामलों में ‘नरम’ रुख अपना रही है और इन मामलों में कम गंभीर अपराध के तहत प्राथमिकी दर्ज की गयी हैं.
नफडे ने टीआईएसएस की रिपोर्ट का जिक्र करते हुये कहा था कि आश्रय गृहों में कई बच्चों के साथ दुराचार किया गया है और इनमें भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत मामला बनता है.
टीआईएसएस की रिपोर्ट के आधार पर मुजफ्फरपुर आश्रय गृह कांड में 31 मई को 11 व्यक्तियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गयी थी. बाद में यह मामला सीबीआई को सौंप दिया गया. इस मामले में अब तक कम से कम 17 व्यक्ति गिरफ्तार किये जा चुके हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)