नोटबंदी के दो साल बाद प्रमुख बैंकर उदय कोटक ने 2000 रुपये का नोट लाने पर सवाल उठाते हुए कहा कि अगर आप 500 और 1000 रुपये के नोट बंद कर रहे हैं, तो उससे बड़ा नोट लाने की क्या ज़रूरत थी?
मुंबई: नरेंद्र मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले पर करीब दो साल बाद प्रमुख बैंकर उदय कोटक ने कहा है कि ‘कुछ सामान्य-सी बातों’ पर ध्यान दे दिया गया होता तो बड़े मूल्य के नोटों पर पाबंदी के निर्णय का परिणाम ‘काफी अच्छा होता’.
इसी संबंध में उन्होंने 2000 का नया नोट चलन में लाने पर भी सवाल उठाए, लेकिन यह भी कहा कि वित्तीय क्षेत्र के लिए यह एक ‘बड़ा वरदान’ रहा.
देश के निजी क्षेत्र के चौथे सबसे बड़े बैंक कोटक महिंद्रा के कार्यकारी वाइस चेयरमैन और प्रबंध निदेशक (एमडी) कोटक ने कहा कि छोटी फर्में इस समय मुश्किलों का सामना कर रही हैं. हालांकि, उन्होंने सरकार द्वारा इस क्षेत्र पर ध्यान देने का स्वागत किया.
नोटबंदी पर उन्होंने कहा कि यदि इसकी बेहतर तरीके से योजना बनाई जाती तो इसका नतीजा कुछ और होता.
कोटक ने पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम की पुस्तक ‘ऑफ काउंसेल: द चैलेंजेज ऑफ द मोदी-जेटली इकोनॉमी’ के विमोचन के मौके पर कहा, ‘मुझे लगता है कि यदि कुछ सामान्य बातों के बारे में सोचा गया होता, तो इसका नतीजा उल्लेखनीय रूप से बेहतर होता. यदि आप 500 और 1,000 का नोट बंद कर रहे हैं, तो 2,000 का नोट शुरू करने की क्या जरूरत थी?’
कोटक ने कहा कि क्रियान्वयन रणनीति के तहत यह सुनिश्चित करना जरूरी था कि सही मूल्य के नोट बड़ी संख्या में उपलब्ध कराए जाते. उन्होंने कहा कि यदि ये सब चीजें की गई होतीं तो आज हम कुछ अलग तरीके से बात कर रहे होते.
हालांकि, कोटक ने दावा किया कि नोटबंदी वित्तीय क्षेत्र के लिए वरदान साबित हुई. उन्होंने कहा कि वित्तीय बचत में वृद्धि अविश्वसनीय है. इससे जोखिम प्रबंधन की चुनौती भी खड़ी हुई है.
इसी कार्यक्रम में पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने भी नोटबंदी की आलोचना की. उन्होंने कहा कि नोटबंदी और जीएसटी लागू किये जाने से देश की अर्थव्यवस्था की रफ्तार मंद हुई. उन्होंने कहा कि बजट में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) से राजस्व वसूली का लक्ष्य तर्कसंगत नहीं है.
इससे पहले भी सुब्रमण्यम ने नोटबंदी को एक बड़ा, सख्त और मौद्रिक झटका बताया, जिसने अर्थव्यवस्था को 8 प्रतिशत से 6.8% पर पहुंचा दिया था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)