मुख्यमंत्री शिवराज चौहान के मंत्रिमंडल में उन्हें मिलाकर कुल 32 मंत्री थे, जिनमें से 27 ने चुनाव लड़ा था. 14 मंत्री अपनी सीट बचाने में सफल रहे. इनमें से कई काफी जद्दोजहद के बाद जीत दर्ज कर सके.
मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के 15 सालों के शासन को प्रदेश की जनता ने ठेंगा दिखा दिया है. हालांकि, सरकार बनाने के लिए आवश्यक बहुमत के आंकड़े तक न तो भाजपा पहुंच पाई है और न ही कांग्रेस.
230 सीटों वाली विधानसभा में बहुमत के लिए आवश्यक 116 सीटों का आंकड़ा दोनों ही दल नहीं छू सके हैं. कांग्रेस 114 सीटों पर रहकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है तो भाजपा 109 पर सिमट गई है.
भाजपा के लिए सदमे की बात यह है कि उसके 13 मंत्री तक अपनी सीट नहीं बचा सके हैं. अगर ये मंत्री अपनी सीट जीत जाते तो विधानसभा का नज़ारा अलग ही होता. भाजपा पूर्ण बहुमत से सरकार बना सकती थी.
बात करें तो मुख्यमंत्री शिवराज चौहान के मंत्रिमंडल में उन्हें मिलाकर कुल 32 मंत्री थे. जिनमें से 27 ने चुनाव लड़ा था. 14 अपनी सीट बचाने में सफल रहे.
यहां ज़िक्र करना ज़रूरी हो जाता है कि भाजपा ने टिकट आवंटन के समय फूंक-फूंक कर कदम रखे थे और अपने पांच मंत्रियों के टिकट भी काटने का साहस दिखाया था. जिससे लग रहा था कि टिकट उन्हें ही दिया गया है जिनमें जीतने की क्षमता है. लेकिन, 13 मंत्री तो हारे ही, साथ ही जो जीते भी हैं उनमें कई संघर्ष करके जीत पाए हैं.
हारने वाले मंत्रियों में सबसे बड़ा नाम वित्त मंत्री जयंत मलैया का है. वे दमोह से मैदान में थे. क़रीबी मुक़ाबले में 798 वोटों से हार गए. यहां से कांग्रेस के राहुल सिंह जीते हैं. उच्च शिक्षा मंत्री जयभान सिंह पवैया तो ग्वालियर सीट पर कांग्रेस के प्रद्युमन सिंह तोमर ने 21,000 से अधिक वोटों से हराया है.
ग्वालियर ज़िले की दक्षिण सीट से ही ऊर्जा मंत्री नारायण सिंह कुशवाह भी क़रीबी मुक़ाबले में 121 वोटों से हारे हैं. यहां से कांग्रेस के युवा नेता प्रवीण पाठक जीते हैं. स्वास्थ्य मंत्री रुस्तम सिंह मुरैना में करीब 21,000 मतों से हार गए. यहां भी जीत कांग्रेस की हुई.
गोहद से नर्मदा घाटी विकास एवं अनुसूचित जाति कल्याण मंत्री लाल सिंह आर्य 24,000 मतों से हारे. रोचक यह है कि यहां से कांग्रेस के जिन रणवीर जाटव ने जीत दर्ज की है, उनके पिता माखनलाल जाटव की हत्या में लाल सिंह आर्य पर मुक़दमा चल चुका है.
बुरहानपुर से महिला एवं बाल विकास मंत्री अर्चना चिटनिस भी अपनी सीट नहीं बचा सकीं. वे एक निर्दलीय प्रत्याशी से पांच हज़ार मतों से हारी हैं.
शाहपुर से खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री ओमप्रकाश धुर्वे को करीब 34000 मतों से कांग्रेसी उम्मीदवार ने क़रारी शिकस्त दी है.
जबलपुर उत्तर से चिकित्सा शिक्षा और लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री शरद जैन भी अपनी सीट नहीं बचा सके और करीबी मुकाबले में 578 मतों से कांग्रेस के उम्मीदवार विनय सक्सेना से हार गए.
जेल एवं पशुपालन मंत्री अंतर सिंह आर्य को भी सेंधवा सीट पर करीब 16000 मतों से हार का सामना करना पड़ा है. यहां से भी कांग्रेस जीती है.
राजस्व मंत्री उमाशंकर गुप्ता भी करीब 7000 मतों से हारे हैं. यहां से भी कांग्रेस जीती है.
पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री ललिता यादव भी मलहरा सीट पर हारी हैं. क़रीब 16,000 मतों से कांग्रेस उम्मीदवार ने हराया है.
खरगोन से श्रम और कृषि विकास मंत्री बालकृष्ण पाटीदार की भी क़रीब 10,000 मतों से हार हुई है. कांग्रेस जीती है.
मंदसौर का हाटपिपल्या जहां कि किसानों पर गोलीकांड हुआ था, वहां से मंत्री दीपक जोशी अपनी सीट नहीं बचा सके और 13,000 मतों से कांग्रेसी उम्मीदवार से हार गए.
कुल मिलाकर देखें तो भाजपा के हारने वाले 13 में से 12 मंत्री कांग्रेस से मुक़ाबला हारे हैं. शरद जैन, नारायण कुशवाह और जयंत मलैया को छोड़ दें तो बाकी मंत्री बड़े अंतर से हारे हैं जो दिखाता है कि कहीं न कहीं कांग्रेस भाजपा के मंत्रियों को घेरने में सफल रही है और मंत्रियों की यही हार नतीजों में निर्णायक रही है.
बहरहाल, यहां उन पांच सीटों की बात करना भी ज़रूरी हो जाता है जिन पर भाजपा ने अपने मंत्रियों का टिकट काटा था.
ये सीटें थीं, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री कुसुम महेदले की पन्ना, जल संसाधन मंत्री हर्ष सिंह की रामपुर बघेलन, उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण मंत्री सूर्यप्रकाश मीणा की शमशाबाद, वन, आर्थिकी एवं सांख्यिकी मंत्री गौरीशंकर शेजवार की सांची और नगरीय विकास एवं आवास मंत्री माया सिंह की ग्वालियर पूर्व सीट.
इन पांच सीटों में से भी दो (सांची और ग्वालियर पूर्व) पर भाजपा हार गई है. जो इस बात की पुष्टि करता है कि भाजपा के मंत्रियों के प्रति जनता में भारी नाराज़गी थी जो सीटों पर उम्मीदवार बदलने के बाद भी दूर नहीं हुई. गौरतलब है कि सांची से गौरीशंकर शेजवार के बेटे मुदित शेजवार मैदान में थे.
जो 14 सीटें भाजपा के मंत्रियों ने बचाई हैं, उनमें मुख्य सीटें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की बुदनी, गृह मंत्री भूपेंद्र सिंह की खुरई, संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री सुरेंद्र पटवा की भोजपुर, खेल एवं युवा कल्याण मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया की शिवपुरी, संसदीय कार्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा की दतिया सीट हैं.
ये सीटें इसलिए खास हैं क्योंकि बुदनी में शिवराज ने पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव को हराया. खुरई सीट पर ईवीएम को लेकर काफी विवाद हुआ. गृहमंत्री की इस सीट की ईवीएम 48 घंटे बाद स्ट्रॉन्ग रूम में प्रशासन ने पहुंचाई थीं जिससे कांग्रेस को ईवीएम में गड़बड़ी करने की आशंका थी.
वहीं, सुरेंद्र पटवा ने प्रदेश कांग्रेस के दिग्गज सुरेश पचौरी को हराया, तो यशोधरा जो सीट जीती हैं उसके संबंध में भी यह कहा जाता रहा है कि उनके भतीजे प्रदेश कांग्रेस चुनाव समिति के अध्यक्ष ज्योतिरादित्य सिंधिया ने उनके सामने एक कमज़ोर उम्मीदवार जानबूझकर उतरवाकर उनकी जीत सुनिश्चित की है.
इधर, शिवराज के संकटमोचक कहे जाने वाले नरोत्तम मिश्रा भी अपनी सीट केवल 2500 मतों से जीत सके. अंत समय तक उनके प्रतिद्वंद्वी राजेंद्र भारती बढ़त बनाए हुए थे.
तो कहा जा सकता है कि जीतने वाले मंत्रियों को भी जीतने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ी है. कहीं-कहीं जीत विवादित भी रही है.
कड़ी मशक्कत का एक उदाहरण पंचायत एवं ग्रामीण विकास और गैस राहत मंत्री विश्वास सारंग का भी है. नरेला से जीते विश्वास मतगणना के आधे समय तक पिछड़ते नज़र आए थे. वे 23,000 मतों से जीते ज़रूर लेकिन अंत समय तक वोटों की गिनती कभी कांग्रेस के महेंद्र सिंह चौहान के पाले में हो रही थी तो कहीं उनके पाले में. एक वक़्त क़रीब 5000 मतों से वे पीछे थे.
इनके अतिरिक्त नरसिंहपुर से जालम सिंह पटेल, रीवा से राजेंद्र शुक्ला, सिलवानी से रामपाल सिंह, उज्जैन उत्तर से पारसचंद्र जैन, रहली से गोपाल भार्गव, हरसूद से विजय शाह, बालाघाट से गौरीशंकर बिसेन, विजयराघवगढ़ से संजय पाठक मंत्री के तौर पर अपनी सीट बचाने में सफल रहे हैं.
कुल मिलाकर देखें तो शिवराज और भाजपा के आला नेतृत्व का अपने मंत्रियों पर भरोसा जताना पार्टी पर भारी पड़ा है. शायद इसलिए भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने प्रदेश में भाजपा की हार पर बयान दिया है कि आपसी संबंध को ध्यान में रखकर टिकट बांटे गए हैं, गलती यहां हुई है.
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)