राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने ‘आधिकारिक भाषाओं पर बनी संसदीय समिति’ की छह साल पहले की गई सिफ़ारिशों को स्वीकार कर लिया है.
आने वाले दिनों राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और केंद्र सरकार के मंत्री सिर्फ हिंदी में भाषण देते नजर आएं तो चौंकिएगा मत.
इकोनॉमिक टाइम्स के मुताबिक, राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने ‘आधिकारिक भाषाओं पर संसद की समिति’ की इस सिफ़ारिश को ‘स्वीकार’ कर लिया है कि राष्ट्रपति और ऐसे सभी मंत्रियों और अधिकारियों को हिंदी में ही भाषण देना चाहिए और बयान जारी करने चाहिए, जो हिंदी पढ़ और बोल सकते हों. इस समिति ने हिंदी को और लोकप्रिय बनाने के तरीकों पर 6 साल पहले 117 सिफारिशें दी थीं.
आधिकारिक भाषा पर संसद की इस समिति ने 1959 से राष्ट्रपति को अब तक 9 रिपोर्टें दी हैं. पिछली रिपोर्ट 2011 में दी गई थी. 2011 में पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम इस समिति के अध्यक्ष थे.
राष्ट्रपति ने सिफ़ारिशों को स्वीकार करते हुए संबंधित अधिसूचना प्रधानमंत्री कार्यालय, सभी मंत्रियों और राज्यों को भेज दी गई है.
इसके अलावा राष्ट्रपति ने कई और सिफ़ारिशों को भी अपनी मंजूरी दी है, जिनमें एयर इंडिया की टिकटों पर हिंदी का उपयोग और एयरलाइंस में यात्रियों के लिए हिंदी अखबार तथा मैगजीन उपलब्ध कराना भी शामिल है.
इसके अलावा सरकारी भागीदारी वाली निजी कंपनियों में बातचीत के लिए हिंदी को अनिवार्य करने तथा निजी कंपनियों के लिए अपने उत्पादों के नाम और संबंधित सूचना को हिंदी में देने की सिफारिश को नामंजूर कर दिया है. लेकिन सभी सरकारी और अर्ध सरकारी संगठनों को अपने उत्पादों की जानकारी हिंदी में देना अनिवार्य होगा.
संसदीय समिति ने सीबीएसई और केंद्रीय विद्यालयों में आठवीं कक्षा से लेकर 10वीं कक्षा तक हिंदी को अनिवार्य विषय करने की भी सिफारिश की थी, जिसे राष्ट्रपति ने सैद्धांतिक रूप से स्वीकार कर लिया है. इसके अनुसार केंद्र ए श्रेणी के हिंदी भाषी राज्यों में ऐसा कर सकता है, लेकिन उसके लिए राज्यों से सलाह-मशविरा करना अनिवार्य होगा.
इसके अलावा गैर-हिंदी भाषी राज्यों के विश्वविद्यालयों से मानव संसाधन विकास मंत्रालय कहेगा कि वे छात्रों को परीक्षाओं और साक्षात्कारों में हिंदी में उत्तर देने का विकल्प उपलब्ध कराएं. इसे यह कहते हुए स्वीकार किया गया है कि सरकार, सरकारी संवाद में हिंदी के कठिन शब्दों का उपयोग करने से बचे.