पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार बोले, अर्थव्यवस्था के लिए झटका थी नोटबंदी

नोटबंदी के समय देश के मुख्य आर्थिक सलाहकार रहे अरविंद सुब्रमण्यम ने बताया कि नोटबंदी से पहले दर्ज हुई 8% की आर्थिक वृद्धि इस फैसले के बाद 6.8 % पर पहुंच गई थी. उन्होंने यह भी कहा कि इस बात पर कोई संदेह नहीं है कि नोटबंदी से अर्थव्यवस्था की रफ़्तार धीमी हुई.

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पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम. (फाइल फोटो: पीटीआई)

नोटबंदी के समय देश के मुख्य आर्थिक सलाहकार रहे अरविंद सुब्रमण्यम ने बताया कि नोटबंदी से पहले दर्ज हुई 8% की आर्थिक वृद्धि इस फैसले के बाद 6.8 % पर पहुंच गई थी. उन्होंने यह भी कहा कि इस बात पर कोई संदेह नहीं है कि नोटबंदी से अर्थव्यवस्था की रफ़्तार धीमी हुई.

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पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार रहे अरविंद सुब्रमण्यम (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: चुनावी मौसम में मोदी सरकार द्वारा नोटबंदी की सफलता के दावों के बीच पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार ने यह माना है कि यह फैसला देश की अर्थव्यवस्था के लिए एक झटका था.

समाचार एजेंसी आईएएनएस के मुताबिक पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने नोटबंदी को एक बड़ा, सख्त और मौद्रिक झटका बताया, जिसने अर्थव्यवस्था को 8 प्रतिशत से 6.8% पर पहुंचा दिया था.

8 दिसंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 500 और 1000 रुपये के नोटों को वापस लेने के इस फैसले पर अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा कि नोटबंदी के बारे में उनके पास कोई ठोस राय नहीं है, सिवाय इसके कि तब गैर-संगठित क्षेत्र की वेलफेयर कॉस्ट पर्याप्त थी.

इस साल जून में मुख्य आर्थिक सलाहकार के रूप में अपना चार साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद इस्तीफ़ा देने वाले अरविंद सुब्रमण्यम ने अपनी आने वाली किताब ‘ऑफ काउंसल: द चैलेंजेस ऑफ द मोदी-जेटली इकोनॉमी’ ने एक चैप्टर नोटबंदी पर लिखा है.

हालांकि अरविंद सुब्रमण्यम ने इस बारे में कुछ नहीं बताया कि सरकार द्वारा नोटबंदी का फैसले लेने से पहले उनसे सलाह ली गयी थी या नहीं. विपक्ष का यह आरोप रहा है कि इस महत्वपूर्ण निर्णय को लेने से पहले प्रधानमंत्री ने मुख्य आर्थिक सलाहकार से कोई राय नहीं ली थी.

अपनी किताब के ‘द टू पज़ल्स ऑफ डिमॉनेटाइजेशन- पॉलिटिकल एंड इकोनॉमिक’ नाम के चैप्टर में उन्होंने लिखा है, ‘नोटबंदी एक बड़ा, सख्त और मौद्रिक (मॉनेटरी) झटका था: एक ही बार में देश में चल रही 86 फीसदी मुद्रा वापस ले ली गयी. नोटबंदी से देश की असल जीडीपी वृद्धि पर असर हुआ था. नोटबंदी से पहले भी यह कम थी, लेकिन नोटबंदी के बाद यह तेज़ी से नीचे गिरी. नोटबंदी के पहले की 6 तिमाहियों में औसत वृद्धि 8 फीसदी थी, जो नोटबंदी के बाद की 7 तिमाहियों में औसतन 6.8 फीसदी रही.’

सुब्रमण्यम ने यह भी कहा है कि उन्हें नहीं लगता कि किसी को इस बात पर कोई शुबहा होगा कि नोटबंदी से आर्थिक वृद्धि धीमी हुई थी. हालांकि बहस का मुद्दा यह था कि इसका असर कितना था- क्या यह 2% तह या इससे कम. उन्होंने लिखा है, ‘.. आखिर उस समय और भी कई पहलू थे जिनसे वृद्धि प्रभावित हुई थी, विशेष रूप से बढ़ी ब्याज दर, जीएसटी का लागू होना और तेल के दाम.’

सुब्रमण्यम ने लिखा है कि इसके बाद कुछ हद तक तो लोग कैश इस्तेमाल करने की बजाय डेबिट कार्ड और डिजिटल वॉलेट इस्तेमाल करने लग गए हैं. उन्होंने आगे कहा, ‘या फिर नोटबंदी की मेरी समझ से परे आधुनिक भारतीय इतिहास का सबसे अप्रत्याशित आर्थिक प्रयोग है.’

उन्होंने नोटबंदी के राजनीतिक पहलू के बारे में कहा कि हालिया समय में किसी भी देश ने सामान्य समय में नोटबंदी का फैसला नहीं लिया. साधारण तौर पर या तो सामान्य समय में धीरे-धीरे विमुद्रीकरण किया गया या किसी आपात स्थिति जैसे युद्ध, अत्यधिक महंगाई, मुद्रा संकट या राजनीतिक उठापटक (वेनेजुएला 2016) में इसे अंजाम दिया गया.

अरविंद के अनुसार अगर नरम शब्दों में कहें तो भारत में लिया गया यह फैसला अनोखा था. इस फैसले के कुछ ही समय बाद उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत के बारे उन्होंने कहा कि इसे जनता के नोटबंदी पर दिए फैसले के रूप में देखा गया था.

नोटबंदी से जुड़ा एक अनूठा बिंदु यह भी था कि गरीब अपने सामने आ रही मुसीबतों से इतर, यह सोचकर संतुष्ट था कि अमीरों और उनकी गलत तरह से कमाई गयी दौलत को तो और बड़ी मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा होगा.

सुब्रमण्यम के अनुसार एक बड़े उद्देश्य को पाने के लिए गरीबों को हुई अपूरणीय क्षति को टाला जा सकता था.