राफेल मामले में सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला एकदम ग़लत है: प्रशांत भूषण

सुप्रीम कोर्ट ने राफेल डील मामले में जांच की मांग वाली सभी याचिकाओं को ख़ारिज करते हुए कहा कि हमें रक्षा सौदे में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं मिला.

Ahmedabad: Lawyer-activist Prashant Bhushan addresses the media on the alleged corruption in Rafael Deal, in Ahmedabad, Saturday, Sept 8, 2018. (PTI Photo/Santosh Hirlekar) (PTI9_8_2018_000111B)
Ahmedabad: Lawyer-activist Prashant Bhushan addresses the media on the alleged corruption in Rafael Deal, in Ahmedabad, Saturday, Sept 8, 2018. (PTI Photo/Santosh Hirlekar) (PTI9_8_2018_000111B)

सुप्रीम कोर्ट ने राफेल डील मामले में जांच की मांग वाली सभी याचिकाओं को ख़ारिज करते हुए कहा कि हमें रक्षा सौदे में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं मिला.

Ahmedabad: Lawyer-activist Prashant Bhushan addresses the media on the alleged corruption in Rafael Deal, in Ahmedabad, Saturday, Sept 8, 2018. (PTI Photo/Santosh Hirlekar) (PTI9_8_2018_000111B)
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट द्वारा राफेल मामले में जांच की मांग वाली याचिकाओं को खारिज करने के बाद वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि कोर्ट का फैसला एकदम गलत है.

उन्होंने कहा कि एयरफोर्स से बिना पूछे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फ्रांस में जाकर समझौता कर लिया और इसके बाद तय कीमत से ज्यादा पैसा दे दिया.

भूषण ने ये भी कहा कि सरकार ने राफेल मामले में कोर्ट में सीलबंद लिफाफे में रिपोर्ट दी है जिसके बारे में हमें कोई जानकारी नहीं है. इसके अलावा कोर्ट ने ऑफसेट पार्टनर चुनने के मामले में भी गलत नहीं माना है.

सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि दासो एविएशन को अपना ऑफसेट पार्टनर चुनना था हालांकि रक्षा सौदे में लिखा है कि बिना सरकार की सहमति के कोई फैसला नहीं लिया जा सकता है.

बता दें कि शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने राफेल डील में कोर्ट की अगुवाई में जांच की मांग वाली सभी याचिकाओं को खारिज कर दी. कोर्ट ने कहा कि हमें रक्षा सौदे में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं मिला.

राफेल मामले में वकील मनोहर लाल शर्मा, विनीत ढांडा और आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने याचिका दायर की थी. इनके अलावा पूर्व भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा, अरूण शौरी और वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने संयुक्त याचिका दायर की थी.

इस मामले में पिछली सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने फ्रांस की कंपनी दासो के साथ साजिश करने का भी आरोप लगाया जिसने आफसेट अधिकार रिलायंस को दिए हैं.

उन्होंने कहा था कि यह भ्रष्टाचार के समान है और यह अपने आप में एक अपराध है. उन्होंने कहा कि रिलायंस के पास आफसेट करार को क्रियान्वित करने की दक्षता नहीं है.

फैसला पढ़ते हुए मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा, ‘कोर्ट का ये काम नहीं है कि वो निर्धारित की गई राफेल कीमत की तुलना करे. हमने मामले की अध्ययन किया, रक्षा अधिकारियों के साथ बातचीत की, हम निर्णय लेने की प्रक्रिया से संतुष्ट हैं.’

कोर्ट ने ये भी कहा कि हम इस फैसले की जांच नहीं कर सकते कि 126 राफेल की जगह 36 राफेल की डील क्यों की गई. हम सरकार से ये नहीं कह सकते कि आप 126 राफेल खरीदें.

जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा, ‘हम पहले और वर्तमान राफले सौदे के बीच की कीमतों की तुलना करने के लिए न्यायिक समीक्षा की शक्तियों का उपयोग नहीं कर सकते हैं.’  पीठ ने कहा कि लड़ाकू विमानों की जरूरत है और देश इन विमानों के बगैर नहीं रह सकता है.

कोर्ट ने कहा, ‘खरीद, कीमत और ऑफसेट साझेदार के मामले में हस्तक्षेप के लिए उसके पास कोई ठोस साक्ष्य नहीं है.’

मालूम हो कि सितंबर 2017 में भारत ने करीब 58,000 करोड़ रुपये की लागत से 36 राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद के लिए फ्रांस के साथ अंतर-सरकारी समझौते पर दस्तखत किए थे.

इससे करीब डेढ़ साल पहले 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी पेरिस यात्रा के दौरान इस प्रस्ताव की घोषणा की थी. आरोप लगे हैं कि साल 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा इस सौदे में किए हुए बदलावों के लिए ढेरों सरकारी नियमों को ताक पर भी रखा गया.

यह विवाद इस साल सितम्बर में तब और गहराया जब फ्रांस की मीडिया में एक खबर आयी, जिसमें पूर्व फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने कहा कि राफेल करार में भारतीय कंपनी का चयन नई दिल्ली के इशारे पर किया गया था.

ओलांद ने ‘मीडियापार्ट’ नाम की एक फ्रेंच वेबसाइट से कहा था कि भारत सरकार ने 58,000 करोड़ रुपए के राफेल करार में फ्रांसीसी कंपनी दासो के भारतीय साझेदार के तौर पर उद्योगपति अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस डिफेंस के नाम का प्रस्ताव दिया था और इसमें फ्रांस के पास कोई विकल्प नहीं था.

यहां पढ़ें सुप्रीम कोर्ट का पूरा फैसला:

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