राजस्थान: क्या वसुंधरा सरकार 44 लाख युवाओं को नौकरी देने का झूठा दावा कर रही है?

वसुंधरा सरकार कौशल विकास, मुद्रा योजना और सरकारी नौकरी के ज़रिये कुल 44 लाख युवाओं को नौकरी देने का दावा कर रही है, लेकिन इन लोगों की जानकारी उसके पास नहीं है. राजस्थान सरकार के रोज़गार संबंधी दावों पर कैग भी सवाल उठा चुका है.

राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे. (फोटो: पीटीआई)

विशेष रिपोर्ट: वसुंधरा सरकार कौशल विकास, मुद्रा योजना और सरकारी नौकरी के ज़रिये कुल 44 लाख युवाओं को नौकरी देने का दावा कर रही है, लेकिन इन लोगों की जानकारी उसके पास नहीं है. राजस्थान सरकार के रोज़गार संबंधी दावों पर कैग भी सवाल उठा चुका है.

राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे. (फोटो: पीटीआई)
राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे. (फोटो: पीटीआई)

राजस्थान में भाजपा को फिर से सत्ता में लाने की जद्दोजहद में जुटीं वसुंधरा राजे पूरे प्रदेश में तूफानी प्रचार कर रही हैं. इस फेहरिस्त में मुख्यमंत्री बीते 24 नवंबर को जोधपुर ज़िले के भोपालगढ़ पहुंचीं.

भाषण में अपनी सरकार की उपलब्धियों का गुणगान करने के बाद वसुंधरा जब सभा में आए लोगों से मिलने मंच से नीचे उतरीं तो एक महिला ने उनसे ऐसी बात कही कि वे निरुत्तर हो गईं.

महिला ने मुख्यमंत्री से कहा- ‘टाबर तो घरां बेरोजगार बैठ्या, काईं मुंह से वोट मांगबा आई हो (बच्चे तो घर पर बेरोज़गार बैठे हैं. आप किस मुंह से वोट मांगने आई हो).’ इस तंज़ को सुनकर वसुंधरा के क़दम एक पल के लिए ठिठक गए. हालांकि वे महिला को जवाब दिए बिना ही हाथ हिलाते हुए आगे बढ़ गईं.

वसुंधरा ने महिला से तो पीछा छुड़ा लिया, लेकिन चुनावी मौसम में बेरोज़गारी का मुद्दा उनका पीछा नहीं छोड़ रहा. इस वाकये का वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है.

प्रदेश कांग्रेस के आला नेता अपने भाषणों में इस घटना का ज़िक्र कर भाजपा को घेर रहे हैं. वहीं, मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और पार्टी के दूसरे नेताओं को इस मामले में जवाब देते नहीं बन रहा.

वैसे तो बेरोज़गारी का मुद्दा हर चुनाव में उठता है, लेकिन राजस्थान में भाजपा इस पर घिरी हुई इसलिए नज़र आ रही है, क्योंकि 2013 के विधानसभा चुनाव के समय पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में 15 लाख युवाओं को रोज़गार देने का वादा किया था. हालांकि वसुंधरा राजे ने ‘सुराज संकल्प यात्रा’ के दौरान ‘रोज़गार’ की बजाय बार-बार ‘नौकरी’ शब्द का प्रयोग किया.

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा का यह दांव कारगर रहा. युवाओं ने पार्टी के पक्ष में जमकर मतदान किया. वसुंधरा राजे 200 में से 163 सीटें जीतकर सत्ता में लौटीं. युवाओं को उम्मीद थी कि भाजपा की तरह उनके भी ‘अच्छे दिन’ आएंगे और उन्हें नौकरी मिलेगी.

सरकार के अलग-अलग विभागों में नौकरियों की भर्तियां निकलीं भी, लेकिन इनमें से ज़्यादातर कानूनी दांव-पेंचों में उलझ गईं. इस बीच 12 फरवरी को मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने मौजूदा कार्यकाल के आख़िरी बजट में यह आंकड़ा देकर सबको चौंका दिया कि उनकी सरकार अब तक 15 लाख से ज़्यादा रोज़गार दे चुकी है.

हालांकि उन्होंने यह ब्योरा नहीं दिया कि किन लोगों को कहां पर रोज़गार मिला है. असल में सरकार के पास सरकारी नौकरियों के अलावा रोज़गार मिलने वाले लोगों का कोई आंकड़ा नहीं है. जब सरकार के पास रोज़गार प्राप्त लोगों का विवरण ही नहीं है तो मुख्यमंत्री ने विधानसभा में 15 लाख का आंकड़ा किस आधार पर दिया?

भाजपा इस सवाल का जवाब देने से बचती तो समझ में आता, लेकिन पार्टी के नेताओं की ओर से रोजगार के अलग-अलग आंकड़े सामने आने के बाद मामला और उलझ गया.

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने 11 सितंबर को जयपुर के बिड़ला ऑडिटोरियम में शक्ति केंद्रों के प्रमुखों को संबोधित करते हुए दावा किया कि राजस्थान सरकार अब तक 26 लाख लोगों को रोज़गार दे चुकी है.

शाह का कहा तभी सही हो सकता है जब सरकार ने 12 फरवरी से 11 सितंबर की अवधि में 11 लाख लोगों को रोज़गार दिया हो.

सूबे के भाजपा नेता अमित शाह की ओर से दिए गए आंकड़े को सही साबित करते उससे पहले ही पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष मदन लाल सैनी ने नई संख्या बता दी. उन्होंने कहा कि राजस्थान की भाजपा सरकार अब तक 35 लाख लोगों को रोज़गार दे चुकी है.

रोज़गार के आंकड़ों का यह उछाल यही नहीं रुका. वसुंधरा राजे ने 9 नवंबर को एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा कि भाजपा ने 15 लाख नौकरियों का वादा किया था जबकि 44 लाख से अधिक लोगों को नौकरियां दीं. मुख्यमंत्री के इस दावे को राजस्थान भाजपा के अधिकृत ट्विटर हैंडल से ट्वीट भी किया गया.

महज नौ महीने में रोज़गार का आंकड़ा 15 लाख से 44 लाख कैसे हो गया? इस गणित को समझाने के लिए प्रदेश भाजपा का कोई नेता तैयार नहीं है.

हालांकि मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने घोषणा-पत्र जारी करते हुए मीडिया को 44 लाख नौकरियों का गणित समझाया. उन्होंने कहा कि सरकार ने 2.25 लाख सरकारी और कौशल विकास व मुद्रा योजना के ज़रिये 44 लाख नौकरियां दीं.

मुख्यमंत्री के दावों की पोल नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट खोल देती है.

रिपोर्ट में राजस्थान कौशल एवं आजीविका विकास निगम (आरएसएलडीसी) की ओर से चलाए जा रहे कौशल विकास कार्यक्रमों के आंकड़ों को संदेहास्पद बताया गया है.

आरएसएलडीसी ने नियोजन के जो आंकड़े जारी किए उनसे में से महज़ 37.45 प्रतिशत ही सही मिले.

कैग की रिपोर्ट में आरएसएलडीसी की ओर से चलाए जा रहे कौशल विकास कार्यक्रमों में भ्रष्टाचार का भी खुलासा हुआ है.

कैग की की टीम ने जयपुर, अलवर व कोटा में संचालित 18 कौशल विकास केंद्रों पर जांच की तो सामने आया कि जो छात्र केंद्र पर आए ही नहीं, उनकी हाज़िरी लगाकर सरकार से करोड़ों रुपये का भुगतान उठाया गया.

नियमानुसार कौशल विकास केंद्रों पर छात्रों की हाज़िरी के लिए न सिर्फ जीपीएस से जुड़ी बायोमेट्रिक मशीन से होना ज़रूरी है, बल्कि इसका आरएसएलडीसी सर्वर पर मैनेजमेंट इंफॉरमेशन सिस्टम (एमआईएस) से ऑनलाइन जुड़ना आवश्यक है, लेकिन कैग की टीम को 11 केंद्रों पर बायोमेट्रिक मशीन तक नहीं मिली. जबकि इन केंद्रों पर रोज़ाना सैकड़ों छात्रों को ट्रेनिंग लेते हुए दिखाया जा रहा था.

मुद्रा योजना में ऋण से लाखों नौकरियां पैदा होने का दावा सरसरी तौर पर देखने से ही हवा-हवाई लगता है. सरकार के अनुसार इस योजना के अंतर्गत प्रदेश में 50 लाख से ज़्यादा लाभार्थी हैं, लेकिन उसके पास इसका कोई आंकड़ा नहीं हैं कि इनमें से कितनों ने काम-धंधा शुरू किया और कितने लोगों को रोज़गार दिया.

चार्टर्ड अकाउटेंट हेमेंद्र चौधरी राजस्थान में मुद्रा योजना से लाखों की संख्या में नौकरियां मिलने के दावे को हास्यास्पद मानते हैं.

वे कहते हैं, ‘सरकारी आंकड़ों के अनुसार मुद्रा योजना के 90 प्रतिशत ऋण शिशु श्रेणी के हैं. यानी 90 प्रतिशत लोगों को महज़ 50 हज़ार रुपये तक का क़र्ज़ मिला है. इतनी कम राशि से कोई भी दूसरे लोगों को नौकरी देने लायक नया उद्यम शुरू कैसे भी संभव नहीं है.’

चौधरी आगे कहते हैं, ‘50 हज़ार रुपये तक का ऋण सिर्फ़ एक दुधारू पशु वाले डेयरी किसान या किसी ठेलेवाले के लिए उपयोगी हो सकता है, लेकिन यह ठोस रोज़गार सृजन के लिए पर्याप्त नहीं है. यदि सरकार इससे लाखों नौकरियां मिलने का दावा कर रही है तो उसे नौकरी मिलने वाले लोगों की सूची सामने रखनी चाहिए. यदि सरकार बिना डिटेल के दावा कर रही है तो इसमें कोई दम नहीं है.’

रोज़गार के संबंध में राजस्थान भाजपा के ट्विटर पेज से शेयर की गई एक पोस्ट.
44 लाख युवाओं को रोज़गार देने के संबंध में राजस्थान भाजपा के ट्विटर पेज से शेयर की गई एक पोस्ट.

मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की ओर से 44 लाख युवाओं को नौकरी देने के दावों को पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बेरोज़गारों के साथ मज़ाक क़रार देते हैं.

वे कहते हैं, ‘इस सरकार ने कितने युवाओं को नौकरी दी है इसका अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि अलवर में बेरोज़गारी से तंग चार लड़कों ने ट्रेन के आगे कूदकर आत्महत्या कर ली.’

गहलोत आगे कहते हैं, ‘फ़र्ज़ी बातें और फ़र्ज़ी दावे करना भाजपा के डीएनए में है. वसुंधरा जी 44 लाख लोगों को नौकरी देने का दावा कर रही हैं तो उनकी लिस्ट सामने क्यों नहीं लातीं. लिस्ट होगी तो सामने आएगी. नई नौकरी देना तो दूर जो लोग मेहनत-मज़दूरी कर अपना परिवार चलाते थे, नोटबंदी ने उनका रोज़गार ज़रूर छीन लिया है.’

अशोक गहलोत की ओर से नौकरी मिलने वाले 44 लाख लोगों को लिस्ट मांगने के सवाल पर भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी कहते हैं, ‘पहले कांग्रेस इस बात का जवाब दे कि 26 हज़ार शिक्षकों को नियुक्ति से वंचित रखने के पीछे उनका क्या एजेंडा है. 26 हज़ार युवाओं को रोज़गार से वंचित रखने के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाने वाली कांग्रेस अब बेरोज़गारी की बात कर रही है.’

गौरतलब है कि अक्टूबर महीने में तृतीय श्रेणी अध्यापकों की नियुक्ति की प्रक्रिया चल रही थी. कांग्रेस ने इसे आचार संहिता का उल्लंघन बताते हुए चुनाव आयोग को पत्र लिखा.
आयोग इस पर कोई कार्रवाई करता इससे पहले ही राजस्थान उच्च न्यायालय ने नियुक्ति प्रक्रिया पर रोक लगा दी.

प्रदेश कांग्रेस की मीडिया चेयरपर्सन डॉ. अर्चना शर्मा के मुताबिक भाजपा चुनाव आयोग को लिखे पत्र की आड़ में अपनी नाकामी छिपा रही है.

शर्मा कहती हैं, ‘हमने पत्र में यह नहीं लिखा कि नौकरियां नहीं दी जाएं. हमने सिर्फ यह लिखा था कि आचार संहिता का उल्लंघन न हो. वैसे भी चुनाव आयोग के एक्शन लेने से पहले ही हाईकोर्ट ने रोक लगा दी. सरकार ने भर्ती में खामियां छोड़ी इसलिए यह कोर्ट में अटक रही है.’

राजस्थान उच्च न्यायालय में इस प्रकार के मामलों की पैरवी करने वाले अधिवक्ता तनवीर अहमद के अनुसार शिक्षकों की नियुक्ति पर रोक तकनीकी कारणों से लगी है.

वे कहते हैं, ‘तृतीय श्रेणी अध्यापक भर्ती परीक्षा पहले से कानूनी पेचीदगियों में उलझी हुई है. अभ्यर्थियों की याचिका पर हाईकोर्ट ने इस पर रोक लगाई है. इससे राजनीति का कोई संंबंध नहीं है.’

राजस्थान बेरोज़गार एकीकृत महासंघ के अध्यक्ष उपेन यादव की मानें तो राजस्थान में एक लाख छह हज़ार सरकारी नौकरियां कानूनी झमेलों में फंसी हुई हैं.

वे कहते हैं, ‘सरकारें भर्ती तो निकाल देती है, लेकिन क़ानूनी अड़चनों पर गौर नहीं करती. पिछली कांग्रेस सरकार की 68 हजार भर्तियां अब तक लंबित हैं और इस सरकार की एक लाख छह हज़ार भर्तियां कोर्ट में फंसी हैं.’

44 लाख नौकरियों के आंकड़े को उपेन यादव बेरोज़गारों के साथ क्रूर मज़ाक बताते हैं. वे कहते हैं, ‘44 लाख नौकरियों का आंकड़ा जुमला है, बेरोज़गारों के साथ इससे बड़ा क्रूर मज़ाक नहीं हो सकता. भाजपा 15 लाख नौकरियां देने, आरटेट ख़त्म कर आरपीएससी से परीक्षा कराने, विद्यार्थी मित्रों को स्थायी करने जैसे बड़े-बड़े वादों के साथ सत्ता में आई जो अब तक अधूरे हैं.’

बीते पांच साल में 44 लाख नौकरियां देने का सरकारी दावा बेरोज़गारी दर की कसौटी पर भी खरा नहीं उतरता. अक्टूबर 2018 में जहां देश में बेरोज़गारी 6.6 प्रतिशत थी वहीं राजस्थान में यह 13.7 प्रतिशत थी. बेरोज़गारी के मामले में राजस्थान देश में चौथे स्थान पर है. पहला स्थान त्रिपुरा, दूसरा जम्मू कश्मीर और तीसरा स्थान हरियाणा का है.

वरिष्ठ पत्रकार नारायण बारेठ के अनुसार बेरोज़गारी की चलते युवाओं का गुस्सा विधानसभा चुनाव में भाजपा को बड़ा नुकसान पहुंचा सकता है. वे कहते हैं, ‘रोज़गार पर सरकार की ओर से दिए जा रहे आंकड़ों और हक़ीक़त में ज़मीन-आसमान का फ़र्क़ है. सच्चाई यह है कि राज्य में बेरोज़गारी बढ़ी है और युवा पीढ़ी निराश है. यदि यह निराशा गुस्से में तब्दील हुई तो भाजपा को बड़ा नुकसान हो सकता है.’

पांच साल में 44 लाख नौकरियां देने का दावा कर रही भाजपा का ताज़ा वादा और रोचक है. पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में सरकार बनने पर अगले पांच साल में 50 लाख युवाओं को रोज़गार देने का वादा किया है. पार्टी ने हर साल 30 हज़ार सरकारी नौकरियां देने और बेरोज़गारों को पांच हज़ार रुपये तक बेरोजगारी भत्ता देने का वादा भी घोषणा पत्र में किया है.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)