केंद्रीय राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने राज्यसभा में आरटीआई संशोधन को लेकर पूछे गए सवाल के जवाब में कहा कि प्रस्तावित संशोधन में कोई सामाजिक या आर्थिक प्रभाव शामिल नहीं है इसलिए सरकार से बाहर सलाह प्रक्रिया का पालन करने की ज़रूरत नहीं पड़ी.
नई दिल्ली: केंद्र की मोदी सरकार ने कहा है कि उन्होंने सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून में संशोधन प्रस्ताव लाने से पहले लोगों से इसलिए सलाह नहीं लिया क्योंकि इससे कोई सामाजिक प्रभाव नहीं पड़ेगा.
प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने राज्यसभा में आरटीआई संशोधन को लेकर पूछे गए सवाल के जवाब में कहा कि प्रस्तावित संशोधन में कोई सामाजिक या आर्थिक प्रभाव नहीं शामिल है इसलिए सरकार से बाहर ‘सलाह प्रक्रिया’ का पालन करने की जरूरत नहीं पड़ी.
सिंह ने बताया कि आरटीआई संशोधन को लेकर व्यय विभाग, विधि कार्य विभाग और विधायी विभाग के बीच सलाह-मशविरा किया गया था.
केंद्र सरकार के इस बयान को लेकर आरटीआई कार्यकर्ताओं नें कड़ी आलोचना की और कहा कि सरकार का ये बयान उसके अलोकतांत्रिक मानसिकता को दर्शाता है.
आरटीआई को लेकर काम करने वाले सतर्क नागरिक संगठन और सूचना के जन अधिकार का राष्ट्रीय अभियान (एनसीपीआरआई) की सदस्य अंजलि भारद्वाज ने कहा, ‘शायद प्रधानमंत्री कार्यालय ये भूल गया है कि हम लोग एक लोकतंत्र हैं और इस देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था का पालन होता है. जनता की आरटीआई को कमजोर करना बहुत बड़ा सामाजिक नुकसान है और जनहित का विषय है.’
बता दें कि नियम के मुताबिक अगर कोई संशोधन या विधेयक सरकार लाती है तो उसे संबंधित मंत्रालय या डिपार्टमेंट की वेबसाइट पर सार्वजनिक किया जाता है और उस पर आम जनता समेत विशेषज्ञों की राय मांगी जाती है.
कुछ मामलों में सरकार अखबारों में भी विधेयक से संबंधित जानकारी प्रकाशित करवाती है और उस पर लोगों सुझाव भेजने के लिए कहा जाता है. इस पूरी प्रक्रिया को प्री-लेजिस्लेटिव कंसल्टेशन पॉलिसी यानी कि पूर्व-विधायी परामर्श नीति कहते हैं.
लेकिन आरटीआई कानून में संशोधन प्रस्ताव के मामले में अभी तक ऐसा नहीं किया गया और सारा मामला काफी गोपनीय रखा गया. यहां तक की आरटीआई के मामलों को देखने वाली सबसे बड़ी संस्था केंद्रीय सूचना आयोग से भी इस पर सलाह नहीं लिया गया.
राज्यसभा के तीन सांसदों रवि प्रकाश वर्मा, डी. राजा और नीरज शेखर ने राज्यसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पूछा था कि क्या सरकार आरटीआई कानून में संशोधन करने वाली है और अगर संशोधन किया जा रहा है तो क्या इस मामले में केंद्रीय सूचना आयोग से सलाह लिया गया था.
नरेंद्र मोदी की जगह जितेंद्र सिंह ने सदन में जो जवाब दिया है उसमें उन्होंने नहीं बताया कि केंद्रीय सूचना आयोग के साथ इस मामले में विचार किया गया था या नहीं. सिंह ने सिर्फ इतना बताया कि व्यय विभाग, विधि कार्य विभाग और विधायी विभाग के बीच सलाह-मशविरा किया गया था.
हालांकि केंद्रीय सूचना आयोग के पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त आरके माथुर ने कहा था कि आरटीआई संशोधन प्रस्ताव लाने से पहले केंद्रीय सूचना आयोग से कोई सलाह नहीं लिया गया था. पूर्व सूचना आयुक्त श्रीधर आचार्युलु भी कई बार पत्र लिखकर आरटीआई कानून में संशोधन का विरोध कर चुके हैं.
मोदी सरकार आरटीआई संशोधन विधेयक लेकर आई है जिसमें केंद्रीय सूचना आयुक्तों और राज्य सूचना आयुक्तों का वेतन और उनके कार्यकाल को केंद्र सरकार द्वारा तय करने का प्रावधान रखा गया है. आरटीआई कानून के मुताबिक एक सूचना आयुक्त का कार्यकाल पांच साल या 65 साल की उम्र, जो भी पहले पूरा हो, का होता है.
अभी तक मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त का वेतन मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त के वेतन के बराबर मिलता था. वहीं राज्य मुख्य सूचना आयुक्त और राज्य सूचना आयुक्त का वेतन चुनाव आयुक्त और राज्य सरकार के मुख्य सचिव के वेतन के बराबर मिलता था.
आरटीआई एक्ट के अनुच्छेद 13 और 15 में केंद्रीय सूचना आयुक्त और राज्य सूचना आयुक्तों का वेतन, भत्ता और अन्य सुविधाएं निर्धारित करने की व्यवस्था दी गई है. केंद्र की मोदी सरकार इसी में संशोधन करने के लिए बिल लेकर आई है.
आरटीआई की दिशा में काम करने वाले लोग और संगठन इस संशोधन का कड़ा विरोध कर रहे हैं. इसे लेकर नागरिक समाज और पूर्व आयुक्तों ने कड़ी आपत्ति जताई है. बीते बुधवार को दिल्ली में केंद्र द्वारा प्रस्तावित आरटीआई संशोधन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुआ था जहां पर 12 राज्यों से लोग आए थे.
कार्यकर्ताओं का कहना है कि सरकार संशोधन करके आरटीआई कानून को कमजोर करना चाहती है.
बीते दिनों श्रीधर आचार्युलु ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र लिखकर गुजारिश की थी कि सरकार द्वारा प्रस्ताविक सूचना आयुक्तों के ‘कार्यकाल, दर्जा और वेतन’ संबंधी संशोधन न किया जाए. उन्होंने कहा कि सूचना आयुक्तों की स्वतंत्रता और स्वायत्तता वैसी होनी चाहिए जैसा कि सूचना के अधिकार कानून में प्रदान किया गया है.
अंजलि भारद्वाज ने कहा, ‘अगर ये संशोधन हो जाता है तो केंद्र और राज्य सरकारों को ये अधिकार मिल जाएगा कि वे सूचना आयुक्तों का वेतन निर्धारित करें. इसकी वजह से सूचना आयोग स्वतंत्र रूप से काम नहीं कर पाएंगे और उन पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ेगा. इस संशोधन के ज़रिये सरकार सूचना आयोग को कमज़ोर करने की कोशिश कर रही है.’