सुप्रीम कोर्ट ने राफेल डील में जांच की मांग वाली याचिका खारिज की

मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा, 'कोर्ट का ये काम नहीं है कि वो निर्धारित की गई राफेल कीमत की तुलना करे. हमने मामले की अध्ययन किया, रक्षा अधिकारियों के साथ बातचीत की, हम निर्णय लेने की प्रक्रिया से संतुष्ट हैं.'

New Delhi: In this Feb 14, 2017 file picture a Rafale fighter aircraft flies past at the 11th edition of Aero India 2017, in Bengaluru. Chief of the Air Staff, Air Chief Marshal BS Dhanoa defended the Rafale purchase as "a game changer" at the annual Air Force press conference in New Delhi, Wednesday. (PTI Photo) (PTI10_3_2018_000110B)
New Delhi: In this Feb 14, 2017 file picture a Rafale fighter aircraft flies past at the 11th edition of Aero India 2017, in Bengaluru. Chief of the Air Staff, Air Chief Marshal BS Dhanoa defended the Rafale purchase as "a game changer" at the annual Air Force press conference in New Delhi, Wednesday. (PTI Photo) (PTI10_3_2018_000110B)

मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा, ‘कोर्ट का ये काम नहीं है कि वो निर्धारित की गई राफेल कीमत की तुलना करे. हमने मामले की अध्ययन किया, रक्षा अधिकारियों के साथ बातचीत की, हम निर्णय लेने की प्रक्रिया से संतुष्ट हैं.’

New Delhi: In this Feb 14, 2017 file picture a Rafale fighter aircraft flies past at the 11th edition of Aero India 2017, in Bengaluru. Chief of the Air Staff, Air Chief Marshal BS Dhanoa defended the Rafale purchase as "a game changer" at the annual Air Force press conference in New Delhi, Wednesday. (PTI Photo) (PTI10_3_2018_000110B)
राफेल विमान (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने राफेल डील में कोर्ट की अगुवाई में जांच की मांग वाली सभी याचिकाओं को खारिज कर दी. कोर्ट ने कहा कि हमें रक्षा सौदे में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं मिला.

मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस केएम जोसेफ की तीन सदस्यीय पीठ ने ये फैसला दिया था. कोर्ट ने कहा कि राफेल अधिग्रहण की प्रक्रिया की जांच करने के लिए यह अदालत का मामला नहीं है.

मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा, ‘कोर्ट का ये काम नहीं है कि वो निर्धारित की गई राफेल कीमत की तुलना करे. हमने मामले की अध्ययन किया, रक्षा अधिकारियों के साथ बातचीत की, हम निर्णय लेने की प्रक्रिया से संतुष्ट हैं.’

कोर्ट ने यह भी कहा कि पहले का सौदा आगामी नहीं था और नया सौदा वित्तीय फायदे के साथ आया है. कोर्ट ने कहा कि नियम के मुताबिक आफसेट पार्टनर विक्रेता द्वारा तय किया जाना था, न कि केंद्र सरकार द्वारा.

कोर्ट ने ये भी कहा कि हम इस फैसले की जांच नहीं कर सकते कि 126 राफेल की जगह 36 राफेल की डील क्यों की गई. हम सरकार से ये नहीं कह सकते कि आप 126 राफेल खरीदें.

जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा, ‘हम पहले और वर्तमान राफले सौदे के बीच की कीमतों की तुलना करने के लिए न्यायिक समीक्षा की शक्तियों का उपयोग नहीं कर सकते हैं.’

बता दें इस मामले में पिछली सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने फ्रांस की कंपनी दासो के साथ साजिश करने का भी आरोप लगाया जिसने आफसेट अधिकार रिलायंस को दिए हैं.

उन्होंने कहा था कि यह भ्रष्टाचार के समान है और यह अपने आप में एक अपराध है. उन्होंने कहा कि रिलायंस के पास आफसेट करार को क्रियान्वित करने की दक्षता नहीं है.

बीते 14 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई पूरी की थी और फैसला सुरक्षित रखा था. कोर्ट ने इस मामले में दायर की गईं याचिकाओं पर विभिन्न पक्षों के वकीलों की दलीलें सुनी. कोर्ट में दायर याचिकाओं में राफेल लड़ाकू विमान सौदे में अनियमितताओं का आरोप लगाते हुए इसमें प्राथमिकी दर्ज करने और कोर्ट की अगुवाई जांच कराने की मांग की गई थी.

ये याचिकाएं वकील मनोहर लाल शर्मा, विनीत ढांडा और आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने दायर की हैं. इनके अलावा पूर्व भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा, अरूण शौरी और वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने संयुक्त याचिका दायर की है.

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राफेल लड़ाकू विमानों की कीमतों पर उसी स्थिति में चर्चा हो सकती है जब इस सौदे के तथ्यों को सार्वजनिक दायरे में आने दिया जाए. मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा, ‘हमें यह निर्णय लेना होगा कि क्या कीमतों के तथ्यों को सार्वजनिक किया जाना चाहिए या नहीं.’

मालूम हो कि सितंबर 2017 में भारत ने करीब 58,000 करोड़ रुपये की लागत से 36 राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद के लिए फ्रांस के साथ अंतर-सरकारी समझौते पर दस्तखत किए थे.

इससे करीब डेढ़ साल पहले 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी पेरिस यात्रा के दौरान इस प्रस्ताव की घोषणा की थी. आरोप लगे हैं कि साल 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा इस सौदे में किए हुए बदलावों के लिए ढेरों सरकारी नियमों को ताक पर भी रखा गया.

यह विवाद इस साल सितम्बर में तब और गहराया जब फ्रांस की मीडिया में एक खबर आयी, जिसमें पूर्व फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने कहा कि राफेल करार में भारतीय कंपनी का चयन नई दिल्ली के इशारे पर किया गया था.

ओलांद ने ‘मीडियापार्ट’ नाम की एक फ्रेंच वेबसाइट से कहा था कि भारत सरकार ने 58,000 करोड़ रुपए के राफेल करार में फ्रांसीसी कंपनी दासो के भारतीय साझेदार के तौर पर उद्योगपति अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस डिफेंस के नाम का प्रस्ताव दिया था और इसमें फ्रांस के पास कोई विकल्प नहीं था.

यहां पढ़ें सुप्रीम कोर्ट का पूरा फैसला:

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