अमेरिका के राष्ट्रीय आर्थिक शोध ब्यूरो द्वारा जारी एक रिसर्च पेपर में बताया गया है कि नोटबंदी के बाद 2016 में नवंबर-दिसंबर महीने के दौरान रोजगार सृजन में तीन प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई थी.
नई दिल्ली: देश में दो साल पहले की गई नोटबंदी से 2016 की अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर में दो प्रतिशत का नुकसान हुआ था. एक शोधपत्र में इसका खुलासा किया गया है.
प्रसिद्ध अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ इस शोधपत्र की सह-लेखिका हैं. सरकार ने आठ नवंबर 2016 को 500 रुपये और 1,000 रुपये के नोट को बंद करने की घोषणा की थी.
इससे तत्कालीन समय में परिचालन की 86 प्रतिशत मुद्राएं एक झटके में चलन से बाहर हो गई थीं. इसके बाद देश में लंबे समय तक नकदी संकट का सामना करना पड़ा था.
गीता गोपीनाथ अगले महीने अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष की मुख्य अर्थशास्त्री का पदभार संभालने वाली हैं.
‘नकदी एवं अर्थव्यवस्था: भारत की नोटबंदी से प्राप्त सबूत’ नामक शोधपत्र में कहा गया, ‘हमारे परिणाम से पता चलता है कि नोटबंदी की घोषणा वाली तिमाही में आर्थिक गतिविधियों की वृद्धि दर कम से कम दो प्रतिशत कम हुई.’
अमेरिका स्थित राष्ट्रीय आर्थिक शोध ब्यूरो ने इस शोधपत्र को प्रकाशित किया है. हॉवर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ग्रैब्रिएल कोडोरो-रीच इसके मुख्य लेखक हैं.
सह लेखकों में रिजर्व बैंक की रणनीतिक शोध इकाई की अगुआई कर चुकी अर्थशास्त्री प्राची मिश्रा और रिजर्व बैंक के शोध प्रबंधक अथिनव नारायणन भी शामिल हैं.
शोधपत्र में कहा गया कि नोटबंदी से रात्रि के दौरान की आर्थिक गतिविधियों में भी गिरावट आयी और 2016 में नवंबर-दिसंबर महीने के दौरान रोजगार सृजन में तीन प्रतिशत से अधिक की गिरावट आयी.
उल्लेखनीय है कि नोटबंदी की घोषणा वाली तिमाही यानी वित्त वर्ष 2016-17 की तीसरी तिमाही में देश की जीडीपी वृद्धि दर सात प्रतिशत रही थी जो चौथी तिमाही में और कम होकर 6.1 प्रतिशत पर आ गई थी.
वित्त वर्ष 2017-18 में देश की आर्थिक वृद्धि दर 6.7 प्रतिशत रही थी. नोटबंदी से पहले की छह तिमाहियों में औसत आर्थिक वृद्धि दर करीब आठ प्रतिशत रही थी. हालांकि नोटबंदी के बाद की सात तिमाहियों में यह औसत करीब 6.8 प्रतिशत पर आ गई.
शोधपत्र में कहा गया कि आधुनिक भारत में आर्थिक गतिविधियों में नकदी अभी भी काफी महत्वपूर्ण बना हुआ है. इसमें कहा गया कि कर संग्रह में सुधार, नकदी के बजाय बचत के लिये वित्तीय तरीकों को अपनाने तथा बिना नकदी के भुगतान आदि मामले में नोटबंदी से दीर्घकालिक फायदे भी हो सकते हैं.
मालूम हो कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 2016 में लिया गया नोटबंदी का फैसला आलोचनाओं का केंद्र रहा है. विपक्षी नेताओं के अलावा कई अर्थशास्त्री इस पर सवाल खड़े कर चुके हैं. हालांकि प्रधानमंत्री मोदी दावा करते हैं कि उनका यह कदम बेहद सफल रहा है.
बीते दिनों मध्य प्रदेश में हुई एक चुनावी रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी को उचित ठहराते हुए कहा भी था कि इसके ज़रिये दबा हुआ रुपया वापस बैंकिंग प्रणाली में लाया गया और इसका उपयोग सरकार जनहित के कार्यों में कर रही है.
हालांकि हाल ही में रिटायर हुए मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत का कहना है कि नोटबंदी की वजह से काले धन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा.
एक अंग्रेजी दैनिक को साक्षात्कार देते हुए नोटबंदी के बाद चुनावों में काला धन इस्तेमाल करने के सवाल पर ओपी रावत ने कहा, ‘नोटबंदी के बाद हमने चुनावों के दौरान भारी मात्रा में धन पकड़ा. मौजूदा समय में पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में लगभग 200 करोड़ रुपये जब्त किए गए हैं. यह दर्शाता है कि चुनावों के दौरान पैसा ऐसी जगहों से आ रहा है जहां पर ऐसे कदमों का कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा है.’
भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन भी कई बार नोटबंदी पर सवाल उठा चुके हैं. हाल ही में उन्होंने कहा कि नोटबंदी ने भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि घटा दी. उन्होंने कहा कि ऐसे समय जबकि वैश्विक अर्थव्यवस्था वृद्धि दर्ज कर रही है, भारत की जीडीपी की वृद्धि दर पर नोटबंदी की वजह से काफी बड़ा असर पड़ा.
राजन ने कहा कि उन्होंने ऐसे अध्ययन देखे हैं जिनसे पता चलता है कि नवंबर, 2016 में ऊंचे मूल्य के नोटों को बंद करने से भारत की वृद्धि दर पर काफी असर पड़ा.
इससे पहले देश के निजी क्षेत्र के चौथे सबसे बड़े बैंक कोटक महिंद्रा के कार्यकारी वाइस चेयरमैन और प्रबंध निदेशक (एमडी) उदय कोटक ने कहा था कि नोटबंदी की योजना बेहतर तरीके से बनाई जाती, तो नतीजा और होता.
कोटक से पहले पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने नोटबंदी को एक बड़ा, सख्त और मौद्रिक झटका बताया, जिसने अर्थव्यवस्था को 8 प्रतिशत से 6.8% पर पहुंचा दिया था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)